एक नया मोड़
चल दिया मन अकेला बेचारा
राह देखता रहा सबका
आया ना कोई इसका अपना।
नया नया है यह सफर
काश मिल जाए कोई हमदर्द
जो ले हमे सम्भाल और
समझे हमारी भी कदर।
नहीं जो सोचा वो हो क्यु गया
पाना था जिसे वही खो गया
कितना उसको समझाया
मगर ना लौटकर वो आया।
अपनी मंजिल का पता नहीं
अब जो मिला है वही सही
ढूढेगे खुद से खुद की कमी
आने ना देंगे आँखो में नमी।
ठहरने का अब नहीं है सोचा
मंजिल को पाने का है इरादा
ऐसा किया ना किसी और से
बल्कि खुद से है मेरा वादा।
अब नहीं सकते छोड़
सफर से नाता लेंगे जोड़
नहीं कर सकता कोई तोड़
यहाँ से है एक नया मोड़
(दिव्या चौबे)
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