Thursday 23rd of October 2025 04:42:33 AM

Breaking News
  • पाकिस्तान संग संघर्ष विराम पर अफगानिस्तान की दो टूक,कहा -सम्मान और बात- चीत से सुलझेंगे मसले |
  • महीनों के गतिरोध के बाद लद्दाख केंद्र सेवा बहाल ,राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची मुख्य मुद्दे |
  • मेहुल चोकसी के प्रत्यर्पण पर भारत ने कसी कमर |
Facebook Comments
By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 22 Oct 2025 6:24 PM |   73 views

बथुआ : महिलाओं के लिए प्रकृति का वरदान

सर्दियों के मौसम में खेतों, मेड़ों और आँगनों में स्वतः उगने वाला हरा साग — बथुआ (Chenopodium album) — ग्रामीण जीवन का एक अहम हिस्सा है। यह साधारण-सा दिखने वाला पौधा ग्रामीण महिलाओं के लिए पोषण, स्वास्थ्य और आजीविका का अनमोल साधन बन चुका है।
 
प्रकृति का सहज उपहार-
बथुआ को विशेष देखभाल या सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। यह खेतों की मेंड़ों पर अपने आप उग आता है और 30–40 दिनों में कटाई योग्य हो जाता है। महिलाएँ इसे रसोई के लिए उपयोग करने के साथ-साथ स्थानीय हाट-बाज़ारों में बेचकर अतिरिक्त आमदनी अर्जित करती हैं।
 
पोषण से भरपूर-
100 ग्राम ताज़े बथुए में लगभग 43 कैलोरी ऊर्जा, 4.2 ग्राम प्रोटीन, 2.7 मि.ग्रा. आयरन, 309 मि.ग्रा. कैल्शियम और भरपूर विटामिन A व C पाए जाते हैं। यह रक्तवर्धक, हड्डियों को मज़बूत करने वाला और पाचन सुधारने वाला साग है। विशेषकर महिलाओं में एनीमिया और कैल्शियम की कमी को दूर करने में सहायक माना जाता है।
 
महिलाओं के सशक्तिकरण का साधन-
बथुआ कम लागत वाली फसल है, जिसे महिलाएँ अपने घर के पीछे की भूमि या रसोई बाड़ी में आसानी से उगा सकती हैं। स्वयं सहायता समूह (SHG) इससे सुखा साग पाउडर, पराठा मिक्स, सूप मिक्स और स्नैक्स बनाकर बाजार में बेच सकती हैं। इससे घरेलू आय में वृद्धि और आत्मनिर्भरता दोनों संभव हैं।
 
 बाज़ार और उद्यमिता की संभावनाएँ-
सर्दी के मौसम में बथुए की मांग बढ़ जाती है। शहरी क्षेत्रों में भी अब “ऑर्गेनिक साग” की खपत तेज़ी से बढ़ रही है। इस स्थिति में ग्रामीण महिलाएँ संगठित रूप से बथुआ की खेती कर ब्रांडेड उत्पाद के रूप में विपणन कर सकती हैं। 
   
वैज्ञानिक खेती से आय अर्जन
यह ठंडी जलवायु (10–25°C) में आसानी से उग जाता है और हल्की दोमट मिट्टी में सबसे अच्छा बढ़ता है। खेती के लिए खेत को 2–3 बार हल्की जुताई करके भुरभुरा बनाना और 20–25 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर देना उपयुक्त होता है। बीज दर 8–10 किग्रा/हे. होती है, बुवाई अक्तूबर–दिसंबर के बीच की जाती है और पंक्ति-दूरी लगभग 25 सेमी रखी जाती है। सिंचाई अंकुरण के बाद पहली बार और उसके बाद 7–10 दिन के अंतराल पर हल्की करनी चाहिए।
 
संतुलित उर्वरक प्रबंधन के लिए N:P:K 60:30:30 किग्रा/हे. और 20 टन FYM/हे. का उपयोग किया जाता है, जिसमें नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई के समय और आधी कटाई के बाद दी जाती है।
 
प्रमुख रोग और कीट जैसे एफिड, थ्रिप्स और पत्ती धब्बा नीम तेल, इमिडाक्लोप्रिड और मैंकोजेब 0.25% छिड़काव से नियंत्रित किए जा सकते हैं, जबकि डैम्पिंग ऑफ से बचने के लिए बीज उपचार कार्बेन्डाजिम से करना चाहिए। पहली कटाई 30–35 दिनों में होती है और औसत उपज 70–90 टन/हे. तक पहुँच सकती है।
 
उन्नत किस्मों जैसे Pant Bathua-1, IARI Selection एवं Kashi Bathua-2 (VRCHE-2) का चयन उपज और पोषण के लिए लाभकारी है।
 
बथुआ के पत्तियों का उपयोग ताजे, सुखा साग, सूप मिक्स या स्नैक्स बनाने में किया जा सकता है, जिससे महिलाओं को आय का अतिरिक्त स्रोत मिलता है। कम मेहनत, अल्प लागत और उच्च पोषण मूल्य के कारण बथुआ ग्रामीण महिलाओं के लिए वास्तव में प्रकृति का वरदान है|
 
-डॉ रजनीश श्रीवास्तव, वरिष्ठ वैज्ञानिक, कृषि तकनीक अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, जबलपुर मध्य प्रदेश
Facebook Comments