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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 14 May 2020 3:58 PM |   624 views

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा श्रम कानूनों में सुधार

लॉकडाउन के कारण प्रदेश में औद्योगिक और आर्थिक गतिविधियां बहुत ज्यादा प्रभावित हुई हैं।  सभी उद्योग बंद रहे. ऐसे में औद्योगिक क्षेत्र की ग्रोथ को प्रोत्साहित करना बहुत महत्वपूर्ण है। कोरोना आपदा (COVID-19) के बाद आर्थिक स्थिति को सुधारने, बुरी तरह प्रभावित उद्योगों को मदद देने और रोजगार की चुनौती से निपटने के लिए यूपी सरकार ने 7 मई को श्रम कानूनों में सुधार को लेकर अगले 1000 दिन के लिए बड़े ऐलान किए हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार ने इसके लिए ‘उत्तर प्रदेश टेम्परेरी एक्जेंप्शन फ्रोम सर्टेन लेबर लॉज ऑर्डिनन्स 2020’ (उत्तर प्रदेश चुनिंदा श्रम कानूनों से अस्थाई छूट का अध्यादेश 2020) को मंजूरी प्रदान कर दी है। 38 में से 35 क़ानूनों को इस अवधि के लिए प्रभावहीन कर दिया है।

  1. संशोधन के बाद यूपी में अब केवल बिल्डिंग एंड अदर कन्स्ट्रकशन वर्कर्स एक्ट,1996,वर्कमेन कंपेनसेशन एक्ट 1923,  और बंधुवा मजदूर एक्ट 1976 का पालन करना होगा।
  2. उद्योगों पर अब’पेमेंट ऑफ वेजेज एक्ट 1936′ की धारा 5 ही लागू होगी।
  3. श्रम कानून में बाल मजदूरी व महिला मजदूरों से संबंधित प्रावधानों को बरकरार रखा गया है।
  4. श्रमिक संघों से संबंधित सभी महत्वपूर्ण कानून,काम के विवादों को निपटाने, काम करने की स्थिति, अनुबंध आदि को मौजूदा और नए कारखानों के लिए तीन साल तक निलंबित रखा जाएगा. इस दौरान प्रतिस्थानों में इंस्पेक्टर की भूमिका खत्म कर दी गयी है ।
  5. कोई कर्मचारी किसी भी कारखाने में प्रति दिन 12 घंटे और सप्ताह में 72 घंटे से ज्यादा काम नहीं करेगा।  पहले यह अवधि एक  दिन में 8 घंटे और सप्ताह में 48 घंटे थी।
  6. 12 घंटे की शिफ्ट के दौरान 6 घंटे के बाद 30 मिनट का ब्रेक दिया जाएगा।
  7. 12 घंटे की शिफ्ट करने के संबंध में कर्मचारी की मजदूरी दरों के अनुपातिक में होगी। यानी अगर किसी मजदूर की आठ घंटे की 160 रुपये है तो उसे 12 घंटे के 240 रुपये दिए जाएंगे।  पहले ओवर टाइम करने पर प्रतिघंटे सैलरी के हिसाब से दोगुनी सैलरी मिलती थी।

 

इन उपायों को लागू करने के पीछे मंशा यह भी बताई गयी है कि इससे नियोक्ताओं को श्रमिकों को रखने या निकालने, भुगतान आदि में ज्यादा सहूलियत मिलेगी। बाहर से इकाइयों को लाने तथा नये उद्यमों को स्थापित करने में आसानी होगी|

 ये उपाय अनेक जटिलतायेँ उत्पन्न कर सकती हैं| 

1-  आशंका है कि उद्योगों को जांच और निरीक्षण से छूट देने पर कर्मचारियों का शोषण बढ़ेगा। इंस्पेक्टर राज हटाना तो अच्छी बात है पर उद्यमी और श्रमिक के ऊपर कानूनी अंकुश में संतुलन होना जरूरी है। एक को खुली छूट देना उचित तो नहीं है। इसके दुरुपयोग की जांच व नियंत्रण कैसे होगा।

2-  ओवरटाइम समाप्त होने से नियोक्ता अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुरूप कुछ ही श्रमिकों से अधिक काम ले सकेगा।  इससे रोजगार के अवसर कैसे बढ़ेंगे? ओवरटाइम दुगुने के स्थान  पर 50 या कम से कम 25 प्रतिशत रखना चाहिए।

3-  35 श्रम कानून ठप करने से यही संकेत मिल रहा है कि सरकार इन कानूनों को उद्योगों के  विकास में बाधक मान रही है। ऐसा है तो सात साल से केंद्र में सत्तासीन सरकार को इन क़ानूनों को बहुत पहले ही बदल देना था। पिछले साल से श्रम सुधारों को लेकर तीन संहिताएं संसद में लंबित हैं। 

( प्रो . आर . पी . सिंह ,वाणिज्य विभाग,गोरखपुर विश्वविद्यालय )

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