भोजपुरी लोकगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं हैं-प्रो .परिचय दास
बनारस -भोजपुरी अध्ययन केंद्र, बीएचयू, वाराणसी में आयोजित एक विशेष साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया |विषय था – “भोजपुरी लोकगीत: कला व संगीत का समंजन” |कार्यक्रम के सूत्रधार भोजपुरी अध्ययन केंद्र, बीएचयू, वाराणसी के समन्वयक प्रो. प्रभाकर सिंह थे।
कार्यक्रम में प्रो. परिचय दास ने अपने व्याख्यान में भोजपुरी लोकगीतों की ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक भूमिका पर गहन प्रकाश डाला। प्रो. परिचय दास ने बताया कि भोजपुरी लोकगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं हैं बल्कि ये समाज की भावनाओं, संघर्षों और जीवन मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने लोकगीतों के माध्यम से सामाजिक संदेश, सांस्कृतिक पहचान और परंपरागत ज्ञान का प्रसार होने की बात कही। उनके अनुसार लोकगीतों में न केवल ग्रामीण जीवन की झलक मिलती है बल्कि इनमें संगीत और काव्यात्मक सौंदर्य का अनोखा मेल भी देखने को मिलता है।
इसके बाद वंदना श्रीवास्तव ने लोक चित्रकला और संगीत के समन्वय की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि भोजपुरी चित्रकला और लोकसंगीत एक-दूसरे के पूरक हैं। चित्रकला की दृश्य अभिव्यक्ति लोकगीतों की भावनाओं को और गहराई प्रदान करती है। वंदना ने अपने अनुभव साझा किए कि किस प्रकार लोकजीवन, मिथक और सामाजिक संघर्ष की झलक उनके चित्रों में प्रकट होती है और इसी का संबंध संगीत और लोकगीतों से जुड़ा रहता है।उन्होंने संस्कृति मंत्रालय की सीनियर फेलोशिप को इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बताया कि यह उन्हें अपने कला-साहित्य अनुभव को व्यापक स्तर पर प्रस्तुत करने का अवसर देती है।
कार्यक्रम के उत्तरकाल में प्रो. परिचय दास और वंदना श्रीवास्तव ने उपस्थित साहित्यिक और कला प्रेमियों के साथ संवाद किया। उन्होंने युवा कलाकारों और साहित्यकारों को लोकधारा और आधुनिक प्रयोग के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया। उनके विचारों ने उपस्थित दर्शकों को न केवल भोजपुरी लोकगीतों के महत्त्व को समझने का अवसर दिया बल्कि कला और संगीत के समन्वय की गहनता को भी महसूस कराया।
भोजपुरी अध्ययन केंद्र, बीएचयू, वाराणसी में आयोजित इस कार्यक्रम में विद्यार्थियों, शोधार्थियों और लोक कला प्रेमियों की अच्छी संख्या में उपस्थिति रही। आयोजन का उद्देश्य भोजपुरी भाषा, लोकगीत और चित्रकला के माध्यम से सांस्कृतिक जागरूकता और रचनात्मक संवेदनाओं को बढ़ावा देना था।
कार्यक्रम ने स्पष्ट कर दिया कि भोजपुरी लोकगीत केवल पारंपरिक धरोहर नहीं हैं, बल्कि कला और संगीत के अनूठे समंजन के माध्यम से सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना को जीवंत बनाए रखने का महत्वपूर्ण साधन हैं।
सात दिवसीय कार्यक्रम के विविध सत्रों में प्रो. अजीत चतुर्वेदी, कुलपति , प्रो. सदानंद शाही, प्रो. आशीष त्रिपाठी, डॉ. उर्वशी गहलोत, गायक डॉ. विजय कपूर, डॉ. विंध्याचल यादव, प्रो. सुषमा घिल्डियाल, प्रो. संगीता पंडित, प्रो. वशिष्ठ द्विवेदी “अनूप” आदि उपस्थित थे।
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