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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 29 Dec 2023 4:13 PM |   142 views

सर्दियों में करें शिशु की देखभाल

सर्दियों का मौसम शिशुओं के लिए एक नाजुक मौसम होता है और सर्दी की शुरुआत शिशुओं के लिए विशेष तौर पर बहुत संवेदनशील होती है क्योंकि शिशु के तापमान में व्यस्क की अपेक्षा जल्दी गिरावट आती है। जितना छोटा शिशु होता है, उतनी ही आसानी से वह रोग ग्रसित हो सकता है क्योंकि उसके अंदर कंपकंपा कर अपने शरीर में गर्मी उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती है तथा उनके शरीर में इतनी वसा भी नहीं होती है जिसका प्रयोग कर वह अपने शरीर के अंदर गर्मी पैदा कर सकें। इसलिए स्वभाविक है कि शिशु को गर्म एंव सुरक्षित रखने हेतु उचित व्यवस्था की जाए। शिशु को गर्म रखने तथा सर्दियों में उनकी देखभाल करने के लिए माताओं को निम्न उपाय अपनाने चाहिए।
 
शिशु को आवश्यकता अनुसार ऊनी कपड़े पहनाएं –
बच्चो को मौसम के अनुसार ऊनी कपड़े पहनाना अत्यंत आवश्यक होता है। उनकी त्वचा अत्यंत नाजुक होती है इसलिए शिशु को सर्वप्रथम कोई सूती वस्त्र पहना कर उसके ऊपर ऊनी वस्त्र, स्वेटर अथवा जैकेट आदि पहनना चाहिए क्योंकि ज्यादा गर्म कपड़े पहनने पर यदि शिशु को पसीना आता है तो सूती वस्त्र उसे सोख लेता है और शिशु को आराम पहुँचाता है।
 
साथ ही ऊनी वस्त्र सीधे शिशु के संपर्क में नहीं आता है जिससे ऊनी रेशों के कारण शिशु की त्वचा पर किसी भी प्रकार का संक्रमण  नहीं होता है और चकत्त्ते भी नहीं पड़ते है। माताओं को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि शिशु को एक मोटा ऊनी कपड़ा पहनाने की अपेक्षा दो कम गर्म ऊनी कपड़े पहनाऐं। इससे यदि सर्दी में कमी होने लगे तो वे एक कपड़े को उतार भी सकती है। इससे बच्चे की सर्दी से बचत भी रहेगी और साथ ही उसे अनावश्यक रूप से पसीना व उलझन का शिकार भी नहीं होना पड़ेगा। शिशु के पैर में भी उचित रूप से गर्म वस्त्र जैसे पजामा, मोजा आदि पहनाने चाहिए। सिर व हाथों को भी उचित वस्त्रों से ढकना चाहिए जिससे शिशु का शरीर गर्म रह सके।
 
शिशु को घर के अंदर रखें –
सर्दी के मौसम में अक्सर तापमान में अचानक गिरावट आ जाती है और कई बार तेज हवाएं और बारिश  स्थिति को और भी गंभीर बना देती है। ऐसे में शिशु को घर के अंदर रखना उचित होता है। घर का तापमान उचित रखें जिससे शिशु को अत्याधिक वस्त्र ना पहनाने पड़े। कमरे का उचित तापमान 68 डिग्री फारेनहाइट से 72 डिग्री  फारेनहाइट माना गया है।
 
रात को सोते समय कमरे का तापमान 65 डिग्री फारेनहाइट से 68 डिग्री फारेनहाइट होना चाहिए। इससे शिशु सुरक्षित रहता है और कमरे के वातावरण में नमी की कमी भी नहीं होती है। कमरे का तापमान यदि ज्यादा गर्म हुआ तो वातावरण में नमी तथा ऑक्सीजन की कमी हो सकती है जिससे बच्चे के स्वास्थ्य तथा त्वचा पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। अतः माताओं को ध्यान देना चाहिए कि कमरे का तापमान सामान्य रूप से गर्म रहे। यदि कमरे को गर्म करने के लिए हीटर या आग का प्रयोग करते है, तो सोने से पूर्व उसे बन्द कर दे। वायु के संचार का ध्यान रखे अन्यथा ओक्सीजन की कमी से शिशु की शैया-मृत्यु हो सकती है।
 
 शिशु को बाहर ले जाते समय सावधानियां–
यदि किसी कारणवश शिशु को बाहर ले जाना आवश्यक है तो उसे उचित वस्त्र पहनाकर ऐसे संसाधनों से बाहर ले जाए कि शिशु को हवा न लगने पाए। समय-समय पर यह जांच करते रहें कि शिशु को कोई परेशानी तो नहीं हो रही है। घर से बाहर शिशु को अपने शरीर के पास ही रखें। मानव शरीर की गर्मी से शिशु सुरक्षित रहता है। उसके सिर और पैर हमेशा ढक कर रखें।  शिशु को ढककर रखते समय या उसके शरीर को गर्माहट देते समय ध्यान रखें कि उसको सांस लेने में तकलीफ ना होने पाए। यह सावधानी शिशु को वस्त्र पहनाते समय भी रखनी चाहिए।
 
शिशु के खानपान का ध्यान रखें –
नवजात शिशु का पहला भोजन मां का दूध ही है। शिशु को पहले 6 माह तक मां का दूध ही देना चाहिए क्योंकि मां के दूध में शिशु के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व उचित मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसके उपरांत शिशु को मां के दूध के साथ ऊपरी आहार देना शुरू कर देना चाहिए। शुरुआत में शिशु को दिए जाने वाला भोजन सौम्य,  तरल व गुनगुना होना चाहिए। तदोपरांत शिशु को अर्ध ठोस आहार देना चाहिए जैसे हलवा, खिचड़ी, मसला हुआ केला, उबला सेब आदि।
 
आठवें माह के पश्चात्, जब शिशु के दांत निकलना प्रारंभ होने लगे तो उसे ठोस आहार देना चाहिए। शिशु का आहार अधिक तीखा, मिर्च मसाले वाला नहीं होना चाहिए। भोजन में समय-समय पर आधा से एक छोटी चम्मच घी भी दिया जाना चाहिए।। ध्यान रहे कि प्यार-दुलार  में ज्यादा घी ना खिलाए क्योंकि अधिक  घी शिशु के यकृत के लिए हानिकारक होता है। शिशु को दिन में कई बार भोजन देना चाहिए। खाली पेट या प्रयाप्त भोजन न देने से शिशु को ठंड जल्दी लग जाएगी और आपका शिशु कुपोषित भी हो सकता है।
 
शिशु की त्वचा की देखभाल—
सर्दियों के मौसम में तापमान गिरने तथा वातावरण में हवा के संचार की कमी होने के कारण शिशु की त्वचा में रूखापन हो जाता है तथा कभी-कभी उस पर चकत्त्ते भी पड़ जाते हैं। इसके निवारण के लिए शिशु की त्वचा को साफ रखने के लिए उसे साफ गुगुने पानी से नहलाना चाहिए। यदि सर्दी अधिक हो तो शिशु को गर्म पानी में तौलिया भिगोकर पोंछ देना (स्पंज करना) चाहिए।
 
स्पंज ऐसे स्थान पर करे जहाँ गर्मी हो एवं हवा शांत हो। शिशु की त्वचा रूखी ना होने पाए, इसके लिए लोशन लगाए अथवा तेल से उसकी मालिश भी अवश्य करें। इससे शिशु के की त्वचा मुलायम, शरीर में रक्त संचार होता है और उसके शरीर में गर्माहट भी उत्पन्न होती है। मालिश के लिए जैतुन, सरसों अथवा नारियल का तेल (जो भी व्यवारिक प्रचलन हो) प्रयोग कर सकते है। हमारे प्रदेश में अक्सर शिशु की मालिश सरसों के तेल से की जाती है जो नहाने से पूर्व हल्की धूप में लगाना चाहिए। इससे शिशु को विटामिन डी का लाभ मिलता है। उसके कुछ समय पश्चात शिशु को नहला देना चाहिए। 
 
माता-पिता आलस ना करें –
ठंड के कारण माता-पिता शिशु की देखभाल में बिल्कुल लापरवाही ना बरतें। यदि उनको या परिवार जनों में से किसी को सर्दी जुखाम हुआ है तो शिशु को उसे दूर ही रखना चाहिए क्योंकि शिशु को किसी भी बीमारी का संक्रमण जल्दी होता है। शिशु को उचित समय पर रोगप्रतिरोधक टीके अवश्य लगवाए क्योंकि टीकाकरण बच्चों को विभिन्न जानलेवा बीमारियों से बचाता है। सर्दियों के मौसम के कारण माता-पिता इसमें जरा भी लापरवाही नहीं बरते क्योंकि शिशु संवेदनशील होता है और समय से टीकाकरण उसे कई गंभीर बिमारियों से बचाता है। शिशु को प्रायः सर्दी – जुकाम होता रहता है।
 
यदि सही से देखभकल व इलाज न किया जाए तो उसे निमोनियो हो जाने का खतरा भी हो सकता है। शिशु की नाजुक त्वचा की भी उचित देखभाल करना आवश्यक है। उसे कुछ समय तक सूर्य की रोशनी में रखना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि इससे विटामिन डी मिलता है जिससे शिशु की हड्डियां मजबूत होती हैं। साथ-साथ शरीर में खून का प्रवाह शिशु को हष्ट पुष्ट बनाता है और उसकी वृद्धि एवं विकास में सहयोग करता है। उसकी त्वचा भी स्वस्थ रहती है। 
 
शिशु सभी परिवारजनों तथा माता-पिता की आंखों का तारा होता है। वह नाजुक होता है और अपनी परवरिश के लिए अन्य लोगों पर निर्भर होता है। ऐसे में मौसमी खतरों से बच्चों को सुरक्षित रखना माता-पिता तथा परिवार की ही जिम्मेदारी होती है।
 
सुमन प्रसाद मौर्य , एंव सरिता श्रीवास्तव
प्राध्यापक, सहायक प्राध्यापक, मानव विकास एंव परिवार अध्ययन, सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय, नरेन्र्द्र देव कृषि एंव प्रौद्योगिकि विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या
 
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