547 जातक अट्ठकथाओं का अध्ययन करने पर बुद्धकीय प्रबंधन का अर्थ है सम्यक प्रबंधन-डाॅ0 जसवीर

व्याख्यान श्रृंखला में आज दो विषय विशेषज्ञों द्वारा व्याख्यान दिए गए। प्रथम व्याख्यान का विषय ‘‘बौद्ध धर्म और पर्यावरण‘‘ रहा।
जिसकी मुख्य वक्ता एवं विषय विशेषज्ञ प्रोफेसर (डॉ०) मालविका रंजन, इतिहास विभाग, सामाजिक विज्ञान संकाय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी रहीं। द्वितीय व्याख्यान ‘‘बुद्धकीय प्रबंधन उर्फ सम्यक प्रबंधन: परिचय एवं प्रयोग‘‘ पर डॉ० जसवीर सिंह चावला जी द्वारा प्रस्तुत किया गया। साथ ही डॉ०जसवीर सिंह चावला द्वारा निर्देशित जातक अट्ठकथाओं पर आधारित लघु फिल्म ” नेक सलाह” का प्रदर्शन भी किया गया।
आज के कार्यक्रम की अध्यक्षता विशिष्ट अतिथि डॉ० पारोमिता शुक्ला बैद्या, पूर्व निदेशक, पर्यटन एवं अतिथि सेवाएं, प्रबंध विद्यापीठ इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय इग्नू नई दिल्ली द्वारा की गई। कार्यक्रम का सफल संचालन रीता श्रीवास्तव, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी कलाकार गोरखपुर द्वारा किया गया।

डाॅ0 जसवीर सिंह चावला ने ‘‘बुद्ध की प्रबंधन उर्फ सम्यक प्रबंधन: परिचय एवं प्रयोग‘‘ पर अपने व्याख्यान के दौरान कहा कि 547 जातक अट्ठकथाओं का अध्ययन करने पर बुद्धकीय प्रबंधन का जो मॉडल उभर कर आता है, उसे सूत्र रूप में अगर व्यक्त करना हो तो वह है सम्यक प्रबंधन।
सम्यक अर्थात ऐसा प्रबंधन जो शुभ-शुभ की परिणिति दे यानी जिसमें सभी हितधारक प्रसन्न हों, संतुष्ट हों। यही मॉडल किसी भी देश को समृद्ध और हिंसा रहित बना सकता है, जिसमें व्यर्थ की स्पर्धा, व्यर्थ की मार-काट ,हिंसा -प्रति हिंसा न हो । शांति का साम्राज्य हो ।भगवान बुद्ध की अट्ठकथाओं में बोधिसत्व का चरित्र एक आदर्श बुद्धिस्ट प्रबंधक की तरह दर्शाया गया जो आन पड़ी समस्या को इस तरह निपटाता है कि उसमें हर वर्ग संतुष्ट होता है। यदि कहीं अहिंसा अथवा अनैतिकता का सहारा लेना भी पड़ता है तो एक बड़े उद्देश्य को सामने रखा जाता है , जिससे सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय, सब का मंगल होए का सिद्धांत लागू रहता है। यही जातक अर्थ कथाओं का निरूपित मर्म है।
कोई भी नियम अक्षरशः पालन नहीं हो पाता ,उसमें विचलन स्वाभाविक है। अगर यह विचलन नियंत्रण में हो तो समस्या सुलझा ली जाती है। अतिवाद से बचते हुए एक बीच का रास्ता निकाला जा सकता है। यदि अतिवाद अपनाया जाता है तो प्रणाली अथवा सिस्टम ध्वस्त हो जाता है। अतः सम्यक प्रबंधन सदैव अतिवाद का निषेध करता है।
जातक अट्ठकथाओं का अतीतवत्थु वाला हिस्सा मैनेजमेंट की केस स्टडी है। मॉडर्न मैनेजमेंट जहां प्रॉफिट मैक्सीमाइजेशन की बात करता है, वहीं बुद्धकीय प्रबंधन मानवीय सरोकारों को साथ लेकर चलना सिखाता है। पर्यावरण, परिवेश, प्रकृति, जैव-विविधता, अंतरिक्षादि समस्त घटकों के साथ सम्बंध संतुलन करते सम्यक प्रबंधन करना जातक से सीखा जा सकता है।
आज की सबसे बड़ी चुनौती का सामना करने के लिए आवश्यक है कि मॉडर्न मैनेजमेंट के साथ सम्यक प्रबंधन की शिक्षा इस पीढ़ी को मिले। पहले भारतवर्ष में फिर अन्यत्र। हम पेटेंट बनाकर इसका धंधा करने में विश्वास नहीं करते। पूरी मानवता लाभान्वित हो! सब्बे सत्ता सुखी भवन्तु!
आज की मुख्य वक्ताओं को संग्रहालय की ओर से स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित भी किया गया।

15 फरवरी, 2025 दिन शनिवार को ‘‘पर्यटन के दृष्टिकोण से बौद्ध पुरास्थलों का महत्व‘‘ विषय पर प्रोफेसर (डॉ०) पारोमिता शुक्ला बैद्या, पूर्व निदेशक, पर्यटन एवं अतिथि सेवाएं, प्रबंध विद्यापीठ इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) नई दिल्ली का व्याख्यान होगा।
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