भारत में नई कृषि क्रांति की आवश्यकता

भारत मे कृषि क्रान्तियों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत् है-
1-हरित क्रांति -खाद्यान
2.पीली क्रांति -तेल बीज उत्पादन (विशेषकर सरसों और सूरजमुखी)
3-गोल्डन फाइबर रिवोल्यूशन- फल,मधु, उधान
4-गुलाबी क्रांति -प्याज उत्पादन / औषधि / झींगा उत्पादन
5-लाल क्रांति -मांस उत्पादन / टमाटर उत्पादन।
6-श्वेत क्रांति (या ऑपरेशन फ्लड- )दुग्ध
7-भूरी क्रांति- चमड़ा / कोको / गैर-पारंपरिक उत्पादन
8-नीली क्रांति- मछली उत्पादन
9-रजत क्रांति- अंडा उत्पादन / कुक्कुट उत्पादन
10-सदाबहार क्रांति- सम्पूर्ण रूप से कृषि का उत्पादन (दूसरी हरित क्रांति)

भारत का पोल्ट्री उद्योग अंडों के लिए 8-10% और बेहतर नस्ल और आधुनिक प्रबंधन के कारण ब्रायलर के लिए 15-20% की दर से बढ़ रहा है। पीली क्रांति नब्बे के दशक की शुरुआत में अस्सी के दशक में तेल आयातक स्थिति से लगभग आत्मनिर्भर स्थिति में भारत को पीली क्रांति कहा गया है।
स्वर्ण क्रांति वर्ष 1991 से 2003 तक को स्वर्णिम क्रांति कहा जाता है, जब फलों, शहद उत्पादन और अन्य बागवानी उत्पादों के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई थी।
गुलाबी क्रांति को भारत में प्याज और झींगा उत्पादन बढ़ाने के लिए लॉन्च किया गया था।
लाल क्रान्ति मांस उत्पादन और टमाटर उत्पादन के लिए लाल क्रांति सन् 1970 में हुई थी।
गुलाबी क्रांति प्याज उत्पादन, औषधि, झींगा उत्पादन आदि के लिए की गई थी।
सुनहरी क्रांति फलों के उत्पादन से संबंधित है।
कृषि क्रांति की विशेषता –
कृषि क्रांति से कृषि तकनीक में परिवर्तन हुए, जिससे उत्पादन लगभग दोगुना हुआ, वहीं कृषि कार्य में श्रम की निर्भरता कम हुई।

2-लघु, सीमान्त कृषकों को ध्यान में रखकर कृषि यंत्रो का विकास।
3-महिलाओं हेतु कृषि तकनीकी पर बल देने की विशेष आवश्यकता है,आचार, मोरबा ,पापड़ आदि बहुत ही स्वादिष्ट ग्रामीण महिलाएं बनाती है,उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए।
4- कृषि रक्षा ईकाइयों पर जैविक कीटनाशकों, फेरोमोन ट्रेप के बिक्रय को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
5- पेस्टीसाइड बिक्रेताओं कों जैविक पेस्टीसाइड् का बिक्रय अनिवार्य किया जाना चाहिए।
6 -देश में 731कृषि विज्ञान केन्द्र स्थापित है जो प्रत्येक जनपद में एक तथा जो जनपद बडे़ है वहा दो है।उन्हें और सृद्णीकरण करने की जरूरत है। जहाँ से किसान आसानी से तकनीकी जानकारी देखकर ले सके तथा आवश्यकतानुसार आवश्यक निवेश जैसे बीज, पौध, जैविक कीटनाशी, आदि क्रय कर सके।
7 – देश के 65 कृषि विश्वविद्यालयों में शिक्षा, शोध एवं प्रसार तंत्र को और बलशाली बनाने की आवश्यकता है।विश्वविद्यालय से वैज्ञानिक, टीचर, बाबू तो पैदा होते है परन्तु अच्छे किसान नही पैदा होते।
विश्वविद्यालयों ,भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के विभिन्न संस्थानों द्वारा बहुत सी प्रजातियाँ विकसित तो हुई है , परन्तु अधिकतर प्रजातियाँ किसानों को उपलब्ध नही होती । समय से नवविकसित प्रजातियाँ किसानों को उपलब्ध होना चाहिए। जो भी नई तकनीकी विकसित होती है, अभी किसानों तक पूर्ण रूप से पहुंच नही पाती, तबतक नई तकनीक पुनः आ जाती है। इससे संसाधन समय की बरवादी होती है। इस लिए प्रसारतंत्र को और सृदणीकरण करने की आवश्यकता है। कृषि नीति निर्धारण टाप टू वाटम न हो कर वाटम् टू टाप होना चाहिए अर्थात गाँव स्तर से योजना तैयार कर ऊपर लागू कराने हेतु जाना चाहिए।
गाँव स्तर पर कृषि रणनीति तैयार होना चाहिए – किसान उत्पादन संगठन (फारमर्स प्रोड्यूसर कम्पनी FPO) एक बहुत अच्छी पहल है । इसका गठन आवश्यक है। – हम कृषि के सभी पहलुओं पर आत्म निर्भर हो चुके है। अब कृषि रक्षा/ पौध संरक्षण क्रान्ति की आवश्यकता है, जिसमें नाशीजीवों अर्थात कीट, रोग, सृतकृमि ,चूहें, नीलगाय एवं अन्य जंगली जानवरों तथा छुट्टा जानवरों से फसलों को बचाना होगा। इसके लिए जैविक प्रबंधन पर विशेष बल देना होगा। गाय ,भैस ,बकरी ,पालन कर जैविक खेती पर पुनः बल देने की जरूरत है।
प्राईमरी से हाईस्कूल की शिक्षा में एक विषय कृषि शिक्षा अनिवार्य होना चाहिए। जिससे छात्र /छात्राए कृषि को जाने, विशेष कर जैविक पोषण वाटिका, सब्जियों, फलों, फूलों , पशुपालन का समावेश होना चाहिए। तभी एक और नई कृषि क्रान्ति का उदय होगा। समाचार पत्र, प्रिन्ट मीडिया, इलैक्ट्रोनिक मीडिया, एवं अन्य प्रचार प्रसार के माध्यमों में कृषि के समाचारों को भी प्राथमिकता देनी चाहिए। क्योंकि सब कुछ इंतजार कर सकता, परन्तु खेती इंतजार नही कर सकती है।
-प्रो. रवि प्रकाश मौर्य (सेवानिवृत्त वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष) निदेशक प्रसार्ड ट्रस्ट
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