मक्का की खेती कैसे करे किसान भाई

मक्का से पापकार्न, कार्नफ्लेक्स, स्टार्च, एल्कोहल, सतुआ, भूजा, रोटी, भात, दर्रा , घुघनी, आदि विभिन्न ब्यंजन बनाये जाते है। इसके डंठल पशुओं के खिलाने में उपयोग किया जाता है।
प्रसार्ड ट्रस्ट मल्हनी देवरिया के निदेशक डा. रवि प्रकाश मौर्य सेवानिवृत्त वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि खरीफ़ मक्का की खेती वर्षा ऋतु में बरसात के मौसम की शुरुआत में की जाती है।खरीफ़ मक्का की खेती में कई जैविक और अजैविक तनावों की व्यापकता होती है। खरीफ़ मक्का क्षेत्र का 70% से अधिक क्षेत्र वर्षा आधारित स्थिति में उगाया जाता है।
भूमि की तैयारी- मक्का की खेती के लिए जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि उपयुक्त होती है। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 जुताई कल्टीवेटर या रोटावेटर द्वारा करनी चाहिए।
बुआई का समय- देर से पकने वाली प्रजाति की बुआई मध्य मई से मध्य जून तक पलेवा कर करनी चाहिए। जिससे बर्षा होने से पहले खेत में पौधे भलीभांति स्थापित हो जाय। शीघ्रपकने वाली मक्का की बुआई जून के अंत तक कर ली जाय।
बीज की मात्रा एवं बुआई की विधि- देशी छोटे दाने वाली प्रजाति 16-18 किग्रा. ,संकर के लिए 20-22 किग्रा.एवं संकुल के लिए 18-20 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है। अगैती किस्मों के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेमी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी. मध्यम एवं देर से पकने वाली प्रजातियों मे पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सेमी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 25 सेमी. रखनी चाहिए।3.5 सेमी गहराई रखनी चाहिए।
प्रजातियाँ- पूर्वी उत्तर प्रदेश में खरीफ़ मक्का की जेएच-3459, पूसा अगेती संकर मक्का-2, दक्कन-115, और एमएमएच-133 जैसी प्रजातियां उगाई जाती हैं।
खरीफ़ मक्का की कुछ और प्रजातियां जैसे-गंगा-5 हाइब्रिड प्रजाति पार्वती ,पूसा हाइब्रिड-1,शक्तिमान शक्ति-1 प्रजाति है।
उर्वरकों का प्रयोग- मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए। देर से पकने वाली संकर एवं संकुल प्रजातियों के लिए 120ः60ः60 शीघ्र पकने वाली प्रजातियों के लिए 100ः60ः40 तथा देशी प्रजातियों के लिए 80ः40ः40 किग्रा नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश का प्रयोग करना चाहिए।गोबर की खाद प्रयोग करने पर 25 प्रतिशत नत्रजन की मात्रा कम कर देना चाहिए। बुआई के समय एक चौथाई नत्रजन, पूर्ण फास्फोरस एवं पोटाश कूड़ों में बीज के नीचे डालना चाहिए।
शेष नत्रजन तीन बार में बराबर बराबर मात्रा में टापड्रेसिंग के रुप में दें। पहली टापड्रेसिंग बुआई के 25-30 बाद,( निराई के तुरंत बाद) दूसरी नर मंजरी से आधा पराग गिरने के बाद, तीसरी संकर मक्का में बुआई के 50-60 दिन बाद एवं संकुल में40-45 दिन बाद की जाती है।
जल प्रबंधन- पौधों को प्रारंभिक अवस्था तथा सिल्किंग से दाना पड़ने की अवस्था में पर्याप्त नमी आवश्यक है। सिल्किंग के समय पानी न मिलने पर दाना कम बनते है।
विशेषज्ञ ध्यान देने योग्य बातें- चिडियों, तथा जानवरों से बचाव आवश्यक है। मक्का की बुआई मेंडो़ पर करें। विरली करण द्वारा पौधों की उचित दूरी सुनिश्चित करें।।
कटाई एवं मड़ाई-खरीफ़ मक्का की कटाई सितंबर-अक्टूबर के महीने में की जाती है। कच्चे भुट्टे भी उपयोग में लाये जाते है। फसल पकने पर भुट्टों को ढ़कने वाली पत्तियां जब 75 प्रतिशत झड़ जाए एवं पीली पड़ने लगती है।तब कटाई करनी चाहिए।
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