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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 17 Oct 2023 1:05 PM |   301 views

क्या सेक्सुअल की शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मिलेगी मान्यता? सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज

नई दिल्ली। समलैंगिक शादी (सेम सेक्स मैरिज) को कानूनी दर्जा देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट आज अहम फैसला सुनाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिन की सुनवाई के बाद 11 मई को फैसला सुरक्षित रखा था। सुनवाई में याचिकाकर्ताओं ने जोर दिया कि उनकी शादी को कानूनी मान्यता मिले, जबकि केंद्र सरकार ने कहा था कि वह शादी का दर्जा दिए बिना समलैंगिक जोड़ों को कुछ अधिकार देने पर विचार कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वालों में कई लोग शामिल हैं। 20 से अधिक याचिकाओं में से ज्यादातर में समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने की मांग की गई है। याचिकाओं में कहा गया है कि स्पेशल मैरिज एक्ट में अंतर धार्मिक और अंतर जातीय विवाह को संरक्षण मिला हुआ है, लेकिन समलैंगिक जोड़ों के साथ भेदभाव किया गया है।9 दिन तक चली सुनवाई के बाद 11 मई को फैसला रखा था सुरक्षित

बता दें कि चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस रविंद्र भट्ट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने इस मामले में 18 से 27 अप्रैल तक सुनवाई की थी। करीब 10 दिन तक चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को फैसला सुरक्षित रखा था। ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट आज इस मामले में अहम फैसला सुनाएगा।

क्या है याचिका?

सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक पुरुषों की ओर से दाखिल याचिका कहा गया है कि होमो सेक्सुअल की शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मान्यता दी जाएं। याचिकाकर्ताओं की दलील है कि साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाली आईपीसी की धारा 377 के एक पार्ट को रद्द किया था। इस फैसले के बाद दो एडल्ट आपसी सहमति से समलैंगिक संबंध बनाते हैं, तो ये अपराध की श्रेणी में नहीं आता है।

याचिकाकर्ता सुप्रियो चक्रवर्ती व अभय डांग का कहना है कि वो 10 साल से कपल की तरह रह रहे हैं। स्पेशल मैरिज एक्ट लिंग के आधार पर भेदभाव करता है और यह गैर-संवैधानिक है। इस एक्ट के मुताबिक, समलैंगिक के संबंध और शादी को मान्यता नहीं है।

वहीं, एक अन्य याचिकाकर्ता का कहना है कि वो 17 साल से रिलेशनशिप में हैं और उनके पास दो बच्चे भी हैं। लेकिन, वो कानूनी रूप से शादी नहीं कर सकते हैं। ऐसे में बच्चों के साथ कानूनी परिजनों का हक नहीं मिल पा रहा है।

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