” मेरे प्रभु “
प्रभु , तेरी ये कैसी रीति है
कैसा तेरा है न्याय ,
कि सीधे सच्चे लोग को ही
सहना पड़े अन्याय ।
झूठे की आंख में शर्म नहीं
पर ,सच की आंख लजाय
झूठ का चोला पहन के इंसा
सच को रहा भरमाय ।
झूठे शान से बोलता
नभ में झंडा लहराय
पर ,सच की ही गर्दन देखो
शर्म से नीचे झुक जाय ।
प्रभु, ये कैसी तेरी लीला है
कैसा तेरा है न्याय
कि, झूठों के जैसा ही तुम भी
सच को ही गिराते खाय (खाई) ।
मैंने सीखा सच बोलना
और सीखा करना न्याय
इसीलिए दुःख भोगती
और सहती सदा अन्याय ।
प्रभु, तेरी बताई राह पे ही
सदा धरुं मैं पांव
फिर भी मैं ही दुःखी रहूं
और कांटे चुभे मेरे पांव ।
तुमने ही तो सिखलाया
हरदम दूं सच का साथ
फिर तुम क्यों मझधार में
ना पकड़ा मेरा हाथ ।
संजुला सिंह ” संजू “
जमशेदपुर (झारखंड )
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