भोजपुरी भाषा

पश्चिमी अर्धमागधी से चार भाषाएँ विकसित हुईं—मगही, भोजपुरी, नागपुरी, और छत्तीसगढ़ी। इस प्रकार, भोजपुरी एक स्वतंत्र और पूर्ण भाषा है, जिसकी अपनी समृद्ध साहित्यिक और सांस्कृतिक परंपरा है।
भोजपुरी की चार प्रमुख उपभाषाएँ हैं|डुमराँवी: बिहार के डुमराँव और आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है।चंपारणी: चंपारण और पश्चिम बिहार में प्रचलित।
काशिका: वाराणसी और पूर्वांचल के क्षेत्रों में बोली जाती है।बस्तियाँ: गोरखपुर और बस्ती क्षेत्रों में प्रचलित।भोजपुरी का साहित्यिक इतिहास भी गौरवशाली है। भक्तिकाल में कबीरदास जैसे संत कवियों ने भोजपुरी में रचनाएँ कीं, जिनका प्रभाव आज भी देखा जाता है। आधुनिक काल में भोजपुरी लोकगीत, नाटक, और सिनेमा ने इस भाषा को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई है।
भोजपुरी की सांस्कृतिक और सामाजिक महत्ता:
भोजपुरी भाषा केवल एक संचार माध्यम नहीं, बल्कि एक समृद्ध संस्कृति, परंपरा, और पहचान का प्रतीक है। भोजपुरी क्षेत्र—जो बिहार, उत्तर प्रदेश, और झारखंड के कुछ हिस्सों में फैला है—आध्यात्मिक, साहित्यिक, और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत उर्वर है। इस क्षेत्र ने रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास, स्वतंत्रता सेनानी बाबू कुंवर सिंह, और आधुनिक साहित्यकार भिखारी ठाकुर जैसे महान व्यक्तित्वों को जन्म दिया।भोजपुरी लोकसाहित्य, जैसे सोहर, बिरहा, और कजरी, न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि सामाजिक मूल्यों, नैतिकता, और जीवन दर्शन को भी संजोए रखता है।
भिखारी ठाकुर, जिन्हें ‘भोजपुरी का शेक्सपियर’ कहा जाता है, ने अपनी रचनाओं में भोजपुरी की आत्मा को व्यक्त किया। उनकी पंक्तियाँ, “हमार भोजपुरी, हमार पहचान, इहके बिना अधूरा बा हमार सम्मान”, इस भाषा के गौरव और इसके प्रति गहरे लगाव को दर्शाती हैं। भोजपुरी सिनेमा और संगीत ने भी इस भाषा को युवा पीढ़ी तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
संवैधानिक दर्जे की मांग: चुनौतियाँ और षड्यंत्र-
भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्तमान में 22 भाषाएँ शामिल हैं। इस अनुसूची में शामिल होने से किसी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिलती है, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा, प्रशासन, और रोजगार के क्षेत्र में उसका उपयोग बढ़ता है। भोजपुरी सहित 38 अन्य भाषाएँ इस अनुसूची में शामिल होने की माँग कर रही हैं, लेकिन भोजपुरी को बार-बार नजरअंदाज किया गया है।2004 में डोंगरी, बोडो, मैथिली, और संथाली को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया, लेकिन भोजपुरी को शामिल नहीं किया गया। यह एक सोची-समझी उपेक्षा का परिणाम माना जाता है।
कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि भोजपुरी को मान्यता देने से हिंदी की प्रगति बाधित होगी। यह तर्क न केवल आधारहीन है, बल्कि संविधान की भावना के भी विरुद्ध है। संविधान के अनुच्छेद 344 और 351 में भारतीय भाषाओं के विकास को प्रोत्साहन देने की बात कही गई है, न कि किसी एक भाषा को दूसरों पर थोपना ।भोजपुरी को “हिंदी की बोली” कहकर इसके स्वतंत्र अस्तित्व को कम करने की कोशिश भी की जाती है। यह दृष्टिकोण न केवल भाषाई, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक अन्याय भी है।
भाषाविद् डॉ. उदय नारायण तिवारी के शब्दों में: “भोजपुरी एक पूर्ण भाषा है, जिसकी लिपि, व्याकरण, और साहित्यिक परंपरा है। इसे बोली कहना अज्ञानता और पक्षपात का परिणाम है।
“भोजपुरी की ताकत और भविष्य-
भोजपुरी भाषा की ताकत इसके बोलने वालों की संख्या, इसकी सांस्कृतिक समृद्धि, और वैश्विक पहचान में निहित है। यह भाषा न केवल भारत, बल्कि प्रवासी समुदायों में भी जीवित है। मॉरीशस में भोजपुरी को आधिकारिक मान्यता प्राप्त है, और वहाँ इसे स्कूलों में पढ़ाया जाता है। नेपाल में भी भोजपुरी को क्षेत्रीय भाषा के रूप में सम्मान मिला है।
भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा मिलने से निम्नलिखित लाभ होंगे:
शिक्षा: भोजपुरी को स्कूलों में पढ़ाने से बच्चों को अपनी मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा मिलेगी, जो उनकी बौद्धिक क्षमता को बढ़ाएगी। रोजगार: सरकारी नौकरियों और प्रशासन में भोजपुरी के उपयोग से स्थानीय लोगों को अवसर मिलेंगे।
सांस्कृतिक संरक्षण: भाषा के साथ-साथ संस्कृति और परंपराएँ भी संरक्षित होंगी।सम्मान: भोजपुरी बोलने वालों को अपनी पहचान पर गर्व होगा, और सामाजिक भेदभाव कम होगा।
भोजपुरी भाषा को संवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए एकजुट होना समय की माँग है। यह केवल भाषाई मुद्दा नहीं, बल्कि पहचान, सम्मान, और सामाजिक न्याय का प्रश्न है। भोजपुरी समाज को अपने सांसदों और विधायकों से इस दिशा में ठोस कदम उठाने की माँग करनी चाहिए। साथ ही, भोजपुरी साहित्य, संगीत, और सिनेमा के माध्यम से इस भाषा को और सशक्त करना होगा।जैसा कि महात्मा गाँधी ने कहा था: “एक राष्ट्र की प्रगति उसकी संस्कृति और भाषा की प्रगति में निहित है।” भोजपुरी को उसका उचित स्थान दिलाने के लिए, हमें अपनी माटी और मातृभाषा के प्रति गर्व करना होगा और इसके लिए निरंतर संघर्ष करना होगा।
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