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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 1 Dec 2022 2:34 PM |   925 views

“अंतर्राज्यीय सम्बन्ध एवं भारतीय संस्कृति ” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया

महाविहार सम विश्वविद्यालय, नालन्दा एवं महाराजा वीर विक्रम विश्वविद्यालय, अगरतला, त्रिपुरा के संयुक्त तत्त्वावधान में  पारस्परिक विनिमय  के अन्तर्गत आयोजित किए जा रहे  “अंतर्राज्यीय सम्बन्ध एवं भारतीय संस्कृति ” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी सह सांस्कृतिक प्रस्तुति के क्रम में दूसरे दिन अनेक सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ  ( नाटिका, नृत्य नाटिका, गायन , वादन  आदि ) हुईं।
 
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि म. वी. वि.  विश्वविद्यालय,  त्रिपुरा के कुलपति प्रो. सत्यदेव पोद्दार  तथा विशिष्ट अतिथि पत्रकार राजेश्वर राय थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता नव नालन्दा महाविहार सम विश्वविद्यालय, नालन्दा के कुलपति प्रो.  वैद्यनाथ लाभ ने की।
 
कार्यक्रम के संचालक, संयोजक व परिकल्पक प्रो. विजय कुमार कर्ण ने इस आयोजन को राष्ट्र की एकता का कारक बताया। उन्होंने कहा कि संस्कृति जोड़ती है। भारत अपनी संस्कृति की श्रेष्ठता के कारण महत्त्वपूर्ण है। यह  आयोजन सम्पूर्ण भारतीयता को एकाकार करेगा।
 
इस अवसर पर मुख्य अतिथि तथा महाराजा वीर विक्रम विश्वविद्यालय, अगरतला,  त्रिपुरा के  कुलपति  प्रो. सत्यदेव पोद्दार ने कहा कि नालंदा शिक्षा व व्यवस्था का भावी  ‘स्वर्ग’  हो सकता है | यह समय का प्रभाव है कि विभिन्न राज्यों व विचारधाराओं  में बँटे लोग आज एक नहीं  हो पा रहे। किंचित यह अहम्मन्यता है। सांस्कृतिकता से एकता सम्भव है।  बिहार का भविष्य उज्ज्वल है। देश के नेतृत्व की उसमें गहरी क्षमता है। आज का युवक कल का भविष्य है। युवक दुनिया को संस्कृति से बचा सकते हैं। संस्कृति प्रेम की परिचायिका है। वह हृदय जीत लेती है। संस्कृति को  बढ़ावा देना चाहिए।
 
विशिष्ट अतिथि पत्रकार राजेश्वर राय ने कहा कि संघवाद के तहत व्यवस्था लागू की। केंद्र व राज्य के बीच तालमेल हेतु अर्धसंघीय व्यवस्था की बात भी अदालत ने कही है। संस्कृति में भाषा, धर्म, मैत्री, संस्कार आदि की बात आती है। सम्पूर्ण भारत में सांस्कृतिक एकता मिलती है। पूर्व में पश्चिम के मुक़ाबले पारिवारिकता ज़्यादा है।
 
अपने अध्यक्षीय  सम्बोधन में नव नालन्दा महाविहार सम विश्वविद्यालय, नालंदा के माननीय कुलपति प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने कहा कि राष्ट्र केवल भूमि का टुकड़ा नहीं है। राजनीतिक सत्ताएं भिन्न भी हों,  भारत की सांस्कृतिक सत्ता सदा एक रही है। भारत को श्रेष्ठ बनाने की कल्पना – ‘कृण्वंतो विश्वमार्यम ‘ में रही है। अंग्रेज़ी के इतिहास से काफ़ी पुराना भारतीय भाषाओं का इतिहास रहा है। लाचित बरफूकन की बात इतिहास में आनी चाहिए । यूरोप व दिल्ली केंद्रित इतिहास से अलग भी सोचा जाना चाहिए। कष्ट सह कर भी भारतीय अपने अतिथि की सेवा करता है। यह भारतीय संस्कृति का प्राण है। जो विषय इन दोनों विश्वविद्यालयों में उभय हैं , उनको हम मिल कर और आगे बढ़ा सकते हैं। उन पर आधारित शोध कर सकते हैं।
 
अध्यक्षीय  सम्बोधन देते हुए नव नालन्दा महाविहार सम विश्वविद्यालय, नालंदा के मान्य कुलपति प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने कहा कि   राष्ट्र केवल भूमि का टुकड़ा नहीं है। राजनीतिक सत्ताएं भिन्न भी हों,  भारत की सांस्कृतिक सत्ता सदा एक रही है। भारत को श्रेष्ठ बनाने की कल्पना – ‘कृण्वंतो विश्वमार्यम ‘ में रही है। अंग्रेज़ी के इतिहास से काफ़ी पुराना भारतीय भाषाओं का इतिहास रहा है।
 
लाचित बरफूकन की बात इतिहास में आनी चाहिए । यूरोप व दिल्ली केंद्रित इतिहास से अलग भी सोचा जाना चाहिए। कष्ट सह कर भी भारतीय अपने अतिथि की सेवा करता है। यह भारतीय संस्कृति का प्राण है। जो विषय इन दोनों विश्वविद्यालयों में उभय हैं , उनको हम मिल कर और आगे बढ़ा सकते हैं। उन पर आधारित शोध कर सकते हैं।
 
धन्यवाद-ज्ञापन डॉ. प्रदीप कुमार दास ने किया। उन्होंने कहा कि आज की प्रस्तुतियों ने मन मोह लिया। इनसे भारतीय संस्कृति की एकता मजबूत होती है। त्रिपुरा से आए विद्यार्थियों को मान्य कुलपति, नव नालन्दा महाविहार  द्वारा  सम्मानित किया गया।
 
दोनों विश्वविद्यालयों के विनिमय  व सृजन पर आधारित  म. वी. वि. विश्वविद्यालय,  त्रिपुरा द्वारा प्रकाशित पुस्तक का लोकार्पण किया गया। प्रारंभ में डॉ. धम्म ज्योति ने मंगल- पाठ किया।
 
सांस्कृतिक कार्यक्रम के आरम्भ में न. ना. महाविहार के  अश्विनी उपाध्याय, आनंद उपाध्याय तथा त्रिपुरा के शतरूप देवनाथ का गायन हुआ। नव नालन्दा महाविहार के विद्यार्थियों द्वारा 
एक लघु नाटिका प्रस्तुत की गई, जिसमें राष्ट्रीय व सांस्कृतिक एकता की भावना का निदर्शन किया गया।त्रिपुरा के विद्यार्थियों द्वारा  ममिता गीत प्रस्तुत किया गया।
 
महाविहार के विद्यार्थियों राहुल व सुलेखा  द्वारा शिव पार्वती के संवाद को हरियाणवी गीत के  माध्यम से प्रस्तुत किया गया। त्रिपुरा से आई पायल गोस्वामी एवं अल्पना रॉय की नृत्य-प्रस्तुति हुई।
 
कृषि की पृष्ठभूमि पर आधारित ‘लवांग बुमनि’ नृत्य की सामूहिक प्रस्तुति हुई। महाविहार की छात्रा सुलोचना वर्मा का खड्ग-नृत्य  प्रस्तुत हुआ तथा प्रभात कुमार का गायन हुआ, जिसमें राणा सन्तोष कुमार सिंह ने संगति की। नयन कुमार का गज़ल- गायन हुआ। मधुसूदन दास व आलोक कुमार द्वारा योग-प्रस्तुति हुई। नवनीत कृष्ण ने गीत प्रस्तुत किया।
 
त्रिपुरा की स्मिता व सोनिया ने आधुनिक नृत्य प्रस्तुत किया। सामूहिक बांग्ला लोकनृत्य की प्रस्तुति हुई। धोंदुप दोरजी नेगी व लोटुस का तिब्बती व लद्दाखी गीत प्रस्तुत हुआ। त्रिपुरा का  ‘होजगरी नृत्य ‘ तथा राष्ट्रभक्ति पर आधारित नृत्य हुआ।
 
कार्यक्रम में डॉ. नीहारिका लाभ  के अलावा महाविहार के आचार्य – प्रो. आर. एन. प्रसाद, प्रो. रवींद्र नाथ श्रीवास्तव ‘परिचय दास’, प्रो. सी.बी. मिश्र, प्रो. हरे कृष्ण तिवारी, डॉ. एन. डी. तिवारी, प्रो. श्रीकांत सिंह,  प्रो. विश्वजीत कुमार , प्रो. रूबी कुमारी, प्रो. विनोद चौधरी, डॉ. धम्म ज्योति, डॉ. अरुण कुमार, डॉ राजेश मिश्र,  जितेन्द्र कुमार, श्री भीष्म कुमार, रजिस्ट्रार डॉ. सुनील प्रसाद सिन्हा, पुस्तकाध्यक्ष डॉ. के. के. पाण्डेय, डॉ. शुक्ला मुखर्जी , डॉ. शैलेंद्र कुमार वर्मा ,  शोध छात्र, गैर शैक्षणिक जनों के साथ म. वी. वि.   विश्वविद्यालय , त्रिपुरा के सहायक प्रोफ़ेसर डॉ. सुदीप भट्टाचार्य, डॉ. सुचेता भट्टाचार्य एवं   वहाँ के  विद्यार्थी- पायल गोस्वामी, अल्पना रॉय, किश्मिता देववर्मा, सोनिया देववर्मा, शैली मेस्का, शतरूप देवनाथ, जोनाथन मोल्सोम, बोयार देववर्मा, अरिंदम साहा, हरेकृष्ण चक्रवर्ती
उपस्थित थे।
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