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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 26 Sep 2018 3:56 PM |   2063 views

एक थी रनिया

रनिया -ओ -रनिया की मर्मभेदी आवाज से मोहल्ले की गलियो  की दीवारों को छुती हुई सतिया की आवाज रोज ही सबको सुनाई देती थी |बदहवास ,विछिप्त सतिया की नजरे इधर -उधर दौड़ -दौड़कर सबके जेहन मे एक ही प्रश्न रोजाना खडा करती थी कि कहाँ है मेरी रनिया |    

सतिया इसी नवाबगंज के मनोहारी मोहल्ले मे एक कमरे के छोटे से घर मे अपनी बेटी के साथ रहती थी |पति का निधन आठ वर्ष पूर्व बीमारी के चलते हो चुका था |पिता ने बड़े प्यार से अपनी बेटी का नाम रानी रखा था जो कब रनिया मे बदल गया पता ही नही चला |सतिया दुसरे मोहल्ले के दो -चार घरों मे घरेलु काम करके अपनी रोज की जिन्दगी चलाने लायक कमा ही लेती थी |बेटी रनिया को इस मुराद से स्कूल भेजती थी कि उसे अपने जीवन मे शिक्षा के अभाव मे उसके जैसे जिन्दगी न हो |रनिया अभी ग्यारह वर्ष की है ,पाचवी कक्षा मे नवाबगंज के सरकारी स्कूल मे पढती है |सतिया रोजाना इसी चिंता मे सवेरे उठ जाती है कि रनिया को स्कूल भेजने मे कही देर न हो जाये |

वह झटपट उसके डिब्बे मे दो पराठे और अचार रखकर नहला -धुलाकर ,स्कूल यूनिफार्म से सजाकर ,घर से हाथ हिलाते हुए ,विदा करके निश्चिंत हो जाती है कि जब तक वह घर वापस लौटेगी |तब तक वह दूसरों के घरों कासारा  काम जल्दी -जल्दी खत्म करके रनिया के आने से पहले घर लौट आएगी |रनिया रोज हंसती -खेलती स्कूल जाती और शाम साढ़े तीन बजे तक लौट आती थी |सतिया भी अपना काम खत्म करके घर पर उसके आने का इंतज़ार करती |इसी क्रम मे सतिया की जिन्दगी दिन पे दिन गुजर रही थी |

बेटी रनियाके  हँसते -खिलखिलाते चेहरे मे जैसे मानो उसकी जान बसती थी |उसके घर लौटे ही वह अपनी पूरी थकान भूलकर उसके स्कूल मे बिताये एक -एक पल का हिसाब लेना नही भूलती थी |उसका बस्ता उलटती -पलटती और बीच -बीच मे समझाती जाती कि तुम स्कूल मे ज्यादा शैतानी न किया करो ,मन से पढ़ा करो ……टीचर की सारी बाते माना करो …….ऐसा लगता सतिया घर मे उसकी दूसरी टीचर बन गयी है |रनिया हर बात मे यूँ सर हिलाती ,जैसे वो सतिया की सारी बातें अपने दिमाग मे उतार रही हो ,पर बालक मन चंचलता कब छोड़ता है ?रनिया भी अपनी इसी चंचलता मे कुछ बातें सुनती ,कुछ अनसुनी करके अपने खेल मे मस्त हो जाती |

सतिया अपनी इस छोटी सी गृहस्थी और रोजाना की ब्यस्त जिन्दगी मे बहुत खुश थी |आज भी उसने रनिया को रोज की भांति स्कूल भेजा और अपने काम पर निकल गई  |एक -दो घरो मे ही काम पूरा कर पाई थी कि उसे लगा कि उसके अंग ढीले पड़ रहे हैं |अचानक उसे अपनी बेटी रनिया की याद आने लगी |तीसरे घर मे काम न करने की बात कहकर वो सीधे रनिया के स्कूल की तरफ बढती जा रही थी ,उसके कदमो मे अजब सी बैचेनी और लड़खडाहट थी ….. सीधे पहुंची स्कूल के चपरासी के पास ,कक्षा पांच की जानकारी करके ,उस तरफ जा ही रही थी कि एक बच्चे ने बताया कि रनिया तो आज स्कूल ही नही आई |

सतिया चेतना शून्य सी हो गयी ,मानो उसे काटो तो खून ही नही |मैंने तो उसे स्कूल भेजा था ,वो कहाँ गयी ?….. किससे पूछे ?क्या करे ?… उसे कुछ नही सूझ रहा था |पाषण खण्ड सी देह को लिए सतिया धीरे -धीरे घर की ओर लौट रही थी ,कि शायद रनिया घर पर बैठी खेल रही होगी |रास्ते मे एक बड़े से मकान के पीछे वाली गली के नुक्कड़ पर लगी भारी भीड़ को देखकर सतिया की निगाहे भी उधर ही जा टिकी |कितनी मासूम बच्ची है ?…. इसने किसी का क्या बिगाड़ा है ?… किस हैवान ने यह सब किया ?….. घोर कलयुग आ गया है …. मासूम बच्चियां भी सुरक्षित नही हैं ……पुलिस को बुला लो …. ऐसी आवाजें भीड़ के बीच से आ रही थीं

सतिया का दिल जोर -जोर से धडकने लगा ,भीड़ को धकियाते हुए वह बच्ची के नजदीक पहुँच गई और वहीं बेहोश होकर गिर पड़ी |पुलिस आ चुकी थी ,रनिया का शव पोस्ट -मार्टम के लिए उठाया जा चुका था |होश मे आते ही सतिया ने रनिया -ओ -रनिया की आवाज से पूरे मोहल्ले की गलियों को मातृत्व की करुण पुकार से करुणामय कर दिया |

 

                   ( डॉ नीता कुशवाह  , शिक्षिका , आगरा )

    

       

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