शिक्षक का कार्य बताना नहीं बल्कि उद्बोधन का माध्यम बनना है- परिचय दास
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के गुरु दक्षता संकाय प्रवेशीय कार्यक्रम के अंतर्गत आज प्रसिद्ध साहित्यकार और शिक्षाविद् प्रोफेसर रवींद्र नाथ श्रीवास्तव ‘परिचय दास’ ने एक आभासीय व्याख्यान दिया। उनका व्याख्यान विषय था — “अध्यापन, सीखने की प्रक्रिया और सीख की गुणवत्ता की जाँच”।कार्यक्रम के संयोजक एवं मालवीय मिशन प्रशिक्षण केंद्र, वर्धा के निदेशक प्रो. अवधेश कुमार ने आयोजन किया। डॉ. योगेन्द्र ने समन्वयन एवं धन्यवाद प्रकट किया। कार्यक्रम का मार्गदर्शन कुलपति प्रो. कुमुद शर्मा का था।
प्रो. परिचय दास ने अपने उद् बोधन में कहा कि अध्यापन केवल ज्ञान का हस्तांतरण नहीं बल्कि जीवन के प्रत्येक स्तर पर होने वाला एक जीवंत संवाद है। शिक्षक का कार्य बताना नहीं बल्कि उद् बोधन का माध्यम बनना है जिससे विद्यार्थी के भीतर जिज्ञासा और बोध की लौ जल सके। उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य जानकारी नहीं बल्कि चेतना का प्रसार है और शिक्षक का व्यक्तित्व ही उसका पहला पाठ्यक्रम होता है।
उन्होंने कहा कि सीखना केवल याद रखना नहीं बल्कि समझना और आत्मरूपांतरण की प्रक्रिया है। हर विद्यार्थी की अपनी गति और अपनी समझ होती है; इसलिए अध्यापन एक-सा नहीं हो सकता। सीखने की प्रक्रिया तब गहराती है जब विद्यार्थी स्वतंत्र, सुरक्षित और संवादपूर्ण वातावरण में होता है। प्रो. दास ने डिजिटल माध्यमों की भूमिका पर भी कहा कि “ऑनलाइन शिक्षा ने पहुँच बढ़ाई है किंतु संवाद घटाया है; इसलिए Blended learning और मानवीय सहानुभूति का संयोजन आज की आवश्यकता है।”
व्याख्यान में उन्होंने यह भी कहा कि मूल्यांकन शिक्षा का अंत नहीं, बल्कि पुनर्विचार है। इसका उद्देश्य दंड नहीं, सुधार होना चाहिए। Process-based और Rubrics-based मूल्यांकन विद्यार्थियों में आत्मविश्वास और आत्मसुधार की प्रवृत्ति जगाते हैं। शिक्षक का आत्ममूल्यांकन भी आवश्यक है, क्योंकि वहीं से शिक्षाशास्त्रीय चेतना विकसित होती है।
प्रो. दास ने शिक्षक की भूमिका को Information Provider से आगे बढ़ाकर Learning Designer बताया। उनके अनुसार, “अच्छा शिक्षक वह है जो विद्यार्थियों को केवल ज्ञान नहीं बल्कि अर्थ देता है — जो उन्हें सोचने, असहमत होने और अपने अनुभवों से सीखने का अवसर देता है।
उन्होंने कहा कि अध्यापन की आत्मा संवाद में है, न कि एकालाप में, और शिक्षक का उद्देश्य तैयार विद्यार्थी नहीं, बल्कि तैयार मनुष्य बनाना होना चाहिए — ऐसा मनुष्य जो जिज्ञासु, संवेदनशील और रचनात्मक हो।
अपने समापन में प्रो. दास ने कहा कि अध्यापन, सीखना और मूल्यांकन केवल त्रिवेणी नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक प्रवाह हैं, जो मानवता को विचार, संवाद और संवेदना के आयाम देते हैं। शिक्षा का प्रश्न यह नहीं कि विद्यार्थी क्या बन गया, बल्कि यह है कि वह कैसा मनुष्य बन रहा है। उन्होंने कहा, “अध्यापन एक सतत मानव-यात्रा है — जहाँ शिक्षक दीपक है, विद्यार्थी ज्योति और मूल्यांकन उस प्रकाश का प्रतिबिंब, जिसमें शिक्षा स्वयं को पहचानती है।”
इस व्याख्यान में देशभर के विभिन्न विश्वविद्यालयों के शिक्षक-शिक्षार्थी उपस्थित रहे और प्रो. दास के विचारों को अत्यंत प्रेरक और विचारोत्तेजक बताया।
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