Saturday 20th of September 2025 12:07:50 PM

Breaking News
  • करण जौहर को दिल्ली हाईकोर्ट से राहत ,बिना परमिशन तस्वीर या आवाज़ के इस्तेमाल पर रोक |
  • ऑनलाइन गेमिंग कानून एक अक्टूबर से होगा लागू – वैष्णव |
  • शिवकाशी में नए डिज़ाइन के पटाखों की मांग ,दिवाली से पहले ही कारोबार में चमक की उम्मीद |
Facebook Comments
By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 28 Jul 2021 5:23 PM |   657 views

सावन से कजरी का सम्बन्ध

कजली सावन के महीने में गाए जाने वाला वह समूह गायन है जिसमें स्तुति, वंदना, विरह- विछोह, प्रकृति वर्णन आदि का चित्रण किया जाता है| कहा जाता है कि कजली की व्युत्पत्ति राजपूत युग के अवसान की करुण कहानी से है| कोई नगर था जिसके राजा दादू राय थे| मुसलमानों के साथ युद्ध में दादू राय सपरिवार मारे गए और उनका किला भी ध्वस्त हो गया. यह भी जनश्रुति है कि उसी किले की ढूह पर ख्वाजा इस्माइल शाह चिश्ती की मज़ार है|
 
दादू राय की पुत्री का नाम था कज्जला, उसके पति भी दादू राय के साथ मुसलमानों से लड़ रहे थे और वो भी वीरगति को प्राप्त हुए. लेकिन कज्जला अपने को विधवा मानने को तैयार नहीं हुई. जीवन पर्यन्त अपने पति के इंतजार में कुछ गाती रहती थी और उसका वही विरह व्यथा कजली के नाम से प्रसिद्ध हुआ जो कहीं कजली तो कहीं कजरी के नाम से जाना जाता है|
 
वैसे तो कजली उत्तर प्रदेश के लोकराग से जुड़ा हुआ लोकगीत है| कुछ विद्वानों ने इसका क्षेत्र बहुत व्यापक भी बताया है. एक कवि ने लिखा है कि – कड़ा कांगड़ा कालपी कसमीर लौ, अर्थात कश्मीर तक कजली गायी जाती रही है. यद्यपि कजली का विकास राजपूत राजाओं के अवसान की कहानी से है फिर भी कुछ मुसलमान कवियों ने भी कजली के विकास में अपनी महत्वपूर्ण सहभागिता सुनिश्चित की है. हिन्दी के कवियों में प्रेमधन, शिवदास व भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आदि कवियों ने कजली सृजन में विशेष रुचि लिया है|
 
कजली के लिए उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल का वातावरण बहुत ही अनुकूल है. इसके कारण अनेक है- प्रथम तो यहाँ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और दूसरा यह कि इधर की भाषा भोजपुरी में भोजपुरी माटी की सोंधी गंध है. इसके अतिरिक्त भोजपुरी की मिठास सुरम्य प्राकृतिक छटा , जंगल, नदियों का प्रवाह एवं नारियों का अभयारण्य का बोध इत्यादि अनेक कारण हैं|
 
कजली का वर्ण्य विषय प्रेम है. इसके गीत श्रृंगार रस से ओतप्रोत है| राधा कृष्ण या पति पत्नी का प्रेम लीला या नन्द भाभी का संवाद या राम सीता का संवाद इत्यादि प्रमुख हैं|
 
भोजपुरी के अतिरिक्त अवधी भाषा में कजली का सृजन हुआ है और कहीं कहीं तो भोजपुरी और अवधी दोनों भाषाओं का मिश्रित मनोहारी रूप देखने को मिलता है|
 
चूंकि कज्जला अपने को कभी विधवा मानने को तैयार नहीं थी और वह युद्ध सावन के ही महीने में हुआ था इसलिए सावन शुरू होते ही अपने पति के इंतजार में सखियों से कहती है |
 
सखी हे घेरे बदरिया घोर अइले ना नंदकिशोर
बादल गरजे बिजली चमके, बादल गरजे बिजली चमके
जियरा भइल उदास, सखी हे
 
                                   ( भोला प्रसाद ,आग्नेय ,बलिया )
Facebook Comments