हे कान्हा होली खेले अइहा

कार्यशाला का शुभारंभ प्रो. अजय शुक्ला (विभागाध्यक्ष, अंग्रेज़ी विभाग, दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय), डॉ. रूप कुमार बनर्जी, डॉ. राकेश श्रीवास्तव और राकेश मोहन ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
मुख्य अतिथि प्रो. अजय शुक्ला ने कहा कि नई पीढ़ी को पारंपरिक लोकगीतों से जोड़ना अत्यंत सराहनीय कार्य है। उन्होंने कहा,भोजपुरी लोकगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर और सामाजिक चेतना के प्रतीक हैं। इन गीतों में लोकजीवन, प्रेम, भक्ति, हास्य और आध्यात्म का अद्भुत समावेश होता है। यह आवश्यक है कि हम अपनी जड़ों से जुड़ें और आने वाली पीढ़ी को इस धरोहर से परिचित कराएँ। भोजपुरी भाषा और संस्कृति के संवर्धन के लिए ऐसे प्रयास निरंतर होते रहने चाहिए।
भाई के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. रूप कुमार बनर्जी ने कहा कि भोजपुरी आज केवल एक भाषा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन बन चुकी है। उन्होंने उल्लेख किया कि अब प्रदेश की विधानसभा की कार्यवाही भी भोजपुरी में हो रही है, जो ‘भाई’ की भोजपुरी जागरूकता का प्रमाण है।
इस अवसर पर अंग्रेज़ी विभाग की छात्राओं ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। कार्यशाला के पहले दिन “धमार” पारंपरिक होली गीत “आज जमुना के तीर ये कान्हा होली खेले अइहा… का प्रशिक्षण दिया गया, जिसे प्रतिभागियों ने मनोयोग से सीखा।
कार्यशाला निदेशक डॉ. राकेश श्रीवास्तव ने कहा कि पारंपरिक लोकगीतों को संरक्षित करने हेतु वे कृतसंकल्प हैं और इसी उद्देश्य से समय-समय पर इस तरह की कार्यशालाओं का आयोजन करते हैं। उन्होंने बताया कि उनकी कार्यशालाओं में प्रशिक्षित प्रतिभागी विभिन्न मंचों पर अपनी विशिष्ट पहचान बना रहे हैं।
आज प्रथम दिन 55 प्रतिभागियों ने कार्यशाला में भाग लिया। ढोलक संगत मोहम्मद शकील ने की। कार्यक्रम का संचालन शिवेंद्र पांडेय ने किया और आगंतुकों को धन्यवाद ज्ञापन प्रेम नाथ ने दिया।
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