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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 12 Oct 2025 6:55 PM |   56 views

रोहिणी नदी के साथ चलते हुए चरथ भिक्खवे-दो यात्रा का आज समापन

गोरखपुर। बुद्ध की नदी रोहिणी नदी के साथ चलते हुए चरथ भिक्खवे-दो यात्रा का आज समापन कार्यक्रम बौद्ध संग्रहालय में राष्ट्रीय संगोष्ठी, व्याख्यान और कविता पाठ के साथ हुआ। 

आज का कार्यक्रम अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान, साखी शोधशाला और राजकीय बौद्ध संग्रहालय, गोरखपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हुआ। 
 
आज पहले सत्र में “ नदी, बुद्ध और हमारा समाज “ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई। संगोष्ठी के प्रारंभ में राजकीय बौद्ध संग्रहालय गोरखपुर के निदेशक यशवंत सिंह राठौड़ ने स्वागत वक्तव्य दिया।
 
अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के निदेशक राकेश सिंह ने चरथ भिक्खवे यात्रा को बुद्ध के विचारों को समाज में ले जाने का अनूठा प्रयास बताया। 
 
साखी शोध शाला के संस्थापक और चरथ भिक्खवे यात्रा के संयोजक प्रो. सदानंद शाही ने कहा कि चरथ भिक्खवे-दो में रोहिन नदी के तट की यात्रा का मकसद बुद्ध के महाभिनिष्क्रमण के पीछे की इस सच्चाई को जानना और इसे लोगों तक पहुंचाना, नदियों के साथ बुद्ध के रिश्ते को समझना, नदियों के हवाले से देश के सांस्कृतिक भूगोल को जानना और भारत-नेपाल मैत्री को मजबूत करना है।
 
गोरखपुर एनवायरमेंटल एक्शन ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. शीराज़ वजीह ने कहा कि नदी तटों पर रहने वाले समुदाय की माँग कुछ और है और नदी पर नियंत्रण रखने वाला राज्य कुछ और कर रहा है। इस कारण नदी का समुदाय से सम्बंध कमजोर हुआ है। नदी को सिर्फ़ जलधारा के रूप में देखना ग़लत है।
 
नदी का एक पूरा प्राकृतिक तंत्र होता है जो जल ग्रहण क्षेत्र, खेती, संस्कृति, सामूहिक रखरखाव से अविछिन्न रूप से जुड़ा है। राज्य नदी को केवल सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण के रूप में देखता है। नादियों और विशेषकर छोटी नदियों को स्वस्थ और भरी पूरी बने रहने के लिए जरूरी है कि उसका सामुदायिक संबंध मजबूत हो। 
 
पाली और धम्म पदों के जानकार प्रो रामसुधार सिंह ने जातक कथाओं के जरिये निरंजना, अचिरवाती, बहुमती, रोहिणी नदी आदि नदियों के विवरण का विस्तार से जिक्र करते हुए कहा कि जातक कथाओं का अध्ययन बुद्धकालीन जनजीवन को समझने का आधार मुहैया कराते हैं।
 
जाने माने कवि पंकज चतुर्वेदी ने हिंदी कविता में बुद्ध संबंधित कविताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि हिंदी कविता को बुद्ध के संबंध में पुनराविष्कार करना चाहिए। उन्होंने श्रीकांत वर्मा, केदारनाथ सिंह सहित कई कविताओं को उद्धृत करते हुए कहा कि हिंदी कविता को बुद्ध के संदर्भ में नए आलोक में कार्य करना चाहिए।
 
उन्होंने कहा कि हम आज भी उन मूल्यों-सत्य, अहिंसा, करुणा, मैत्री, विश्वशांति को समाज में स्थापित नहीं कर पाये हैं जिसके लिए बुद्ध, कबीर और डॉ अंबेडकर जिए। पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि बुद्ध ने कहा था कि यह संसार नित्य जल रहा है। अंधकार से घिरे लोग दीपक की खोज क्यों नहीं करते ? बुद्ध का यह कथन आज के समय के लिए भी सबसे जरूरी कथन है। 
 
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहीं प्रो. चंद्रकला ने पाडिया कहा कि बुद्ध को जानना अपने अज्ञान और संकीर्णता को जानना और उसको दूर करने का प्रयत्न करना है। 
 
संगोष्ठी में मनोज सिंह ने रोहिणी नदी को युद्ध के ख़िलाफ़ खड़े होने और शांति के लिए आवाज उठाने की प्रतीक के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने बुद्ध काल में रोहिणी नदी के पानी के लिए हुए विवाद और युद्ध रोकने के लिए बुद्ध के प्रवज्या का उल्लेख करते हुए वर्तमान समय में नदी और उसके तट के जीवन स्थितियों के बारे में बताया।
 
आज के कार्यक्रम के संयोजक प्रो. अनिल राय ने चरथ भिक्खवे-2 की यात्रा के उद्देश्य और इसके पूर्व “ बुद्ध की धरती पर कविता “ के आयोजनों, पिछले वर्ष हुई सारनाथ से बोधगया, राजगीर, वैशाली, केसरिया, कुशीनगर, लुम्बिनी, श्रावस्ती, कोसांबी की यात्रा की चर्चा की। संगोष्ठी के प्रारम्भ में राजकीय बौद्ध संग्रहालय गोरखपुर एवं अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान, लखनऊ द्वारा चरथ भिक्खवे-दो के यात्रियों का सम्मान किया गया। 
 
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में हिन्दी के प्रतिष्ठित कवियों-पंकज चतुर्वेदी, विहाग वैभव, अनंत मिश्र, देवेन्द्र आर्य, स्वप्निल श्रीवास्तव, रघुवंश मणि, यादवेन्द्र,कपिल देव, राजेश मल्ल, वीरेंद्र मिश्र दीपक, प्रमोद कुमार, श्रीधर मिश्र, अर्पण कुमार, सरवत जमाल, जयप्रकाश नायक, रंजना जायसवाल, वंदना शाही, शिवांगी गोयल,धर्मेन्द्र त्रिपाठी ने कविता पाठ किया।
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