फसल अवशेषों को उपयोग मे लाये जलाये नहीःप्रो. रवि प्रकाश
रबी फसलों की कटाई प्रारंभ की ओर है। उनके अवशेषों / पराली को जलाये नही बल्कि उपयोग मे लाये। यह जानकारी प्रोफेसर रवि सुमन कृषि एवं ग्रामीण विकास ट्रस्ट मल्हनी देवरिया के निदेशक प्रो. रविप्रकाश मौर्य ने दी।
उन्होने कहा कि फसलों के अवशेषों को जलाने से उनके जड़, तना, पत्तियों में संचित लाभदायक पोषक तत्व नष्ट हो जाते है। फसल अवशेषों को जलाने से मृदा ताप में बढ़ोत्तरी होती है, जिसके कारण मृदा के भौतिक, रसायनिक एवं जैविक दशा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। फसल अवशेषों में लाभदायक मित्र कीट जलकर मर जाते हैं ,जिसके कारण वातावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। पशुओं के चारे की व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। आम का बागीचा यदि पास में है तो फलों में कोयलिया रोग लग जाता है ,जिसके कारण फलों मे काला धब्बा बन जाता है।
मनुष्यों को साँस लेने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जहाँ पर कम्बाईन का प्रयोग फसलों के कटाई में करते हैं वहाँ पर फसलों के अवशेष डण्ठल के रूप में खड़े होते हैं एवं उनके जलाने पर नजदीक के किसानों के फसलों में आग लगने की संभावना के साथ ही साथ खड़ी फसल एवं आबादी में अग्निकाण्ड होने की संभावना बनी रहती है, वहीं आस-पास के खेत व खलिहान तथा मकान में भी अग्निकाण्ड के कारण अत्याधिक नुकसान उठाना पड़ता है।
किसी भी फसल के अवशेष को जलायें नहीं बल्कि मृदा में कार्बनिक पदार्थों की वृद्धि हेतु पादप अवशेषों को मृदा में मिलाये / सड़ाये। फसल अवशेष कम्पोस्ट खाद बनाने में सहायक है जो कि मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक क्रियाओं में लाभदायक है। फसल अवशेष मल्च के रूप में प्रयोग करने में मृदा जल संरक्षण के साथ-साथ फसलों को खरपतवारों से बचाने में सहायक है। मृदा के जीवांश में हो रहे लगातार ह्रास को कम करने में योगदान करता है। मृदा जलधारण क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है। मृदा वायु संचार में बढ़ोत्तरी होती है। सरकार द्वारा पराली जलाने पर दण्ड देने का भी प्रावधान किया गया है। भूलकर भी पराली न जलाये। उसे उपयोग में लाये।