‘काकोरी के महानायक’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया
कुशीनगर – राष्ट्रीय सेवा योजना बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय कुशीनगर एवं संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा संयुक्त रूप से ‘काकोरी के महानायक’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया |
स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में आजादी के लाखों गुमनाम महानायको की कुर्बानी छिपी हुई है। आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में इन महान नायकों को याद करना हम सभी का पुनीत कर्तव्य है। यह उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का एक अवसर भी है।
मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए डॉ अंबिका प्रसाद तिवारी ने कहा कि आजादी के आंदोलन की प्रमुख घटनाओं में से एक घटना काकोरी ट्रेन एक्शन है। जिसमें पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, ठाकुर रोशन सिंह,राजेन्द्र लाहिणी एवं अन्य क्रांतिकारियों ने मिलकर अंग्रेजों द्वारा ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूटने की योजना को अंजाम दिया।यह योजना उनके अपूर्व साहस, देशप्रेम और बलिदान की याद दिलाती है। यह घटना बताती है कि आजादी के लिए किस प्रकार हजारों क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी है।
उन्होंने बताया कि आजादी के दीवानों में देश के प्रति प्रेम,भक्ति और बलिदान की भावना इतनी प्रबल थी कि जहां पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने देश को आज़ाद कराने के लिए हजार बार जन्म लेकर भी खुद को कुर्बान करने की ख्वाहिश जाहिर की वही अशफाक उल्ला खाँ ने कहा कि अगर हमारे पुण्य कर्मों से खुश होकर अल्लाह ने पुण्यकर्मों के बदले में कुछ मांगने को कहा तो मैं उनसे जन्नत मांगने की जगह, इस देश को आज़ाद कराने के लिए एक और जन्म देने के लिए कहूंगा। उनका कहना था कि जब तक देश को आजाद नहीं करा लूंगा तब तक हमें स्वर्ग में भी सुख नहीं मिलेगा।
महान क्रांतिकारी राजेंद्र सिंह सराभा ने जज द्वारा खुद को कम सजा दिए जाने पर कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि देश के प्रति त्याग को आप कम करके आंक रहें हैं।उन्होंने जज से झगड़ा करके यह स्थिति पैदा कर दी कि जज को उन्हें कारावास की जगह फांसी की सजा देनी पड़ी। यह सब हमारे महानायको के त्याग और बलिदान की कहानियां हैं जिन्हें आज की पीढ़ी को जानना अति आवश्यक है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो सत्येंद्र कुमार गौतम ने बताया कि काकोरी ट्रेन एक्शन ने ब्रिटिश साम्राज्य की चूले हिला दी।अंग्रेजों सरकार को इस घटना से बड़ा धक्का लगा।इससे उसका सर्वशक्तिमान होने का गरूर टूट गया।इस घटना से ब्रिटिश सरकार डर गई। इस घटना के बाद देश का पूरा राजनीतिक परिदृश्य बदल गया। क्रांतिकारियों में एक आत्मविश्वास की लहर पैदा हुई कि जिन लोगों के साम्राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता उन लोगों को भी देश से भगाया जा सकता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय कुशीनगर के मुख्य नियंता डॉ त्रिभुवन नाथ त्रिपाठी ने बताया 8 अगस्त 1925 को काकोरी ट्रेन एक्शन हुआ था।
यह घटना भारत के इतिहास में इतनी महत्वपूर्ण है कि लगभग 20 वर्ष बाद भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने 8 अगस्त से ही प्रारंभ करने का निर्णय लिया। इससे आज़ादी के संघर्ष में काकोरी ट्रैन एक्शन की घटना के महत्व को समझा जा सकता है। आजादी के दीवाने इतने मतवाले थे कि उन्होंने राष्ट्र को आजाद करने के लिए खुद को बलदान करने में भी संकोच नहीं किया ।
इस घटना में लगभग 10 लोगों को सजा हुई। जिसमें 4 लोगों को फांसी ,5 लोगों को कालापानी और एक व्यक्ति को 14 वर्ष की सजा सुनाई गई ।इस घटना के शार्प शूटर ठाकुर रोशन सिंह को 17 दिसंबर को फांसी की सजा सुनाई गई जबकि बाकी तीन महानायको पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और राजेंद्र लाहिड़ी को 19 दिसंबर को फांसी की सजा दी गई। अंग्रेज सरकार इन महानायको से इतनी डर गई थी कि इनको अलग-अलग स्थानों पर फांसी दी गई।
कार्यक्रम का संचालन एन एस एस कार्यक्रम अधिकारी डॉ निगम मौर्य ने किया। अतिथियों, स्वयंसेवकों,पत्रकार बंधुओं एवं कर्मचारियों का आभार ज्ञापन कार्यक्रम अधिकारी डॉ पारसनाथ ने किया।
इस अवसर पर कर्मचारी फूलचंद गौड़,संजय गौड़, विजय शर्मा, कमलेश कुमार, बृज किशोर दुबे, घनश्याम मिश्रा, स्वयंसेवक जया तिवारी,प्रीति मणि त्रिपाठी, आंचल पटेल, कृष्णा पांडेय, आदर्श मिश्र, अनुज मिश्रा और रितेश यादव समेत बड़ी संख्या में स्वयंसेवक उपस्थित थे।