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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 4 Aug 2025 8:15 PM |   525 views

सफल फसलों के उत्पादन में सल्फर का योगदान

फसलों में सल्फर (गंधक) का महत्व बहुत अधिक होता है क्योंकि यह पौधों की वृद्धि, गुणवत्ता और उपज को प्रभावित करता है। इस द्वितीयक तत्व को अक्सर ही यूरिया, DAP जैसे लगातार दिये जा रहे उर्वरको की बाढ़ मे भूला दिया जाता है जिसकी फसल या परिस्थिति विशेष मे माँग की कमी न समझ और पूरी कर पाना उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
 
सल्फर की कमी के लक्षण पौधों मे क्या है?
नई और ऊपरी पत्तियों का पीला पड़ना (Chlorosis): सल्फर की कमी का सबसे पहला और स्पष्ट लक्षण यह है कि पौधे की नई यानी ऊपर की पत्तियाँ पीली होने लगती हैं, जबकि पुरानी पत्तियाँ हरी रहती हैं।
 
पौधों की बढ़वार में रुकावट: पौधे सामान्य आकार से छोटे और कमजोर दिखते हैं, तना पतला और कठोर हो जाता है।
 
पत्तियों एवं तनों का हल्का बैंगनी या भूरा रंग: अधिक कमी होने पर पत्तियों और तनों में बैंगनी या भूरा रंग आ सकता है।
 
फूल और फली कम बनना: पौधे पर फूल और फल/फलियाँ कम बनती हैं, बीजों का विकास अधूरा रह सकता है। फसल की समय पर परिपक्वता में देरी और उपज में कमी आती है। दलहनी फसलों की जड़ों में गांठें (नाइट्रोजन स्थिरिकरण) कम बनती हैं, जिससे पौधे में नाइट्रोजन की कमी भी हो सकती है।
 
सल्फर की कमी के ये लक्षण अक्सर नाइट्रोजन की कमी से मिलते-जुलते होते हैं, मगर अंतर यह है कि सल्फर की कमी में नई पत्तियाँ प्रभावित होती हैं, जबकि नाइट्रोजन की कमी में पुरानी।
 
1. जैविक क्रियाओं में भूमिका:
सल्फर पौधों में अमीनो अम्लों (सिस्टीन, मेथियोनीन) का मुख्य घटक होता है। ये अमीनो अम्ल प्रोटीन निर्माण, एंजाइम क्रिया और सुगंध निर्माण में सहायक होते हैं। इसके अलावा सल्फर को जैविक खेती के कुछ विद्यानों मे परिस्थितियोवश मान्यता भी प्राप्त होती है।
 
2. विशेष फसलें जिनमें सल्फर यौगिक आवश्यक हैं या पाए जाते हैं:
 
 
 
3. ठंड से बचाव में सल्फर:
सल्फर कोशिका झिल्ली की मजबूती बढ़ाता है जिससे सर्दी के प्रभाव को सहन करने की क्षमता बढ़ती है। इसकी वजह से साथ सरसों, मटर, धनिया जैसे शीतकालीन फसलों में सल्फर की पूर्ति ठंड से फसल का बचाव करती है।
 
4. मकड़ी एवं रोग नियंत्रण में भूमिका:
सल्फर 80% WP एक जैविक फफूंदनाशक और कीटनाशक की तरह कार्य करता है।
मकड़ी, पाउडरी मिल्ड्यू (Powdery mildew) आदि कीट रोगों में इसका छिड़काव प्रभावी है।
 
5. मृदा pH पर असर:
सल्फर अम्लीय प्रकृति का होता है।
उच्च pH (अल्कलाइन, >8.0) मिट्टी में सल्फर देने से pH कम होकर 6.5-7.5 के बीच लाया जा सकता है, जो अधिकांश फसलों के लिए अनुकूल होता है।सल्फर ऑक्सीडेशन से बनने वाला सल्फ्यूरिक एसिड धीरे-धीरे मृदा को संतुलित करता है।
 
सल्फर देने के तरीके, मात्रा और समय
 
2 मात्रा प्रति एकड़ व देने का समय (मुख्य फसलों के लिए):
 
3- पत्तियों पर छिड़काव:
सल्फर 80% WP:
मात्रा: 2-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी
समय:रोग प्रारंभ पर 15 दिन के अंतराल पर ,सांझ को छिड़काव करें, धूप में न करे।
 
सल्फर प्रयोग मे मुख्य सावधानियाँ:
1. तेज धूप में छिड़काव न करें-
सल्फर का छिड़काव सुबह जल्दी या शाम को करें।
तेज धूप में छिड़काव करने से पत्तियाँ झुलस सकती हैं
 
2. खेत में नमी बनी हो-
सल्फर देने से पहले खेत में पर्याप्त नमी होना जरूरी है, ताकि यह अवशोषित हो सके।
सूखी मिट्टी में सल्फर देने से पौधे इसे नहीं ले पाते।
 
3. अन्य उर्वरकों या कीटनाशकों के साथ सावधानी-
सल्फर को कभी-कभी फास्फोरस, चूना (lime), या बोरॉन जैसे उर्वरकों के साथ देने से रासायनिक प्रतिक्रिया हो सकती है।
सल्फर स्प्रे को तेल आधारित कीटनाशकों (mineral oils) के साथ मिलाना हानिकारक हो सकता है।
 
4. तापमान अधिक होने पर स्प्रे न करें-
यदि तापमान 30°C से ऊपर हो, तो सल्फर स्प्रे न करें।
इससे पौधों में फाइटोटॉक्सिसिटी (chemical burn) हो सकता है।
 
5. उपयुक्त मात्रा में ही दें-
अत्यधिक मात्रा में सल्फर देने से:
मिट्टी अत्यधिक अम्लीय (acidic) हो सकती है।
पौधे में नाइट्रोजन, फास्फोरस, कैल्शियम का अवशोषण कम हो सकता है।
 
6. मिट्टी परीक्षण के अनुसार ही प्रयोग करें-
यदि मिट्टी में पहले से ही सल्फर की प्रचुरता है, तो इसे अतिरिक्त देने से कोई लाभ नहीं होगा — केवल नुकसान होगा। इसलिए मृदा परीक्षण के आधार पर ही सल्फर का निर्णय लें।
 
डॉ. शुभम कुमार कुलश्रेष्ठ,विभागाध्यक्ष- उद्यान विभाग,(कृषि संकाय), रविन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, रायसेन, मध्य प्रदेश
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