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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 20 Jan 2024 4:00 PM |   808 views

गर्मियों में उर्द  की खेती कर मुनाफा कमाएं किसानःप्रो. रवि प्रकाश

गर्मियों में विभिन्न दलहनी  फसलों में उर्द की खेती का विशेष स्थान है।  उर्द की खेती के फायदों को देखते हुए प्रसार्ड ट्रस्ट मल्हनी भाटपार रानी देवरिया  के निदेशक  प्रो. रवि प्रकाश मौर्य (सेवानिवृत्त वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष )  ने  बताया कि जहाँ पानी की व्यवस्था हो वहाँ  उर्द की खेती इस समय जायद  की जा सकती  है।
 
प्रो.मौर्य के  अनुसार  इसकी खेती करने से अतिरिक्त आय, खेतों का खाली समय में सदुपयोग, भूमि की उपजाऊ शक्ति में सुधार, पानी का सदुपयोग आदि के कई फायदे बताए गए है। तथा यह भी बताया कि रबी दलहनी फसलों  में हुए नुकसान की कुछ हद तक भरपाई  भी हो जायेगी। 
 
जलवायु- उर्द  में गर्मी सहन करने की क्षमता अधिक होती है  इसकी वृद्धि के लिये 27-35 सेंटीग्रेट तक तापमान अच्छा रहता है।
 
मृदा एवं खेत की तैयारी-  उपजाऊ एवं दोमट या बलुई दोमट मृदा, जिसका पी.एच मान 6.3 से 7.3 तक हो तथा जल निकास की व्यवस्था हो तो अच्छी होती है। 
 
बुआई का उचित समय- 15 फरवरी से  15 मार्च तक बुआई अवश्य कर दें । देर से बुआई करने से फूल एवं फलियां गर्म हवा के कारण तथा बर्षा होने से क्षतिग्रस्त  हो सकती है।
 
उन्नतशील किस्में-  वल्लभ उर्द-1, प्रताप उर्द-1, पन्त उर्द-10, आई.पी.यू-11-2, आई.पी.यू.-13-1 है। यह किस्में  सिंचित इलाकों में गर्मियों के मौसम में उगाई जाती है। जो 75 से 80 दिनोँ में पक कर तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार प्रति एकड़ 4 से 5 कुंतल है।
 
बीज की मात्रा ,बीजोपचार एवं दूरी-   गर्मियों में उर्द का पौधा कम बढ़ता है।10 -12 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ में डालना चाहिए। कुड़ों मे 4-5 से .मी. की गहराई पर पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25- 30 से.मी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 10 सेमी. पर बुआई  करने से जमाव ठीक होता है। उर्द के बीज जनित  रोगों  से बचाव के लिए उपचार हेतु प्रति किलोग्राम बीज में 5  ग्राम ट्राइकोडर्मा  का प्रयोग करें। इसके बाद बुआई के 8-10घंटे पहले  100 ग्राम गुड़ को  आधा लीटर पानी में घोलकर  गर्म कर लें।  ठंडा होने के बाद  उर्द  के  राईजोबियम कलचर  एक पैकेट  को गुड़ वाले घोल में डालकर  मिला लें। तथा उसे  बीजों पर छिड़क कर हाथ से अच्छी तरह से मिला दें। जिससे प्रत्येक दाने पर टीका चिपक जाए। इसके बाद बीज को छाया में सुखाकर बुआई करनी चाहिए।
 
खाद ए्वं  उर्वरक  प्रबंधन –मृदा परीक्षण के आधार पर खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करें । समान्यतः 40 किग्रा. डी.ए.पी. 13 किग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश एवं 50 किग्रा. फास्फोजिप्सम प्रति एकड़ में प्रयोग से उपज मे विशेष बृध्दि होती है। बुआई के समय उर्वरक कूड़ों में  देनी चाहिए। 
 
सिंचाई – सिंचाई  भूमि के प्रकार, तापमान एवं  हवा की तीब्रता पर निर्भर करती है। 3-4 सिंचाई प्रर्याप्त  होती है,  पहली सिंचाई  बुआई के 30 से 35 दिन के पश्चात करें। पहली सिंचाई बहुत जल्दी करने से जड़ो तथा ग्रन्थियों का विकास ठीक प्रकार नही होता है। बाद  आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अन्तराल पर हल्की  सिंचाई करें। बुआई के 50-55 दिन बाद सिंचाई न करें।  स्प्रिंकलर से सिंचाई ज्यादा लाभप्रद होता है।
 
खरपतवार प्रबंधन – गर्मी मे खरपतवार कम उगते है फिर भी  बुआई के  क्रांति काल( बुआई के 20-25 दिन पश्चात् )  तक  खरपतवार मुक्त फसल रखना आवश्यक  है।   
 
तोड़ाई –जब फलियां पक जाएं तो फलियों की तुड़ाई  कर सकते है। फलियां तोड़ने के बाद फसल को खेत में दबाने से फसल हरी खाद का काम करती है और खेत को मजबूती मिलती है।
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