गज़ल
सच बोलने की कसम खाने से
दुश्मनी हो गई सारे जमाने से
मै अपनी माँ का सबक भूलूं कैसे
कि लगेगा पाप सच छुपाने से
रूठता कौन है अपनों से इतना
जो न मान सके मनाने से
कभी अपनों पर तंज न कसना
वरना हो जाओगे बेगाने से
जिसने जो माँगा वो मिला उसको
सजदे में उसके सर झुकाने से
प्यार में लाजिम है कुर्बानियां
पुछ लो चाहे जिस दीवाने से
बड़े -बड़े झुक जाते हैं ‘सागर ‘
प्यार में जरा सा मुस्कुराने से
( डॉ नरेश सागर , हापुड़ )
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