मिट्टी की सेहत सुधारें, टिकाऊ खेती अपनाएं : डॉ. मांधाता सिंह
देवरिया -कृषि विज्ञान केंद्र (भाकृअनुप-भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी), मल्हना, देवरिया एवं कृषि विभाग देवरिया के संयुक्त तत्वावधान में कृषि संकल्प अभियान के अंतर्गत आज कार्यक्रम का दसवां दिन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। यह आयोजन विकासखंड देसाई देवरिया के बैजनाथपुर, पिपरा मदन, हेतिमपुर, भटनी दादन, नौतन फ़तियागढ़, हरैया बासबपुर, पड़ौली, शामपुर एवं बड़वामीर छापर गांवों में किया गया।
कार्यक्रम के दौरान डॉ. मांधाता सिंह, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केंद्र देवरिया ने कहा कि “मिट्टी की उर्वरता हमारे खेतों की असली पूंजी है। टिकाऊ खेती के लिए हमें उसकी देखभाल करनी होगी। जैविक व प्राकृतिक तकनीकों से न सिर्फ उपज में सुधार होता है, बल्कि भूमि लंबे समय तक उत्पादक बनी रहती है।” उन्होंने किसानों से प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करने का आह्वान किया।
सुभाष मौर्य, उप निदेशक, कृषि विभाग देवरिया ने कहा कि “आज की खेती को लाभकारी और पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए किसानों को रासायनिक खेती से हटकर प्राकृतिक खेती अपनानी चाहिए। इससे उत्पादन की लागत घटती है और बाजार में जैविक उत्पादों की अच्छी मांग भी है।
” डॉ. रजनीश श्रीवास्तव, वैज्ञानिक (उद्यान), ने सब्जी उत्पादन में जैविक उर्वरकों की उपयोगिता बताई और उन्नत किस्मों, संकर बीजों, बिछावन विधि तथा मेडों पर खेती जैसी तकनीकों की जानकारी दी।
डॉ. कमलेश मीना, वैज्ञानिक (सस्य विज्ञान), ने प्राकृतिक खेती के प्रमुख घटकों – बीजामृत, जीवामृत, घन जीवामृत, ब्रह्मास्त्र और नीमास्त्र – की भूमिका को सरल भाषा में समझाया।
जय कुमार, वैज्ञानिक (गृह विज्ञान), ने बताया कि “कैसे स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर कम पूंजी में स्वरोजगार शुरू किया जा सकता है और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर इसे एक व्यवस्थित व्यवसाय का रूप भी दिया जा सकता है।
डॉ. अंकुर शर्मा, वैज्ञानिक (पशु जैव प्रौद्योगिकी), ने कहा कि “पशुपालन, खासकर छोटे और सीमांत किसानों के लिए आय का स्थायी और भरोसेमंद स्रोत बन सकता है।” उन्होंने वैज्ञानिक तरीके से पशुपालन करने की सलाह दी।
मृत्युंजय सिंह, जिला कृषि अधिकारी, ने किसानों से जैविक खेती की ओर बढ़ने का आह्वान करते हुए इसे दीर्घकालिक टिकाऊ कृषि का माध्यम बताया।
इंद्रसेन कुमार विश्वकर्मा ए.डी.ओ पौध संरक्षण, कृषि विभाग देवरिया ने जैविक और एकीकृत कीट प्रबंधन तकनीकों की जानकारी दी, जबकि फसल बीमा अधिकारियों ने किसानों को फसल बीमा की आवश्यकता और उसके लाभों से अवगत कराया। कार्यक्रम में लगभग 1500 किसान शामिल हुए।
उन्होंने विशेषज्ञों से सीधे संवाद कर अपनी शंकाओं का समाधान प्राप्त किया। कृषि संकल्प अभियान के तहत गाँव-गाँव जाकर किसानों को वैज्ञानिक जानकारी व तकनीकी मार्गदर्शन देने का यह क्रम लगातार जारी है।