सरदार पटेल: व्यक्तित्व एवं कृतित्व विषयक छायाचित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया गया
गोरखपुर – राजकीय बौद्ध संग्रहालय, गोरखपुर (संस्कृति विभाग, उ0प्र0) द्वारा भारत रत्न लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल जी के परिनिर्वाण दिवस के अवसर पर दिनांक 15 दिसम्बर, 2022 को ‘‘सरदार पटेल: व्यक्तित्व एवं कृतित्व‘‘ विषयक छायाचित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।उक्त प्रदर्शनी में सरदार पटेल के बाल्यकाल से लेकर निर्वाण प्राप्ति तक की घटनाओं एवं उनके योगदान को चित्रों के माध्यम से दिखाने का एक अनूठा प्रयास किया गया है। प्रदर्शनी के माध्यम से संग्रहालय का प्रयास है कि युवा पीढ़ी सरदार पटेल के जीवन व दर्शन को समझे और अपने जीवन में आत्मसात कर देश की उन्नति में अपना योगदान दे।
उक्त अवसर पर दिग्विजयनाथ एल0टी0 प्रक्षिशण महाविद्यालय, गोरखपुर की लगभग 105 छात्र-छात्राओं तथा डाॅ0 राममनोहर लोहिया की कुल 50 छात्राओं सहित कुल लगभग 200 लोगों ने उक्त प्रदर्शनी का अवलोकन किया।
उक्त अवसर पर संग्रहालय के उप निदेशक डाॅ0 मनोज कुमार गौतम ने कहा कि जनसामान्य को पटेल के जीवन संघर्षो तथा प्रेरक प्रसंगों के माध्यम से ऐतिहासिक एवं ज्ञानवर्धक जानकारी उपलब्ध है। सरदार पटेल ने देश की एकता और अखण्डता की जो मिशाल पेश किया, उससे हमें सीख लेनी चाहिए और देश को एक सूत्र में पिरोये रखना हमारा कर्तव्य एवं नैतिक जिम्मेदारी है। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिए उन्हें भारत का लौह पुरूष कहा जाता है और इतना ही नहीं इनके अद्वितीय योगदान के लिए इन्हे भारत का विस्मार्क भी कहा जाता है। वे इस देश के बहुमूल्य धरोहर थे। लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के देशभक्तों में एक अमूल्य रत्न थे। सरदार पटेल भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के अक्षय शक्ति स्तम्भ थे। आत्म त्याग, अनवरत सेवा तथा अन्य दूसरों को दिव्य शक्ति की चेतना देने वाले एक युग पुरूष थे।
वास्तव में सरदार पटेल आधुनिक भारत के शिल्पी थे। सरदार पटेल ने स्थानीय आन्दोलन हो या राष्ट्रीय आन्दोलन सभी में दृढ़ संकलपता के साथ कार्य किया। इन्होने देश की आजादी के विभिन्न आन्दोलनों में प्रमुख एवं अहम भूमिका निभाई, जिसके लिये समूचा देश उनका कृतज्ञ रहेगा।सरदार पटेल 7 अक्टूबर 1950 को जब अन्तिम बार हैदराबाद गये तो वहाँ उन्हें हैदराबाद सिकन्दराबाद की म्यूनिसिपलिटी तथा हिन्दी प्रचार सभा द्वारा मानपत्र दिया गया। उसके प्रति आभार प्रकट करते हुए सरदार ने कहा था -’’मुझे मानपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं है और ना ही इसका कोई समय आया है। जब आदमी दुनिया छोड़कर चला जाता है, असल मानपत्र तो उसके बाद मिलता है, क्योंकि कोई आदमी आखिरी दिन तक कोई गलती न करे, तब उसकी इज्जत रहती है।
लेकिन यदि आखिरी उम्र में दिमाग पलट जाये तो सारी मेहनत और त्याग खत्म हो जाता है। सरदार पटेल अपने उक्त विचार के दो माह पश्चात 12 दिसम्बर को बम्बई गये और 15 दिसम्बर को 1950 को प्रातः 9 बजकर 37 मिनट पर दिव्य शक्ति की चेतना देने वाला यह सूरज अस्त हो गया। समूचा राष्ट्र लौह पुरूष का हर दौर में हमेशा हमेशा कृतज्ञ रहेगा।
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