आज का मानव
बस इतनी सी है, वो
साथ में बैठ के हसेंगे भी,
पर, पीठ पीछे डसेंगे भी ।
बड़ी बिडम्बना इनकी है
भेजा इनका सनकी है।
करते हरकत बड़ी अजीब
लगता जैसे हैं निर्जीव ।
मीठी बातों से उलझाते हैं
असली रूप छिपा जाते हैं ।
खुद को बतलाते ये महान
पर अंदर से होते हैवान ।
बात करेंगे बड़ी ही चोखी
जैसे सागर के हों मोती ।
पर जब संगत इनकी होती
झूठ की तब खुल जाती पोथी ।
फिर देख हमें होती हैरानी
तब दुनियां लगती बेमानी ।
पर इनको ना फर्क है पड़ता
चाहे कोई कुछ भी हो कहता ।
इनकी तो फितरत ही यही है
गलत भी इनको लगे सही है।
इन्हें होती ना परवाह किसी की
कुचले अरमां चाहे किसी की
बड़ी ही घटिया इनकी सोच
दे जाते रिश्तों में मोच ।
आज के युग की यही सच्चा
कान खोल सब सुन लो भाई।
संजुला सिंह “संजू”
जमशेदपुर
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