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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 3 Sep 2024 5:05 PM |   369 views

फसलों में खर पतवार के निवारण हेतु मोबाइल न0 पर करें शिकायत

कुशीनगर -जिला कृषि रक्षा अधिकारी डा0 मेनका सिंह ने बताया की गन्धी बगः इस कीट के शिशु और प्रौढ लम्बी टाँगो वाले भूरे रंग के विशेष गन्ध वाले होते हैं, जो बालियों को दुग्धावस्था में दानों में बन रहे दूध को चूसकर हानि पहुँचाते है, प्रभावित दानों में चावल नहीं बनता है।
 
इसके निदान हेतु किसान भाई एजाडिरेक्टिन (नीम का तेल) 0.15 % EC की 700-800 मिली० मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से 200-250 ली० पानी में मिलाकर छिड़काव करें। यदि कीटों के प्रकोप से आर्थिक क्षति स्तर 5% से आधिक हो जाये तो मैलाथियान 50 % EC की 450 मिली० मात्रा 200-400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए ।
 
झोंका रोगः- इस रोग की वजह से पत्तियों पर आँख की आकृति जैसे धब्बे बनते है जो मध्य में राख के रंग और किनारे पर गहरे कत्थई रंग के होते है। पत्तियों के अतिरिक्त बालियों डंठलों एवं पुष्पशाखाओं और गाँठो पर काले भूरे धब्बें बनते है। इसके नियत्रण हेतु कारवेन्डाजिम 12% + मैन्कोजेब 63% wp की: में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करना चाहिए। 200 ग्राम मात्रा 200 ली० पानी
 
जीवाणु झुलसा रोगः- इस रोग के लगने पर पत्तियों सिरे या किनारे से शुरू होकर मध्य भाग तक सूखने लगती है. सूखे किनारे अनियमित और टेढ़े-मेढ़े या झुलसे हुए दिखाई देते है, संक्रमण की गम्भीर अवस्था में पत्तियों सूख जाती है, एवं बालियों में दाना नही बनता है। इसके उपचार हेतु स्ट्रेप्टोसाइक्लिन @16 ग्राम + कॉपरऑक्सीक्लोराइड 500 ग्राम को 450-500ली0 मिलाकर प्रति हे0 कि दर से 7-10 दिन के अन्तराल पर दो बार स्प्रे करना चाहिएं।
 
धान की फसल के अलावा अन्य फसलों में लाने वाले कीट/रोग एवं खरपतवार की समस्या के निवारण हेतु किसान साथी वाट्सएप न०- 9452247111 अथवा 9452257111 पर प्रभावित पौधों की फोटो सहित अपनी समस्या और पूरा पता लिखकर प्रेषित करें। समस्या का निराकरण 48 घंटे में किसान के मोबाइल पर कर दिया जायेगा।
 
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