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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 12 Jan 2025 5:02 PM |   136 views

विवेकानंद और महर्षि महेश योगी

स्वामी विवेकानंद और महर्षि महेश योगी दोनों अपने-अपने समय के महान चिंतक और आध्यात्मिक विचारक थे। उन्होंने भारतीय दर्शन, योग और आध्यात्मिकता को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया। उनके विचारों और शिक्षाओं में समकालीन दृष्टि की प्रासंगिकता इस तथ्य में निहित है कि उन्होंने न केवल अपने युग की समस्याओं और चुनौतियों का समाधान खोजा, बल्कि आने वाले समय के लिए भी मार्गदर्शन प्रदान किया। उनकी दृष्टि केवल धर्म और अध्यात्म तक सीमित नहीं थी; यह मानवता, शिक्षा, सामाजिक सुधार और व्यक्तिगत विकास के हर पहलू को समाहित करती है।
 
स्वामी विवेकानंद का दृष्टिकोण उनके समय की सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक समस्याओं के संदर्भ में विकसित हुआ। वे एक ऐसे युग में सक्रिय थे, जब भारत सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से कमजोर था। विदेशी शासन के कारण देश आत्मविश्वास और सांस्कृतिक गौरव खो चुका था।
 
ऐसे समय में विवेकानंद ने भारतीय युवाओं को जागरूक करने और उन्हें उनकी सांस्कृतिक विरासत का बोध कराने का बीड़ा उठाया। उन्होंने समाज में व्याप्त धार्मिक कट्टरता, जातिगत भेदभाव और अंधविश्वास को दूर करने की दिशा में काम किया। विवेकानंद ने शिक्षा को समाज में परिवर्तन का सबसे प्रभावी साधन माना। उनके अनुसार, ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है, जो मनुष्य को न केवल आत्मनिर्भर बनाए, बल्कि उसकी आंतरिक शक्ति को भी जागृत करे।
 
महर्षि महेश योगी का समकालीन दृष्टिकोण इस बात पर आधारित था कि आधुनिक युग की समस्याओं का समाधान वैदिक ज्ञान और ध्यान के माध्यम से संभव है। वे एक ऐसे समय में सक्रिय थे, जब दुनिया तेजी से औद्योगीकरण, तकनीकी प्रगति और भौतिकता की ओर बढ़ रही थी। इस प्रक्रिया में मानसिक तनाव, अवसाद और जीवन में संतुलन की कमी जैसी समस्याएँ उभर रही थीं। महर्षि ने ट्रान्सेंडेंटल मेडिटेशन (टीएम) के माध्यम से यह सिखाया कि कैसे ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपने मन को शांत कर सकता है और अपने जीवन में सकारात्मकता ला सकता है। उनका मानना था कि आधुनिक समस्याओं का समाधान बाहरी साधनों में नहीं, बल्कि आंतरिक शांति और चेतना के विकास में है।
 
स्वामी विवेकानंद और महर्षि महेश योगी दोनों का मानना था कि व्यक्तिगत और सामाजिक परिवर्तन के लिए आत्मबोध आवश्यक है। विवेकानंद ने आत्मनिर्भरता और कर्मयोग पर बल दिया। उनके अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति में अनंत संभावनाएँ छिपी होती हैं, जिन्हें जागृत करने की आवश्यकता है। वे कहते थे कि यदि भारत के युवा अपनी ऊर्जा को जागृत करें, तो वे न केवल अपने जीवन को, बल्कि पूरे समाज को बदल सकते हैं। वहीं, महर्षि महेश योगी ने यह सिखाया कि ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपनी चेतना को विस्तारित कर सकता है और अपने भीतर छिपी शक्तियों को पहचान सकता है।
 
दोनों महान व्यक्तियों का यह विश्वास था कि अध्यात्म केवल पूजा-पाठ या ध्यान तक सीमित नहीं है। उन्होंने इसे जीवन के हर क्षेत्र में लागू करने की बात की। विवेकानंद ने धर्म को मानवता की सेवा का माध्यम माना। उनके अनुसार, सच्ची आध्यात्मिकता वही है, जो समाज के गरीब और कमजोर वर्गों की सेवा में समर्पित हो। वहीं, महर्षि महेश योगी ने ध्यान और योग को न केवल आत्मिक शांति का साधन बताया, बल्कि इसे स्वास्थ्य, शिक्षा और व्यवसाय के क्षेत्रों में भी लागू किया। उनका कहना था कि यदि मनुष्य मानसिक रूप से शांत और संतुलित होगा, तो वह किसी भी क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर सकता है।
 
स्वामी विवेकानंद और महर्षि महेश योगी की समकालीन दृष्टि का एक और पहलू यह है कि उन्होंने भारतीय दर्शन और संस्कृति को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत किया। विवेकानंद ने शिकागो में अपने ऐतिहासिक भाषण के माध्यम से यह दिखाया कि भारतीय वेदांत दर्शन न केवल धार्मिक, बल्कि मानवीय समस्याओं का समाधान प्रदान कर सकता है। उन्होंने पश्चिमी देशों को यह सिखाया कि कैसे भारतीय दर्शन जीवन के उच्चतम उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायक हो सकता है। इसी प्रकार, महर्षि महेश योगी ने ट्रान्सेंडेंटल मेडिटेशन के माध्यम से ध्यान को पश्चिमी देशों में लोकप्रिय बनाया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि योग और ध्यान केवल भारतीय परंपरा का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि ये पूरे विश्व के लिए उपयोगी हैं।
 
दोनों व्यक्तित्वों ने अपने-अपने समय की समस्याओं को गहराई से समझा और उनके समाधान के लिए प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाया। विवेकानंद ने कहा कि भारत को अपनी समस्याओं का समाधान अपनी संस्कृति और परंपराओं में खोजना चाहिए, न कि पश्चिमी सभ्यता की नकल करके। उन्होंने भारतीय युवाओं से कहा कि वे अपनी जड़ों से जुड़े रहें और अपनी सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व करें। वहीं, महर्षि महेश योगी ने आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए ध्यान और योग की व्याख्या की। उन्होंने वैज्ञानिक शोधों के माध्यम से यह सिद्ध किया कि ध्यान मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए कितना लाभकारी है।
 
दोनों महापुरुषों ने यह भी दिखाया कि आत्मज्ञान और सामाजिक जिम्मेदारी एक-दूसरे के पूरक हैं। विवेकानंद ने “नर सेवा नारायण सेवा” का संदेश दिया और कहा कि ईश्वर की सच्ची पूजा तभी संभव है, जब हम मानवता की सेवा करें। वहीं, महर्षि महेश योगी ने यह सिखाया कि ध्यान केवल आत्मिक शांति के लिए नहीं है, बल्कि इसके माध्यम से हम समाज और विश्व में सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार कर सकते हैं। उन्होंने “वैश्विक चेतना” के विचार को आगे बढ़ाया और यह बताया कि यदि अधिक लोग ध्यान करें, तो यह सामूहिक रूप से समाज में शांति और संतुलन ला सकता है।
 
वर्तमान समय में स्वामी विवेकानंद और महर्षि महेश योगी की समकालीन दृष्टि की प्रासंगिकता और भी अधिक बढ़ जाती है। आज की दुनिया में, जहाँ लोग तनाव, अवसाद और मानसिक असंतुलन का सामना कर रहे हैं, उनके विचार और शिक्षाएँ जीवन को संतुलित और सार्थक बनाने का मार्ग दिखाते हैं।
 
विवेकानंद का यह संदेश कि “उठो, जागो और अपने लक्ष्य तक पहुँचने तक मत रुको,” आज के युवाओं को प्रेरित करता है कि वे अपने जीवन के उद्देश्य को समझें और उसे प्राप्त करने के लिए मेहनत करें। वहीं, महर्षि महेश योगी का यह विचार कि “ध्यान के माध्यम से मनुष्य अपनी चेतना का विस्तार कर सकता है,” मानसिक शांति और आत्मिक उत्थान की दिशा में एक प्रभावी उपाय है।
 
इन दोनों महापुरुषों की शिक्षाएँ यह सिद्ध करती हैं कि भारतीय दर्शन और संस्कृति में न केवल व्यक्तिगत विकास, बल्कि सामाजिक और वैश्विक समस्याओं का समाधान भी छिपा हुआ है। वे यह दिखाते हैं कि सच्ची प्रगति वही है, जो आत्मज्ञान, सेवा और शांति पर आधारित हो।
 
उनकी समकालीन दृष्टि हमें यह सिखाती है कि चाहे समस्याएँ कितनी भी जटिल क्यों न हों, यदि हम अपनी आंतरिक शक्ति और चेतना को जागृत करें, तो हम हर चुनौती का सामना कर सकते हैं। उनके विचार और शिक्षाएँ आज भी मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं और आने वाले समय में भी मार्गदर्शन करती रहेंगी।
 
— परिचय दास प्रोफेसर, नव नालंदा महाविहार  विश्वविद्यालय, नालंदा |
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