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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 24 Jun 2024 4:48 PM |   57 views

बुद्ध विचार

 
 
“मातापितु उपट्ठानं,
पुत्तदारस्स सङ्गहो।
अनाकुला च कम्मन्ता,
एतं मङगलमुत्तमं।।”
 
श्रावस्ती के अनाथपिंडिक के द्वारा बनाए गए जेतवन विहार मेंभगवान ने कहा-
 
“माता-पिता की सेवा करना, पुत्र-स्त्री(पत्नी)का पालन-पोषण करना और गड़बड़ का काम न करना- 
यह उत्तम मंगल है।”
 
“मातापितु उपट्ठiनं” – माने माता पिता की सेवा करना।
 
उनके खानपान की, रहन सहन की, पहनने ओढ़ने की,दवा इत्यादि सभी आवश्यकताओं की उचित व्यवस्था करना।वृद्धावस्था में उनकी और भी सभी जरुरतो को पूरा करना।उनकी सुख सुविधा का पूरा प्रबंध करना।असीम उपकार है माता पिता का। माता पिता जननी है, जनक है।
 
कहने को तो कोई कहता है की कोई ब्रह्मा हमारा सृजन करता है। परंतु प्रत्यक्ष सच्चाई तो यह है कि माता-पिता ही हमारे सब कुछ है। वे ही हमारा सृजन करते हैं। मनुष्य तो मनुष्य पशु और पक्षी भी अपनी संतान को बचाने के लिये अपने जीवन तक की बाजी लगा देते हैं।
 
ऐसे जन्मदाता, सृजनकर्ता, पालनकर्ता, और संरक्षणकर्ता माता-पिता को भगवान बुद्ध ने ब्रह्मा कहा तो ठीक ही कहा।भगवान ने माता पिता को आदि आचार्य भी कहा। नन्हा सा बालक अपने माता पिता के मुख से निकले बोल सुन सुनकर बोलना सीखता है। इसलिये माँ के दूध के साथ जो भाषा सीखी जाती है, वह मातृभाषा कहलाती है।
 
माता का प्यार भरा सुख, पिता का दुलार भरा सुख किसी काल्पनिक स्वर्गीय सुख से भी कहीं अधिक महान है।जाड़े की ठंडी रात में संतान द्वारा गीले किये गए बिस्तर पर माँ स्वयं सोती है और सूखे भाग पर संतान को सुलाती है। अभाव के दिनों में संतान का पेट भरते हैं और कभी कभी स्वयं भूखे रह जाते हैं।
 
भगवान ने माता पिता को आदि देव भी कहा। जिन अदृश्य देवताओं को हम पूजते हैं, उनके मुकाबले माता पिता प्रत्यक्ष देवता हैं और पूज्य हैं।गृहपति सिगाल पुत्र को हाथ जोड़ कर पूरब दिशा को पूजते हुए देखकर  भगवान ने कहा की माता पिता ही पूरब दिशा हैं,उन्हें हाथ जोड़ कर पूजें- यही सही पूजा है।
 
माता पिता का उपकार असीम है। इस कारण संतान द्वारा उनका पूजन अर्चन, उनकी सेवा सत्कार करना यही सही दिशा वंदन है, यही उत्तम मंगल भी है।ऐसे महान उपकारी माता पिता की सेवा तो दूर उनका अनादर करना, उन्हें भूखे मारना, और उनपर हाथ उठाना अत्यंत जघन्य दुष्कर्म है।माता पिता को दुःख देना जघन्य पाप कर्म है।
 
पूत, कपूत हो जाए तो भी,
माता, कुमाता कभी न होय।
रोम रोम से यही ध्वनि निकले, 
बेटा तेरा मंगल होय।
 
माता का वात्सल्य असीम होता है।इसी प्रकार पिता का वात्सल्य भी असीम होता है।
दोनों का उपकार असीम होता है।जब खुद पिता होता है तब अपने पुत्र-पुत्री व पत्नी आदि परिवार की देखभाल करना और कोई गडबड वाला काम न करना मनुष्य के लिए उत्तम मंगल है।
 
डॉ नंदरतन थेरो, कुशीनगर
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