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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 21 Feb 2020 3:03 PM |   2004 views

गज़ल

सच बोलने की कसम खाने से 

दुश्मनी हो गई  सारे जमाने से 

मै  अपनी माँ का सबक भूलूं कैसे 

कि लगेगा पाप सच छुपाने से 

रूठता कौन है अपनों से इतना 

जो न मान सके मनाने से 

कभी अपनों पर तंज न कसना 

वरना हो जाओगे  बेगाने से 

जिसने जो माँगा वो मिला उसको 

सजदे में उसके सर झुकाने से 

प्यार में लाजिम है कुर्बानियां 

पुछ  लो चाहे जिस दीवाने से 

बड़े -बड़े झुक जाते हैं ‘सागर ‘

प्यार में जरा सा मुस्कुराने से 

( डॉ नरेश सागर , हापुड़ ) 

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