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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 3 Apr 2024 4:52 PM |   3777 views

तोरई( नेनुआ) की वैज्ञानिक खेती कैसे करें? किसान भाई

तोरई एक नगदी फसल के रूप में जानी जाती है। इसके पौधे बेल एवं लता के रूप में बढ़ते हैं, इस वजह से इसको लतादार सब्जियों की श्रेणी में रखा गया है। तोरई को विभिन्न – विभिन्न स्थानों पर अलग – अलग नामों से जाना जाता है | जैसे तोरी, झिंग्गी और तुरई आदि। इसके पौधों में निकलने वाले फूल पीले रंग के होते है। इसमें फूल नर और मादा रूप में निकलते हैं, जिनके निकलने का समय भी अलग-अलग होता है। बारिश का मौसम तोरई की खेती के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
 
तोरई की खेती के लिए गर्म और आद्र जलवायु उपयुक्त होती है, साथ ही इसकी खेती के लिए 25 – 37 डिग्री सेल्सियस तापमान उचित माना जाता है।तोरई की खेती के लिए उच्च कार्बनिक पदार्थो से युक्त व अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ मृदा की आवश्यकता होती है। साथ ही मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7. 5 के बीच होना चाहिए। 
 
खेत को तैयार करने के लिए सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई कर लें। खेतों को कुछ दिनों के लिए खाली छोड़ दें। ताकि उसको अच्छे से धूप लग सके।
 
इसके बाद खेत में 15  से 20 टन गोबर की पुरानी खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाल कर खेत की हल्की जुताई करें ऐसा करने से मृदा में खाद अच्छी तरह से मिल जाता है। इसके बाद खेत में रोटावेटर लगा कर मृदा को भुरभुरा कर लें।
 
इसके बाद आखरी जुताई के समय मिट्टी में (एन.पी.के. की 100:60:60) 172 किग्रा. यूरिया, 188किग्रा. एन.पी.के12:32:16 एवं 50 किग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश  खेत में डालें।
 
इसके बाद पाटा लगाकर मृदा को समतल कर  पंक्ति से पंक्ति की दूरी 180 सेमी. पौध से पौध की दूरी 75 सेमी पर 2-3 सेमी.गहराई पर बीजों को  नालियों के किनारे लगाएं।
 
प्रजातियां- चिकनी तोरई-पूसा चिकनी, पूसा सुप्रिया ,पूसा स्नेहा, कल्यानपुर चिकनी एवं कल्याणपुर हरा। नसदार तरोई-पूसा नसदार, पूसा नूतन, अर्का सुमित, अर्का सुजात,कल्यानपुर धारीदार, एवं पंत तरोई-1,
 
बुवाई का समय- यह गर्म और बरसात दोनों मौसम की फसल है, इसलिए इसकी की बुवाई का समय अलग – अलग होता है। ग्रीष्मकालीन फसल की बुवाई का समय फरवरी-मार्च एवं बरसात के मौसम की फसल के लिए जून-जुलाई माह उचित होता है।  
 
बीज दर– सामान्य बीज 4-5किग्रा/हेक्टेयर में प्रयोग करे।
 
सिंचाई- इसमें पहली सिंचाई बीज रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए और अगली सिंचाई तीन से चार दिन के अंतराल में हल्की-हल्की करें, जिससे की खेत में नमी बनी रहे और बीजों का अंकुरण ठीक से हो सके। यदि बरसात समय – समय पर हो रही है तो फसल में नमी के अनुसार सिंचाई करें। पानी का ठहराव न होने दें।
 
तुड़ाई समय-  तोरई की उन्नत किस्मों के बीज रोपाई के बाद तुड़ाई  के लिए तैयार होने में 70 से 80 दिन का समय लग जाता है। इसके फलों की तुड़ाई कच्ची अवस्था में की जाती है।
 
उपज- सही तकनीक अपनाने पर 200-240 कुन्टल प्रति है. में फल प्राप्त किया जा सकता है।
 
– प्रो . रविप्रकाश मौर्य , प्रसार्ड ट्रस्ट मल्हनी देवरिया 
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