नव नालंदा महाविहार में सतर्कता सप्ताह का सफल समापन
नव नालंदा महाविहार, नालंदा में सतर्कता सप्ताह का समापन सत्तपर्णी सभागार में गरिमामय एवं प्रेरणादायक वातावरण में संपन्न हुआ। प्रारंभिक वक्तव्य प्रो. रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव ‘परिचय दास’, सतर्कता अधिकारी एवं संयोजक, सतर्कता समिति द्वारा दिया गया। अध्यक्षता पालि एवं अन्य भाषा संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो. विश्वजीत कुमार ने की।
समापन समारोह का आरंभ स्वागत उद्बोधन से हुआ। उपस्थित आचार्यों, कर्मचारियों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए संयोजक , सतर्कता समिति व सतर्कता अधिकारी प्रो. रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव ‘परिचय दास’ ने कहा-
“सतर्कता केवल दंड की व्यवस्था नहीं, बल्कि आत्मा की शुचिता और कर्तव्य–निष्ठा का संवैधानिक स्वरूप है। भ्रष्टाचार केवल आर्थिक अनाचार नहीं, मनुष्य की विवेक–विरुद्ध प्रवृत्तियों का सामाजिक रूप–विस्तार है।“नव नालंदा महाविहार जैसी ऐतिहासिक भूमि, जहाँ ज्ञान स्वयं अनुशासन और करुणा के साथ प्रकाशित हुआ, वहाँ सतर्कता का भाव केवल प्रशासनिक औपचारिकता नहीं, बल्कि बौद्धिक सत्य और नैतिक आचरण का अनवरत यज्ञ है।
“हमें यह भी स्मरण रखना चाहिए कि संस्थान की प्रतिष्ठा बाहरी दीवारों से नहीं, भीतर कार्यरत व्यक्तियों की निष्ठा, पारदर्शिता और जनसेवा के भाव से निर्मित होती है। यही सतर्कता का सार है—सत्य को अपनी दिनचर्या बनाना, और उत्तरदायित्व को निजी गरिमा की तरह धारण करना।”
“सतर्कता का संस्कार तभी प्रभावी होता है, जब हम इसे आदेश नहीं, अपने चरित्र का स्वाभाविक प्रवाह मानें।
“यह सप्ताह हमें स्मरण कराता है कि राष्ट्र–निर्माण केवल बड़े निर्णयों से नहीं, दैनिक ईमानदार व्यवहार से होता है।बौद्ध चिंतन की इस धरती पर ‘अप्प दीपो भव’ का संदेश हमें अपने भीतर की निष्ठा का दीप प्रज्वलित करने का आह्वान करता है।संस्थागत प्रणाली का शोधन तभी संभव है, जब व्यक्तिगत मन स्पष्ट, निष्ठावान और न्याय–समर्थ हो।
आइए, हम सब मिलकर पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और संवेदनशील प्रशासन के इस पथ को निरंतर आलोकित रखें।”
“सतर्कता का मूल गंतव्य सुशासन है; और सुशासन का आधार नैतिक व्यक्ति–बल। संस्थान तब ऊँचा उठता है जब उसका प्रत्येक कर्मी मूल्य–चेतना से प्रेरित हो। नव नालंदा महाविहार को पारदर्शी, अनुशासित और सेवा–समर्पित संस्थान बनाने में यह प्रयास एक महत्त्वपूर्ण कदम है। नालंदा की महान परंपरा हमें स्मरण कराती है कि शिक्षा मात्र ज्ञान नहीं, बल्कि चरित्र का निर्माण है। यह हमारा सामूहिक उत्तरदायित्व है कि हम सत्य, न्याय और शुचिता को संस्थान की संस्कृति के रूप में विकसित करें।”
कार्यक्रम के दौरान सतर्कता एवं नैतिक प्रशासन पर संकल्प–पाठ कराया गया तथा पारदर्शी प्रशासनिक दायित्वों, संस्थागत उत्तरदायित्व और नैतिक आचरण की आवश्यकता पर विस्तार से चर्चा हुई।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रदीप कुमार दास ने अत्यंत अनुशासित और सुसंस्कृत शैली में किया। उन्होंने कहा कि सतर्क होना मनुष्य होने का प्राथमिक आधार है। मनुष्य का अच्छा समाज बनाने के लिए सतर्कता आवश्यक है। सतर्कता सप्ताह केवल औपचारिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि नैतिक संवेदनाओं का जागरण है।पारदर्शिता, अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा ही एक सशक्त अकादमिक और प्रशासनिक वातावरण की नींव हैं।
“नव नालंदा महाविहार का इतिहास ज्ञान, करुणा और सत्य–चेतना से निर्मित है|हमारा हर कार्य उसी परंपरा का निर्वाह है।
डॉ. भीष्म कुमार ने सभी आगंतुकों, वक्ताओं एवं आयोजकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा—
“यह सप्ताह केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि आदर्श प्रशासनिक संस्कृति के निर्माण का जीवंत अभ्यास रहा।”
संपूर्ण कार्यक्रम में विश्वविद्यालय परिवार की सक्रिय उपस्थिति और उत्साह उल्लेखनीय रहा।
कार्यक्रम में प्रो. हरे कृष्ण तिवारी , प्रो. राणा पुरुषोत्तम कुमार, प्रो. चंद्रभूषण मिश्र , डॉ. मुकेश वर्मा , डॉ. के. के. पांडेय, विकास सिंह, निकिता आनंद , नीतीश पांडे, अन्य प्राध्यापक , शोधछात्र, अन्य छात्र तथा गैर शैक्षणिक कर्मी भारी संख्या में उपस्थित थे।सतर्कता सप्ताह में विशेष फिल्म~प्रदर्शन का आयोजन किया गया। “मदर इंडिया” फिल्म को लोगों ने रुचिपूर्वक देखा तथा समाज में शोषण के प्रति सतर्क दृष्टि अपनाने की प्रेरणा ग्रहण की।
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