बुद्ध के धम्म के साथ-साथ चिकित्सा विज्ञान के विकास में अपना बहुमूल्य योगदान प्रदान किया है-डाॅ0 श्री प्रकाश


द्वितीय व्याख्यान ‘‘चिकित्सा आयुर्विज्ञान के विकास में भगवान बुद्ध और उनके धम्म का योगदान‘‘ रहा। जिसके मुख्य वक्ता डाॅ0 श्रीप्रकाश, विभागाध्यक्ष, कायचिकित्सा विभाग, बाबू युगराज सिंह आयुर्वेदिक मेडिकल काॅलेज एवं चिकित्सालय, गोमतीनगर, लखनऊ (सम्बद्ध-महायोगी गुरू गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय, गोरखपुर) रहे।
आज के कार्यक्रम की अध्यक्षता विशिष्ट अतिथि डाॅ0 कुलदीप शुक्ल, सहायक आचार्य, संस्कृत एवं प्राकृत भाषा विभाग, दीनदयाल उपाध्याय, गोरखपुर वि0वि0गोरखपुर द्वारा की गई। कार्यक्रम का सफल संचालन अनुराग सुमन द्वारा किया गया।

बौद्ध धर्म जो कि विश्व का चतुर्थ सबसे बड़ा धर्म है, उसकी जन्मभूमि भारत है। जो कि छठी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 5वीं शताब्दी ई0 के मध्य अपने चरमोत्कर्ष पर रहा। व्याख्यान में विश्व के प्रसिद्ध बौद्ध स्थलों को पर्यटन के दृष्टिकोण से सभी को अवगत कराया गया। बौद्ध धर्मावलम्बियों के दृष्टिकोण से बोधगया, सारनाथ एवं कुशीनगर तीर्थ स्थल के रूप में उल्लेखनीय है। धार्मिक केन्द्रों के रूप में राजगीर, कपिलवस्तु, श्रावस्ती, सांची एवं अमरावती महत्वपूर्ण बौद्ध स्थल है।
कला और संस्कृति के दृष्टिकोण से अजन्ता, एलोरा, नालन्दा महाविहार, कार्ले, भाॅंजा, कन्हेरी को रखा जा सकता है। आधुनिक समय के बौद्ध स्थलों के रूप में धर्मशाला, लाहौल, स्पीति, गंगटोक, तवांग आदि स्थलों को रखा जा सकता है।
यूनेस्को द्वारा घोषित भारत के 43 सांस्कृतिक पुरास्थलों में भारत के 5 बौद्ध स्थलों को भी सम्मिलित किया गया है, जिनमें से अजन्ता गुफा (1983), एलोरा गुफा (1983), सांची (1989), बोधगया (2002), नालन्दा महाविहार (2016) प्रमुख हैं।
दूसरे सत्र के विषय विशेषज्ञ डाॅ0 श्री प्रकाश ने मुख्य वक्ता के रूप में ‘‘चिकित्सा आयुर्विज्ञान के विकास में भगवान बुद्ध और उनके धम्म का योगदान‘‘ विषय पर अपने व्याख्यान में कहा कि भगवान बुद्ध (563-483 ईसा पूर्व) करुणा के सागर थे, संसार के दुःख को मिटाना अपना परम लक्ष्य मानते थे । बुद्ध को चिकित्सा विज्ञान का काफी ज्ञान था, इसीलिए उनका दूसरा नाम ‘भैषज्य-गुरु’ है । तिब्बत, चीन, जापान में बुद्ध की भैषज्य-गुरु के नाम से विशेष मूर्तियां बनी हैं।
बुद्ध का पहला धम्म सार्वभौमिक चार आर्य सत्य है- दुख है, दुःख का कारण है, दुःख का निवारण है, दुःख निवारण का मार्ग है’। चिकित्सा विज्ञान में इसका उल्लेख इस प्रकार किया है, बीमारी विद्यमान है, क्योंकि इसका कारण है, दुख से मुक्ति है, क्योंकि इसके तरीके (कारण) हैं। प्राचीन भारत में रोगियों के देखभाल और चिकित्सा हेतु बहुत सारे औषधालय और चिकित्सालय मानव व पशुओं के लिए खोले गए थे, जिसमें से भगवान धन्वंतरि द्वारा संचालित पाटलिपुत्र (पटना) का आरोग्यविहार प्रमुख है। उन्होंने मगध साम्राज्य के सम्राट अजातशत्रु के भारी अवसाद के दुःख को ठीक किया था।
प्राचीन मैन्यूस्क्रीप्टों, शिलालेखों एवं अभिलेखों का अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि चिकित्सा विज्ञान के विकास में भगवान बुद्ध एवं उनका धम्म का योगदान का बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है। बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद कई बौद्ध संगीतियों का आयोजन करके धम्मादेशों और चिकित्सा विज्ञान को संकलित, व्यवस्थित एवं संरक्षित किया गया। जिसमें मुख्यतः विनय पिटक ‘भैषज्य स्कंधक’ (महा बग्ग-6), मूलसर्वास्तिवाद भैसज्यवस्तु, महासंघिक, संयुक्तनिकाय का धम्मचक्कप्पवत्तन-सुत्त या मज्झिमानिकाय का मालुंक्यपुत्तसुत्त, धम्मपद और मिलिंद पन्हो आदि है ।
भारत में बौद्ध बिहारों में, बौद्ध भिक्खु संघ द्वारा चिकित्सा विज्ञान विकसित हुआ और बौद्ध महाबिहारों (विश्वविद्यालयों) – जैसे तक्षशिला, नालंदा विक्रमशीला आदि में पाठ्यक्रम का हिस्सा बना जहाँ दुनियाभर से शिक्षार्थी भारत में शिक्षा प्राप्त करने आते थे । बौद्ध बिहारों को चिकित्सा व शिक्षा का प्रमुख केंद्र/ स्थान के रूप में विकसित किया गया था। बुद्ध के इसी योगदान के कारण भारत विश्वगुरु था ।
भगवान बुद्ध के समकालीन और उत्तरोत्तर बहुत से बौद्ध अनुयायियों ने भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में बुद्ध के धम्म के साथ-साथ चिकित्सा विज्ञान के विकास में अपना बहुमूल्य योगदान प्रदान किया है । जिसमें प्रमुख रूप से आत्रेय, अग्निवेश, जीवक, अशोक, नागार्जुन, धन्वन्तरि, चरक, सुश्रुत, बागभट्ट आदि का अभिलेखीय साक्ष्य मिलता है ।
इस शोध पत्र में यह दर्शाने का प्रयास किया गया है कि “बौद्धिस्ट मेडिसिन एण्ड सर्जरी” विश्व की एक प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है, जो बौद्धमय प्राचीन भारत (जंबूद्वीप) की अमूल्य धरोहर है और दुनिया की लगभग सभी चिकित्सा पद्धतियों के विकास की धारा का मूल स्रोत है ।
16 फरवरी, 2025 दिन रविवार को ‘‘दुनिया को रोशन करता बौद्ध धम्म एवं बुद्ध के आर्थिक सिद्धान्त‘‘ विषय पर आचार्य (डॉ०) राजेश चन्द्रा लखनऊ (भारत सदस्य, विश्व पार्लियामेन्ट एसो0 यू0एस0ए0) का व्याख्यान होगा।
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