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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 29 Aug 2025 6:44 PM |   215 views

भारतीय ज्ञान परंपरा में पालि एवं प्राकृत भाषा एवं साहित्य का योगदान विषयक गोष्ठी आयोजित

 
सारनाथ – धम्म चक्र विहार इंटर कालेज सारनाथ में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसका विषय था -भारतीय ज्ञान परंपरा में पालि एवं प्राकृत भाषा एवं साहित्य का योगदान |
 
संगोष्ठी का प्रारम्भ उपस्थित अतिथियों तथा भिक्षुसंघ द्वारा दीप प्रज्वलन व भंते ज्ञानानन्द और भंते ज्ञान रतन द्वारा बुद्ध वंदना से हुआ ।
 
तत्पश्चात डॉ. भिक्षु नन्दरतन थेरो द्वारा तिसरण-पंचशील याचना की गयी; कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. भिक्षु स्वरूपानन्द महाथेरो द्वारा तिसरण पंचशील प्रदान किये गए ।
 
अतिथियों के स्वागत में धर्मचक्र विहार इंटर कॉलेज की छात्रा जानवी जयसवाल ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया । संगोष्ठी के संयोजक एवं पालि सोसायटी ऑफ़ इण्डिया के सचिव डॉ. भिक्षु नन्दरतन महाथेरो, संजय मौर्य प्रबंधक धर्मचक्र विहार इंटर कॉलेज, डॉ. भिक्षु धर्मप्रिय, अनिल मौर्य उप प्रबंधक धर्मचक्र विहार इंटर कॉलेज, योगेन्द्र मौर्य प्राधानाचार्य धर्मचक्र विहार इंटर कॉलेज द्वारा उपस्थित अतिथियों को अंगवस्त्र, स्मृति-चिन्ह व बुद्ध चित्र देकर स्वागत किया ।
 
डॉ. रमेश चंद नेगी, उपाध्यक्ष पालि सोसायटी ऑफ़ इण्डिया ने अपने स्वागत वक्तव्य में समस्त विद्वत अतिथियों, भिक्षु संघ उपस्थित श्रोताओं व विद्यालय परिवार के सदस्यों का संगोष्ठी में स्वागत किया । इसी क्रम में उन्होंने पालि व प्राकृत भाषा का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपना वक्तव्य समाप्त किया । योगेन्द्र मौर्य, प्राचार्य ने अपने वक्तव्य में अतिथियों का स्वागत करते हुए विद्यालय की स्थापना के संस्मरण में पूज्य भिक्षु रश्मि (संस्थापक इंटर कॉलेज) द्वारा सन् 1993 में 15 बच्चों से शुरुआत की जहाँ वर्तमान में 1500 छात्र अध्ययनरत् हैं ।
 
बीज वक्तव्य के क्रम में प्रो. रमेश प्रसाद, संकायाध्यक्ष- श्रमण विद्या संकाय सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी ने उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ का विशेष आभार प्रकट करते हुए कहा कि भारत बुद्ध तथा महावीर के काल से ही ज्ञान की भूमि रही है । बुद्ध वचन में बहुजनों के हित व सु:ख के उपदेश निहित हैं । बुद्ध की शिक्षाओं में कर्म-काण्ड व अन्धविश्वास स्वीकार्य नहीं है अपितु पूर्णतः करुणा मैत्री की भावनाओं से ओत-प्रोत हैं । अतः वर्तमान में पालि व प्राकृत भाषा तथा इनके साहित्य के प्रचार प्रसार की अति आवश्यता है ।
 
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि पूज्य भिक्षु प्रो. वांगचुक, कुलपति केंद्रीय तिब्बती शिक्षण संस्थान सारनाथ ने कहा कि भाषा मानव विकास की अभिन्न कड़ी है । मानव समाज के नैतिक विकास की शिक्षाओं का समावेश भारत भूमि की प्राचीन पालि-प्राकृत भाषाओं में अभिनिहित है । चूँकि भाषा पीढ़ी दर पीढ़ी भाव को सामान अर्थ की वाहक होती है । शिक्षा जगत में सर्वप्रथम ज्योति जलने वाले तथागत बुद्ध हैं उन्होंने जो शिक्षाएं दी वो सार्वजनीन, सार्वकालिक तथा सार्वभौमिक हैं ।
 
विद्वत आचार्य वक्तागण के क्रम में प्रो. लाल जी श्रावक, पूर्व विभागाध्यक्ष- पालि एवं बौद्ध अध्ययन विभाग बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने कहा कि पालि हमें छठी शताब्दी ईसा पूर्व के ऐतिहासिक घटनाओं का साक्ष्य सहित इतिहास प्रस्तुत करती है वही पालि भाषा सम्राट अशोक के शिलालेखों में प्राप्त होती है । बुद्ध अबतक के ज्ञात महापुरुषों में प्रथम हैं जिनके जन्म के क्षेत्र ही नहीं बल्कि जन का मूल स्थान चिन्हित है, उक्त कथन भी पालि भाषा में अंकित है ।
 
इसी क्रम में प्रो. हर प्रसाद दीक्षित, पूर्व संकायाध्यक्ष श्रमण विद्या संकाय सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी ने अपने वक्तव्य के क्रम में कहा कि पालि व प्राकृत भाषाएँ भारतीय ज्ञान परम्परा के प्रारंभ होती हैं पालि भाषा को शिशुओं व जीव जगत तथा देवों की भाषा के रूप में महत्व प्राप्त है ।
 
अध्यक्षीय उद्बोधन में पूज्य भिक्षु डॉ. स्वरूपानंद महाथेरो एक अच्छे मित्र अथवा भाई की महत्वता समझाते हुए भँवरे तथा गुबरैले की प्रेरक कहानी के माध्यम से तथागत बुद्ध की शिक्षाओं की सुगंध रुपी गुणों की व्याख्या की तथा वर्तमान में पालि व प्राकृत भाषाओँ में निहित शिक्षाओं का प्रचार प्रसार अति आवश्यक है ।
 
धन्यवाद ज्ञापन में डॉ. भिक्षु धर्मप्रिय, पालि प्रवक्ता महाबोधि इण्टर कॉलेज, सारनाथ, वाराणसी ने  विनय श्रीवास्तव, निदेशक- उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ के प्रति विशेष धन्यवाद देते हुए मुख्य आयोजक डॉ. भिक्षु नन्द रतन महाथेरो के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया|
 
साथ ही पालि सोसायटी ऑफ़ इण्डिया के महासचिव प्रो. रमेश प्रसाद, संकाय अध्यक्ष, श्रमण विद्या संकाय, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी तथा स्वागत भाषण के लिए डॉ. लामा रमेश चन्द नेगी, सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रो. करग्युद सम्प्रदाय शास्त्र एवं डिक्शनरी विभाग के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया ।
 
मुख्य अतिथि के रूप में आये हुए प्रो. वांगचुक दोर्जे नेगी, कुलपति- सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हायर तिब्बतन स्टडीज, सारनाथ, प्रवक्ता के रूप में आये हुए प्रो. लाल जी श्रावक, सेवानिवृत्त पूर्व विभागाध्यक्ष, पालि एवं बौद्ध अध्ययन विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी प्रो. हर प्रसाद दीक्षित, सेवानिवृत्त पूर्व संकायाध्यक्ष, श्रमण विद्या संकाय, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी ।
 
बुद्ध वंदना के लिए भंते ज्ञानानन्द, भंते ज्ञानरतन, स्वागत गीत के लिए जानवी जायसवाल,  योगेन्द्र कुमार मौर्य, प्रधानाचार्य, धम्म चक्र विहार इण्टर कॉलेज, नवापुरा, सारनाथ संजय मौर्य, प्रबंधक-धम्मचक्र विहार इण्टर कॉलेज, नवापुरा, सारनाथ, भिक्षु अलोक, भिक्षु इन्द्रश्री, राम जी राव साथ ही अन्य सभी सदस्यों तथा छात्र व छात्राओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित किया ।
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