Sunday 21st of September 2025 10:40:53 PM

Breaking News
  •  22 सितम्बर से लागू होंगी GST की नई दरें ,MRP देखकर ही करे खरीददारी |
  • उत्तराखंड सरकार आपदा प्रभावित धराली के सेब उत्पादकों से उपज खरीदेगी |
  • H-1 B पर खडगे के खोखले नारे बयान पर भड़के पूर्व विदेश सचिव ,किरन रिजिजू ने कांग्रेस को घेरा | 
Facebook Comments
By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 25 Jul 2022 6:58 PM |   408 views

राष्ट्रपति मुर्मू ने अपने पहले संबोधन में भारत की समृद्ध जनजातीय विरासत को रेखांकित किया

नयी दिल्ली- द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले संबोधन में ‘जोहार’ के पारंपरिक आदिवासी अभिवादन के साथ शुरू कर प्रसिद्ध ओडिया संत और कवि भीम भोई को उद्धृत करके हुए समापन तक भारत की समृद्ध आदिवासी विरासत को रेखांकित किया।

आदिवासी वर्ग से भारत की पहली राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद संसद के केंद्रीय कक्ष में अपने 18 मिनट से अधिक के संबोधन में उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में हुई संथाल, पाइका, कोल और भील क्रांतियों का उल्लेख करके देश के स्वतंत्रता संग्राम में समुदाय के शानदार योगदान पर प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा, ‘‘इन सभी क्रांतियों ने स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियों के योगदान को मजबूत किया था। हमें सामाजिक उत्थान और देशभक्ति के लिए ‘धरती आबा’ भगवान बिरसा मुंडा जी के बलिदान से प्रेरणा मिलती है। मुझे खुशी है कि हमारे स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी समुदायों की भूमिका को समर्पित देश भर में कई संग्रहालय बनाए जा रहे हैं।’’

बिरसा मुंडा आदिवासी समुदाय के नायक हैं, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया था। देश में सबसे अधिक आबादी वाले अनुसूचित जनजाति समुदाय संथाल जनजाति से आने वालीं 64 वर्षीय मुर्मू ने अपनी जीवन यात्रा पर भी प्रकाश डाला, जो ओडिशा के एक छोटे से आदिवासी गांव में शुरू हुई थी और कैसे वह वहां से कॉलेज की शिक्षा प्राप्त करने वाली पहली व्यक्ति बनीं।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं उस आदिवासी परंपरा में पैदा हुई, जो हजारों सालों से प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाते हुए रह रहा है। मैंने अपने जीवन में वनों और जलाशयों के महत्व को महसूस किया है। हम प्रकृति से आवश्यक संसाधन लेते हैं और उसी सम्मान भाव से प्रकृति की सेवा करते हैं।’’ राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘यह संवेदनशीलता आज वैश्विक अनिवार्यता बन गई है। मुझे खुशी है कि भारत पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में दुनिया का मार्गदर्शन कर रहा है।’’

वर्ष 2015 में राज्यपाल के रूप में कार्यभार संभालने से पहले एक शिक्षक के रूप में सामुदायिक सेवा से सफर शुरू कर पार्षद और फिर ओडिशा में विधायक और मंत्री बनने वालीं मुर्मू ने कहा कि उन्होंने सार्वजनिक सेवा के माध्यम से जीवन का अर्थ महसूस किया है। आदिवासी समुदाय से आने वाले प्रसिद्ध कवि भीम भोई को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मो जीबन पाछे नरके पड़ी थाउ, जगतो उद्धार हेउ’’, जिसका मतलब है कि दुनिया के कल्याण के लिए काम करना किसी के अपने हितों से कहीं अधिक है।

Facebook Comments