आजकल के साहित्यकार -व्यंग्य

मै जब एम. ए. अंग्रेजी साहित्य से कर रहा था उन दिनों मै एक पुस्तक पढ़ा । थॉमस कार्लाइल की “द हीरो एज ए मैन ऑफ लेटर्स ” उसमें लिखा था, कलमकार किसी भी राष्ट्र की दशा और दिशा को बदल सकता है । इन पंक्तियों ने मुझे बहुत प्रभावित किया ।
बतौर संपादक आजकल मै देख रहा हूं कि आज जिसको मन करता है वो पत्रकार , छायाकार , लेखक और साहित्यकार बन जाता है । पहले यह काम विद्वान लोग , सामाजिक चिंतक करते थे । आजकल शौकिया कवि , लेखक और पत्रकार हो गए हैं , जिनका समाज और जीवन के प्रति कोई भी दृष्टिकोण नहीं है । पुस्तके कैसे लिखी जाती हैं ? यह मुझे पता है , सोचता कोई और है, लिखता कोई और है , प्रूफिंग करता कोई और है, और नाम होता किसी और का है । और वाहवाही लूटता कोई और है । जब पुस्तक बाजार में आ जाती है , तब एक शानदार पुस्तक विमोचन कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है । जिसमें लेखक के शुभेच्छु आकर उन माननीय के शान में कसीदे पढ़ते हैं । ऐसे साहित्यकारो के पास अपनी एक टीम होती है जिसका पारिश्रमिक चाय , जिलेबी , पकौड़ी होती है ।
ज्यादातर यह काम अमीर लोग करते हैं जिनको समाज में अपनी कीमत बनानी होती है । यह नया चलन है खुद को महत्वपूर्ण बनाने का । ऐसे लोगों से लोग संबंध बनाने के लिए आगे पीछे रहते है कोई नात- रिश्तेदार बीमार हो तो इनके पास समय नहीं है मिलने के लिए | क्योंकि वह व्यक्ति सीधा- साधा और गरीब है , दुनिया के छल प्रपंचों से दूर ।लेकिन तथाकथित साहित्यकार रात को बुलाए तो ऐसे लोग एक टांग पर दौड़ते हुए जाते हैं और उस व्यक्ति की दृष्टि में खुद को उनका सबसे बड़ा हितैषी बताने की कोशिश करते हैं ।
“हर घड़ी चश्मे खरीददार में रहने के लिए , कुछ हुनर चाहिए बाजार में रहने के लिए
मैने देखा है जो मर्दों की तरह रहते थे मसखर बन गए दरबार में रहने के लिए”|
ऐसे साहित्यकार, कवि हर शहर में देखे जा सकते हैं । इन लोगों को खबरों में बने रहने के लिए एक मीडिया संस्थान की भी जरूरत होती है । जो इनको प्रमोट कर सके । यह सिलसिला यही नहीं रुकता है फिर असली काम शुरू होता है बड़े – बड़े लोगों को सप्रेम भेंट देकर खुद को गौरवान्वित करने का । फोटो खिचाने का , विश्वविद्यालयों में रजिस्टर्ड डाक से भेजना और फिर निवेदन करना आप इस पर कुछ लिखिए, कुछ कहिए , हो सके तो पाठ्य पुस्तकों में इसका समावेश करिए , इस पर शोध करिए । ऐसे लोगो का एक ही उद्देश्य होता है कि केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा उन्होंने कोई सम्मान प्राप्त हो जाए । और वह समाज में अग्रिम पक्ति के व्यक्ति बन जाए | सम्मान पत्र उन माननीय के अतिथि कक्ष में रखा जाए ,कोई भी शुभ चिन्तक आए तो उसको देखकर साहित्यकार महोदय की विशिष्टता को जान सके |
अगर आप हिंदी फिल्म प्रमोद चक्रवर्ती द्वारा निर्मित “नया ज़माना ” देख ले तो यह समझने में देर न लगेगी कि आज का साहित्यकार कहां पहुंच गया है ?
पाठकों क्या ऐसे कलमकार ही देश की दशा और दिशा बदलेंगे आप लोगों को सोचना होगा। कलमकार तो युग दृष्टा है । उसकी कलम सत्य के लिए उठती है , और सत्यता ही एक सभ्य समाज का निर्माण कर सकती है ।
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