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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 18 Jun 2023 6:07 PM |   1316 views

आनंद मार्ग आश्रम दानोपुर में कल श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया

देवरिया – आनंद मार्ग आश्रम दानोपुर में कल श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया | जिसमे सिवान , देवरिया गोरखपुर , आजमगढ़ , बलिया ,कुशीनगर ,बनारस आदि जिलों के लोगों ने भाग लिया |
 
1965 मे विज्ञान स्नातक की पढाई पूरी कर रहे एक छात्र ने जब आनन्दमार्ग के आचार्य का वक्तव्य अपने कालेज मे सुना तो आनन्दमार्ग के सामाजिक, आर्थिक एवं अध्यात्मिक दर्शन से प्रभावित होकर आनन्दमार्ग  आदर्श के प्रसार-प्रचार मे अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया।आनन्दमार्ग के इन जीवनदानी संयासी कार्यकर्ता को आज हम आचार्य परेशानन्द अवधूत के नाम से जानते है। 
 
श्रद्धेय आचार्य परेशानन्द अवधूत जी ने मुझे 1978 मे दीक्षा दी थी।कालान्तर मे मै जब सन्यासी बन कर आचार्य प्रशिक्षण हेतु तिलजला मुख्यालय मे रूका था तो वह आर.डी.एस.हेतु आए हुए थे।
 
आचार्य केशवानन्द दादा से उन्हे सूचना मिली थी कि उनका एक दीक्षाभाई संयासी बनकर आचार्य प्रशिक्षण मे है, तो वे मुझे खोजकर कर अपने ठहरने के स्थान जागृति हाल मे ले गए तथा एक पुरानी डायरी निकाल कर मुझे दिखाए कि देखो मैने तुम्हे फला साल मे फला तारीख को दीक्षा दी थी। इसके बाद से लगातार जब भी भेट होती आनन्दमार्ग दर्शन के गूढार्थ से मुझे परिचित कराते रहे।
 
आनन्दमार्ग दर्शन के अन्तर्निहित गूढार्थ का जितना गहरा और व्यवहारिक ज्ञान आचार्य जी को था वैसा मैने अन्य किसी संयासी मे नही देखा।आचार्य जी थोथी मान्यताओं, तर्कहीन परम्पराओं और पाखण्डपूर्ण क्रियाकलापों के घोर विरोधी थे।अपने बौद्धिक समझ से वे भविष्य मे होने वाली घटनाओं की सटीक भविष्यवाणी कर देते थे। उन्होने आज से 25  साल पहले ही कह दिया था कि प्रउत का कार्य केवल न्यूनतम आवश्यकताओं की सर्व सुलभता नही हैअपितु लोगों की बौद्धिक उन्नति कराना प्रउत का अधिक महत्वपूर्ण कार्य है।
 
आज हम पाते है कि सरकारे न्यूनतम आवश्यकताए उपलब्ध करा रही है किन्तु बौद्धिक उन्नति से वंचित कर रही है।आचार्य जी हमेशा समाज से अधिक व्यक्ति को महत्व देते थे।व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास मे आचार्य जी जिस लगन और समर्पण से अथकरुप से लग जाते थे वह अकल्पनीय है।किसी कुशल शिल्पकार के तरह किसी भी अनगढ पत्थर को वह सही स्वरूप प्रदान करने के लिए अपने छेनी का सटीक प्रहार करने लगते थे।जो उनकी छेनिओ की मार सह गया वह सही और सार्थक आदमी बन गया ।
 
आचार्य  जहा भी रहे वही अपने बनाए हुए आदमियों को तैयार कर गए।उनकी छेनी की मार खाए हर व्यक्ति के मन मे उनके प्रति जो आन्तरिक समर्पण है वह उसके व्यक्तित्व के निखार का सुपरिणाम है।आचार्य जी एक सच्चे आचार्य थे |
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