आध्यात्मिक दर्शन का स्वरुप
आध्यात्मिक दर्शन कैसा होना चाहिए? मनुष्य सर्वावस्था में सुख – शान्ति में रहना चाहता है।यह चाहत असीम है।अनन्त सुख का पिपासु है। अनन्त सुख ही आनंद है।” सुखम् अनन्तम् आनन्दम् ” । इसलिए हर मनुष्य ही आनंद पाने और अपने को बचा कर रखने की लालसा से अपना सभी काम करता है। मनुष्य जब देखता है कि सुख की राहें बंद हो गयी, केवल तभी घनघोर निराशा की अवस्था में वह आत्म हत्या कर लेता है। यही मनोविज्ञान धरती के सभी मनुष्यों का है,चाहे वह किसी प्रजाति अथवा धर्ममत से सम्बन्धित क्यों न हो।
मनुष्य के इसी मनोविज्ञान को केन्द्र में रखकर उसकी सभी व्यवस्थाओं को निर्मित करने, गढ़ने से उसको सुख शांति मिलेगी और वह सहजता से अपने चरम लक्ष्य की ओर चलने में अनुकूलता अनुभव करेगा। यह तभी संभव है जब इस तत्त्व को सामने रखकर इसके अनुसार सिद्धांत का निरूपण किया जाये।इस महत् उद्देश्य को रसद पहुंचाने, प्रेरणा देने वाले वास्तविक दर्शन शास्त्र का प्रतिपादन किया जाना चाहिए।
आज के पूर्व दर्शन शास्त्र के नाम पर जितने दर्शन प्रकाश में आये थे सभी अंधों का हाथी देखने जैसा है। प्रभात रंजन सरकार ने विश्व के सभी तथाकथित सिद्धांतों और दर्शनों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया है, जिसे मैंने पहले वर्णन किया है।इन दर्शनों ने मानव समाज में निराशा, अविश्वास और बुद्धि हिनता यानी बौद्धिक दासता भरी राह पर ले चल कर पतनोन्मुख किया है,जीवन को अस्वाभाविक बना कर धर्म विमुख किया है।
आनन्द ही परमात्मा है।कहा जाता है —” आनन्दं ब्रह्म इत्याहु” । अतः दर्शन को आनन्द केन्द्रित, ईश्वर केन्द्रित अथवा ब्रह्म केन्द्रित ही होना चाहिए। वर्तमान जगत में उपस्थित सभी समस्याओं का मौलिक समाधान होने से ही मानवता को बचाने का पथ प्रशस्त होगा।
श्रीआनन्दमूर्ति द्वारा प्रतिपादित अध्यात्म दर्शन इसी प्रकार का एक सम्पूर्ण दर्शन है। इस दर्शन में आत्मा परमात्मा, निर्गुण ब्रह्म सगुण ब्रह्म तारक ब्रह्म सृष्टि चक्र मन मन की अवस्थाएं मन की क्रिया का वर्गीकरण के हिसाब से भेद,मन के कोष से सम्बन्धित क्रियाएं,धर्म साधना पुनर्जन्म की वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण इत्यादि इत्यादि सभी आवश्यक तत्वों को स्थान दिया गया है।
इन सभी बातों के अतिरिक्त समाजार्थिक तत्वों की वैज्ञानिक तथा मनोवैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। समाज निर्माण के साथ साथ मानव निर्माण की सम्पूर्ण व्यवस्था इस दर्शन में व्याख्यायित किया गया है।
मनुष्य समाज की मनोभूमि में जिस प्रकार भ्रमार्त किया गया है उसी प्रकार उस भ्रम को मानव मन से दूर करने के लिए जिस प्रकार के दर्शन की जरूरत थी उसे श्री श्रीआनन्दमूर्ति जी ने प्रस्तुत किया है। आज सम्पूर्ण समाज बौद्धिक दिवालियापन का मनोरोगी हो गया है।इस भयंकर मनोरोग से मानवता को बचाने में सहायक हैं आनन्द मार्ग का साहित्य संभार। नव्यमानवतावादि यह दर्शन मनुष्य समाज में परिव्याप्त अंधविश्वास अधारित कुसंस्कारों को विदूरित करके ज्ञान दीप से जगमग कर देगा।
–नरसिंह
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