सामाजिक चेतना और पत्रकारिता
समाज , मीडिया और संस्कृति मानव जीवन के तीन आयाम हैं , तीनो परस्पर सम्बद्ध हैं |पत्रकारिता समाज का दर्पण है ,पत्रकारिता रूपी दर्पण मे समाज का प्रतिबिम्ब परिलक्षित होता है |वही समाज मीडिया के सृजन का उत्प्रेरक आधार है संस्कृति मे समाज का उन्नयन समाहित है |मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह स्वस्थ समाज मे रहकर ही विकास मार्ग प्रशस्त कर सकता है |किन्तु बिना सामाजिक चेतना के विकास मार्ग खुल नही सकते |
समाज मे कब ,कहाँ ,क्यो , कैसे और किन आवश्कताओं की पूर्ति होनी है यह तय सामाजिक चिंतन द्वारा होता है |समाज जागृत तब होता है जब हम सभी एक मत होते हैं |आम से खास धारणा बनाने का कार्य पत्रकारिता से ही संभव है |चाहे वह सामाजिक चेतना आज़ाद भारत के पहले की हो या बाद की |आज़ादी से पूर्व अपने देश की परिस्थितियां विपरीत थी |हम आज़ाद न थे ,गुलामी की बेड़ियों मे जकड़े हुए थे |हमारे देश के विचारको ,चितकों एवं समाज सुधारकों ने अपने कलम के माध्यम से देश की तकदीर और तस्वीर बदल कर रख दी |
पत्रकारिता की कहानी राष्ट्रीयता की कहानी है |हिंदी पत्रकारिता के आदि उन्नायक ,जातीय चेतना ,युग बोध और अपने दायित्व के प्रति पूर्ण सचेत थे |आज़ादी से पहले भारतीय समाज के चिंतको द्वारा देश को आज़ाद करने की सोच ने एक अविश्वसनीय कार्य किया क्योकि सिर्फ विचार ही है जिसे बदलकर आप भविष्य बेहतर बना सकते है |आज़ादी के मतवाले , क्रांतिकारी ,लेखकों ,पत्रकारों मे रविन्द्र नाथ टैगोर , बाल गंगाधर तिलक ,महात्मा गाँधी ,बंकिम चन्द्र चटर्जी , सुभाष चन्द्र बोस आदि का योगदान अविस्मरणीय है | उन दिनों इन कलमकारों ने अपनी लेखनी के माध्यम से देश और समाज मे नई जागृति लाई |जिससे की सम्पूर्ण देशवासी एकजुट हुए और क्रांति की राह पर चल पड़े |वादे मातरम की गूंज चारो तरफ सुनाई देने लगी |आज़ादी से अपनी बात एक -दुसरे क्रांतिकारी साथी तक पहुचाने के लिए अखबार ही माध्यम हुआ करता था |जिसके फलस्वरूप आम विचार क्रांतिकारी विचार मे तब्दील हो जाया करते थे |
जनाब अकबर इलाहाबादी के शब्दों मे —
” खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो ”
उस दौर मे भी पत्रकारिता ने निर्णायक भूमिका निभाई , और हमारा देश आज़ाद हुआ |सामाजिक चेतना के अग्रदूत कबीरदास थे |उनके विचारो ने सामाजिक एकता एवं समरसता मे बदलाव ला दिया | उन्होंने वाह्य आडम्बर को केंद्रित करते हुए कहा —
” पाहन पूजे हरि मिले , तो मै पुजू पहार
ताते यह चकिया भली , पीस खाए संसार ”
भारतीय समाज के पुनर्जागरण की एक अलग भूमिका है ,जिसके प्रणेता राजा राम मोहन राय ,दनानद सरस्वती , स्वामी विवेकानंद ,रामकृष्ण परमहंश थे |इन सभी के दृष्टिकोण ने सामाजिक संरचना को संगठित किया |