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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 3 Dec 2025 6:50 PM |   45 views

डॉ . राजेंद्र प्रसाद जयंती पर नव नालंदा महाविहार में संगोष्ठी का आयोजन

नालंदा -डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जयंती पर नव नालंदा महाविहार, नालंदा द्वारा एक विशेष संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें विशिष्ट भूमिका बौद्ध अध्ययन विभाग की रही।उल्लेखनीय है कि नव नालंदा महाविहार की स्थापना का श्रेय डॉ. राजेंद्र प्रसाद एवं भिक्षु जगदीश काश्यप को जाता है।
 
कार्यक्रम की शुरुआत महाविहार के मुख्य परिसर और ह्वेनसांग परिसर में स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद की प्रतिमा पर माल्यार्पण से हुई। इस सामूहिक श्रद्धांजलि ने पूरे परिसर को एक गंभीर, गरिमामय और ऐतिहासिक भाव-संवेदना से भर दिया। इसके उपरांत पालि विभाग के एसोशिएट प्रोफेसर भिक्षु धम्म ज्योति द्वारा पारम्परिक पालि में मंगल पाठ किया गया। 
 
कार्यक्रम का आरम्भ प्रो. राणा पुरुषोत्तम कुमार के स्वागत~ वक्तव्य से हुआ। उन्होंने सभी आचार्यों, वक्ताओं, शोधार्थियों और छात्रों का स्वागत करते हुए कहा कि राजेंद्र प्रसाद जैसे महान व्यक्तित्व पर संगोष्ठी आयोजित करना केवल स्मरण का कार्य नहीं बल्कि भारतीय लोकतंत्र की नींव को समझने की प्रक्रिया है। उन्होंने कहा कि नव नालंदा महाविहार की बौद्धिक परंपरा ऐसे अवसरों से और अधिक सशक्त होती है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि राजेंद्र प्रसाद के जीवन में निहित नैतिकता, धैर्य और संवैधानिक प्रतिबद्धता आज के समय में विशेष महत्त्व रखती है।
 
बीज वक्तव्य हिंदी विभाग के प्रोफेसर एवं पूर्व अध्यक्ष प्रो. रवींन्द्र नाथ श्रीवास्तव “परिचय दास” ने प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि राजेंद्र प्रसाद भारतीय लोकतंत्र के उन आधार-स्तंभों में से थे, जिन्होंने न केवल संविधान सभा का नेतृत्व संयम, धैर्य और निष्पक्षता के साथ किया बल्कि भारतीय सांस्कृतिक चेतना और लोकतांत्रिक मूल्यों को एक गहरे मानवीय दृष्टिकोण से समझा। उन्होंने आधुनिक पश्चिमी सिद्धांतों, विशेषतः उत्तर-औपनिवेशिक दृष्टि से, राजेंद्र प्रसाद की भूमिका का विश्लेषण करते हुए कहा कि उनका योगदान सत्ता के औपनिवेशिक ढांचे से भारतीय लोकतांत्रिक पुनर्संरचना की ओर एक शक्तिशाली परिवर्तन का प्रतीक है।
 
उन्होंने कहा कि राजेंद्र प्रसाद की सार्वजनिक विनम्रता, जनसंपृक्ति और कर्तव्यनिष्ठा भारत के लोकतांत्रिक इतिहास को समझने का विनम्र किंतु प्रभावशाली आधार प्रदान करती है। नव नालंदा महाविहार की स्थापना का उनका ध्येय भारतीय प्राच्य भाषाओं का उन्नयन व जीवन दर्शन को समुन्नत बनाना था ।
 
अध्यक्षीय संबोधन अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. श्रीकांत सिंह ने दिया। उन्होंने कहा कि राजेंद्र प्रसाद के जीवन को केवल राजनीतिक संदर्भों में देखना पर्याप्त नहीं है; उसे सांस्कृतिक, शैक्षणिक और मानवीय दृष्टि से समझना भी आवश्यक है। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन की उस पीढ़ी का उल्लेख किया जिसमें त्याग, सेवा और सार्वजनिक नैतिकता मूलभूत तत्त्व थे और राजेंद्र प्रसाद उस मूल भावना के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि थे। उन्होंने यह संदेश दिया कि लोकतंत्र तभी जीवंत रहता है जब नागरिक स्वयं को उसके मूल्यों के प्रति जागरूक और उत्तरदायी बनाते हैं। उनका योगदान शिक्षा व भाषा के क्षेत्र में भी अद्वितीय है। वे मातृभाषा के उन्नायक थे।
 
कार्यक्रम का संचालन बौद्ध अध्ययन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ. मुकेश कुमार वर्मा ने किया। उन्होंने कार्यक्रम को सुगठित और सहज रूप से आगे बढ़ाते हुए कहा कि ऐसी संगोष्ठियाँ संस्थान की बौद्धिक परंपरा को समृद्ध करती हैं। उन्होंने कहा कि राजेंद्र प्रसाद के जीवन और चिंतन पर चर्चा विश्वविद्यालय के लिए सौभाग्य का विषय है। वे युग पुरुष थे। हमारा सौभाग्य है कि नव नालंदा महाविहार उनका स्वप्न रहा है। राजेंद्र प्रसाद की विद्वत्ता की मिसाल नहीं है । महाविहार का कर्तव्य है कि वह राष्ट्र के महान निर्माता पर अकादमिक विमर्श के लिए निरंतर मंच प्रदान करता रहे।
 
धन्यवाद~ज्ञापन प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्त्व विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं पूर्व अध्यक्ष डॉ. प्रदीप कुमार दास ने किया। उन्होंने कहा कि इस संगोष्ठी ने न केवल ऐतिहासिक स्मरण का अवसर दिया बल्कि वर्तमान बौद्धिक जिम्मेदारियों पर भी नया प्रकाश डाला।
 
उन्होंने वक्ताओं और प्रतिभागियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह आयोजन महाविहार की शैक्षणिक संस्कृति का विस्तार है। उनके तीसरे कथन में यह बात आई कि विश्वविद्यालय निरंतर संवाद, शोध और विमर्श से ही अपनी बौद्धिक पहचान को मजबूत करता है और यह संगोष्ठी इसी शक्ति का प्रमाण है।
 
कार्यक्रम के दौरान व्यक्त विचारों ने उपस्थित जनों में यह स्पष्ट किया कि राजेंद्र प्रसाद केवल राजनीतिक इतिहास का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के नैतिक और सांस्कृतिक आधार के रूप में आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। संगोष्ठी के अंत तक संवाद की गंभीरता, वक्ताओं की विद्वत्ता और विषय की गहनता ने कार्यक्रम को एक सशक्त अकादमिक रूप दिया।
 
इस अवसर पर नव नालंदा महाविहार के अनेक आचार्य, शोधछात्र और छात्र बड़ी संख्या में उपस्थित थे, जिनकी सक्रिय सहभागिता ने पूरे आयोजन को और अधिक सार्थक, जीवंत और प्रेरणादायी बना दिया।
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