पोटाश का खेती में प्रयोग
पोटाश का खेती में प्रयोग करने से मिट्टी की फसलों के खाद्य संश्लेषण को संतुलित किया जा सकता है, जिससे उत्पादकता बढ़ती है और फसलों की गुणवत्ता में सुधार होता है।पोटाश इसके साथ ही फसल को विभिन्न मौसमी तनावों को झेलने में भी मदद करता है जैसे – अत्यधिक लू (गर्मी की हवाएं), ठंड और बरसात।
पोटाश पौधोँ को पोषण देने वाले मुख्य तत्व में से एक है और भारतीय मिट्टी में इसकी अधिकता ने इस तरफ ध्यान कम देने की मानसिकता सी बढ़ाये रख दी थी लेकिन लगातार एक ही जैसे फसल चक्र और दिन प्रतिदिन खेत में अवशेष न सड़ाने न अन्य कोई कम्पोस्ट खाद देने से भारतीय खेती में पोटाश की कमी के लक्षण बहुत तेजी से बढ़ते दिखाई दिये हैँ, ये लेख इसकी कमी और इनके समाधान जैसे ऐसे ही कुछ सुझावों पर केंद्रित।
कमी के लक्षण-
- पोटाश की कमी के लक्षण भी नाइट्रोजन और फोस्फोरस की तरह ही पौधे की निचली पत्तीयों पर ही दिखेंगे।
- शुरू में पत्ते सभी किनारों से लाल और फिर जले हुए दिखेंगे.
अन्त प्रभाव में दाने या फल में चमक कम और सिकुड़न ज्यादा बढ़ेगी और वजन कम होने या क्वालिटी खराब होने के लक्षण साफ ही साफ अन्त में प्रोडक्ट पर दिखाई देंगे जिससे उत्पादन और मिलने वाला मूल्य बुरी तरह प्रभावित होता है।
पोटाश की मोबिलिटी जमीन में बेहद धीमे होती है इसलियर हमेशा ही इसे बेसल डोज में शुरू से कम ही डाला जाता है जिससे अन्त तक इसके प्रभाव फसल में आ जायें। बचाव ही उपचार के तर्ज पर पोटाश इसी वक्त से सल्फेट ऑफ़ पोटाश फॉर्म में दिये जा सकते हैँ। फसल में कमी दिखने पर शुरू की अवस्था जब नाइट्रोजन की भी जरूट रहती तभी ही 13:0:45 देना चाहिये फूल आ चुके हों और दाने भरते या दुग्धवस्था में नाइट्रोजन देने से इस स्टेज में कीड़े और बिमारी का प्रकोप बढ़ जाता है या फसल गिरती भी है इसलिये इस वक्त नाइट्रोजन न जाये यही बेहतर करते हुए 0:52:34 या देर की अवस्था में 0:0:50 का दिया जाना जरूरी आन पड़ता है जिससे अन्त समय में तुरंत प्रभाव दिखाते हुए पोटाश की कमी को तुरंत सुधारा जा सके।
इसके अलावा बेसल डोज में दिये जाने के NPK मिश्रण वाले ढेरों उर्वरको जैसे 10:26:26,12:32:16 और अन्य को दिया जा सकता है लेकिन इनकी उपलब्धता भी कम है और बाकि बची मात्रा के लिये अलग से फसल फसल पर अलग ही तीनों ही तत्वों की मात्रा अनुसार दूसरे उर्वरकों से देना पड़ जाता है।
कुछ अलग पोटाश आधारित उर्वरक जैसे पोटेशियम सल्फेट, मोनो अमोनियम फोसफेट आदि से पोटाश के अलावा अलग अलग तत्व प्राप्त होते हैँ जिनको फसल जैसे तेल (मूंगफली, सरसो, सोयाबीन) या सल्फर आधारित क्वालिटी (प्याज, लहसुन आदि ) मे देने से उत्पादन और क्वालिटी दोनों ही काफी अच्छी बढ़ जाती है।
पानी मे घुलनशील सबसे ज्यादा प्रचारित NPK उर्वरक 19:19:19 को शुरूआती या पुष्पन अवस्था में कभी भी 15-15 दिन के अंतराल छिड़काव या टपक सिंचाई में हरेक सप्ताह में 2 बार देते रहने से फसल के प्रभाव अलग उच्च क्वालिटी वाले देखने को मिलते हैँ।
जैविक खेती में केले के फल देने बाद बचे बेकार तने को सड़ा कर बनाई फार्म या वर्मी कम्पोस्ट खाद / पंचगव्य / चौड़े पत्तों की राख जैसी पोटाश से परिपूर्ण जैविक स्त्रोत शुरूआती समय से देने से पोटाश की कमी नही दिखाई देती है।
जैविक खेती में रासायनिक की तरह किसी 1 या 2 तत्व विशेष के लिये कोई ऐसी स्त्रोत रचना नही है जिसमे सिर्फ वही अकेले आ सकें और अन्य न हों इसलिये सम्पूर्णतःबनाये हुए जहाँ ज्यादा कमी लगे वहाँ इन खाद का प्रयोग बढ़ाया तो जा सकता है लेकिन इसके साथ ही ये अन्य तत्वों की भी अच्छी पूर्ति करेंगे।
डॉ. शुभम कुमार कुलश्रेष्ठ,विभागाध्यक्ष-उद्यान विज्ञान
केन्द्र समन्वयक-कृषि शोध केन्द्र,कृषि संकाय
रविन्द्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय,रायसेन, मध्य प्रदेश
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