आ अब लौट चले “गाँव की ओर”
खेती सिर्फ आजीविका का साधन ही नहीं है, बल्कि यह जीवन की गुणवत्ता को सुधारने और समाज को स्थिरता प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। खेती करना न केवल इंसान की मूलभूत जरूरतें पूरी करता है, बल्कि इसके कई अन्य फायदे भी हैं। यहाँ खेती करने के कुछ मुख्य लाभ हैं-
प्राकृतिक और शांत वातावरण-
गाँवों में प्रदूषण रहित हवा, हरियाली, और सुकून भरा माहौल होता है, जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। कलुषित माहौल और खाद्य आपको सिर्फ अस्पतालों का ICU वार्ड पहुंचाने का रास्ता दिखा रहे होते हैँ, जिनके लिये असल में अंधाधुंध पैसे कमाने में शहर की तरफ सभी दौड़ पड़े हैँ।
आर्थिक लाभ-
खेती किसानों की आय का मुख्य स्रोत है। फसलों, सब्जियों, और फलों को बेचकर किसान पैसा कमा सकते हैं। इसके अलावा, जैविक खेती, बागवानी, और पशुपालन जैसे आधुनिक तरीकों से अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है। कोविड -19के दौर में भी यही समझ आ सका कि सिर्फ और सिर्फ खेती ही वो सेक्टर बची थी जिसने नकारात्मक आर्थिक रुझान नही छुआ था। सभी उस दौर गाँव में ही लौटे थे और गाँव में रहने वालों ने सभी को समेट लिया था।
भोजन की आपूर्ति-
खेती से अनाज, सब्जियाँ, फल, और अन्य खाद्य सामग्री का उत्पादन होता है, जो पूरी मानव जाति की भोजन की आवश्यकताओं को पूरा करता है। समाज जिस विश्व युद्ध और भुखमरी सँग भोजन की मारामारी की तरफ बढ़ रहा है, उसे सिर्फ खेती ही रोक सकती है।
स्वास्थ्य और पोषण-
जैविक खेती से रसायन-मुक्त और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन उपलब्ध होता है, जो इंसान के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।
पर्यावरण संरक्षण-
सही तरीके से की गई खेती पर्यावरण को लाभ पहुंचाती है। यह मिट्टी की उर्वरता बनाए रखती है, पेड़-पौधों को बढ़ावा देती है, और कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करने में मदद करती है।
रोज़गार का साधन-
खेती ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर प्रदान करती है। इसके साथ ही, इससे जुड़े उद्योग जैसे खाद, बीज, और कृषि यंत्र भी रोजगार के स्रोत हैं।
आत्मनिर्भरता-
खेती करने से लोग अपनी खाद्य जरूरतों को खुद पूरा कर सकते हैं, जिससे आत्मनिर्भरता बढ़ती है। यह विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों के लिए महत्वपूर्ण है।
सामाजिक और सांस्कृतिक लाभ-
खेती भारतीय समाज और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। यह त्योहारों और परंपराओं को जीवित रखने में योगदान देती है।
जलवायु अनुकूलन-
कृषि सही ढंग से की जाए तो यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में सहायक हो सकती है।
गाँव में जीवन सस्ता होता है। घर, शिक्षा, और अन्य जरूरतें शहर की तुलना में कम लागत में पूरी होती हैं। इक्षाएं भी अति नही रहती क्यूँकि हरेक जीभ/मन ललचाउ गैर जरूरी संसाधन कम दिखते हैँ और सबसे जरूरी बच्चे/महिलायें या पुरुष भी परिवार की क्षमता और भविष्य की बचत अनुसार ही सोच समझ कर कुछ भी आपस में विचार करके ही खर्च करते हैँ जो सबसे जरूरी संसाधन होते हैँ, शहरों में ये अक्सर ही लोन और EMI, क्रेडिट कार्ड के बहाने बढ़ा लिये जाते हैँ जिन्हे गाँव में कहीं भी बहुत ज्यादा स्थान नही दिया जाता है।
संतुलन का महत्व-
कॉर्पोरेट जीवन उन लोगों के लिए बेहतर है जो करियर, आधुनिक जीवनशैली, और आर्थिक स्थिरता को प्राथमिकता देते हैं, जबकि किसानी जीवन उन लोगों के लिए बेहतर है जो सरल, आत्मनिर्भर और प्रकृति के करीब जीवन जीना चाहते हैं। कॉर्पोरेट जीवन की तुलना में गाँव में तनाव और प्रतिस्पर्धा कम होती है। यहाँ जीवन सरल और सहज होता है। आजकल, कई लोग गाँवों में रहकर शहर की तकनीक और कॉर्पोरेट कामों का लाभ उठा रहे हैं। रिमोट वर्क, डिजिटल मार्केटिंग, और ऑनलाइन व्यापार ने दोनों जीवनशैलियों के बीच एक पुल बनाया है।

डॉ शुभम कुमार कुलश्रेष्ठ सहायक प्राध्यापक -उद्यान विभाग
रविंन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, रायसेन, मध्य प्रदेश|
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