खेती -आधुनिक तकनीकी और नई सोच

लेख कोशिश है, खेती के बदलते आयामों में नये अपनाये जा रहे सभी संभावित प्रयासों से किसानों और नई पीढ़ी के बच्चों को परिचय करवाने के लिये।
मौसम विपरीत खेती और प्रबंधन-
जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम विपरीत खेती सबसे बड़ी चुनौती है।
संरक्षित खेती, कम पानी वाली किस्में और मौसम पूर्वानुमान आधारित खेती अपनाई जा रही है।
घाघ का दोहा:
“जेठ दुपहरी जे चले, सावन घरि रहि जाय।
कहत घाघ समझाइ के, खेती बर्बाद न होय॥”
मौसम और श्रम का तालमेल रखने की सीख आज की “क्लाइमेट-स्मार्ट फार्मिंग” की मूलभूत सोच है। ग्रीनहाउस और पॉलीहाउस तकनीक ने किसानों को मौसम की मार से बचाया है। नियंत्रित वातावरण में सब्ज़ियों, फूलों और उच्च मूल्य वाली फसलों की खेती हो रही है।
नई फसलें और टिश्यू कल्चर पौधे-
भारत के किसान अब परंपरागत फसलों से हटकर नई और मूल्यवान फसलों का ट्रायल कर रहे हैं।
राजस्थान में स्ट्रॉबेरी, उत्तर प्रदेश में ड्रैगन फ्रूट और केले के बागान, कर्नाटक में सेब, मध्य प्रदेश में ब्रोकोली और जुखिनी की खेती इसकी मिसाल हैं।टिश्यू कल्चर पौधे गुणवत्तापूर्ण और रोगमुक्त होते हैं, जिससे बागवानी फसलों का भविष्य सुरक्षित है।
क्या आप जानते हैं?
टिशू कल्चर तकनीक से बनाये पौधे अन्य किसी भी विधि से बनाये पौधों से ज्यादा स्वस्थ और उपजदायक होते हैँ।
सौर ऊर्जा से खेती को शक्ति-
सौर पंप, सोलर ड्रायर और सौर कोल्ड स्टोरेज किसानों के लिए टिकाऊ समाधान हैं।
सौर ऊर्जा से सिंचाई और भंडारण लागत कम हुई है।
क्या आप जानते हैं?
भारत सरकार ने अब तक 2.5 लाख से अधिक सौर पंप किसानों को उपलब्ध कराए हैं।
धान ट्रांसप्लांटर और पावर टिलर-
धान ट्रांसप्लांटर ने कठिन रोपाई को आसान बनाया। समान दूरी और गहराई पर रोपाई से उत्पादन बढ़ा है।पावर टिलर छोटे किसानों का साथी बनकर खेती के लगभग हर कार्य में मदद कर रहा है।
घाघ का दोहा:
“आषाढ़ मास धान रोपो, सावन मास उखाड़।
भादों मास लगाइए, तउ सुखन को आहार॥”
घाघ का यह दोहा समय पर रोपाई के महत्व को समझाता है। आधुनिक ट्रांसप्लांटर भी इसी सिद्धांत पर काम करता है।
ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसी सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियाँ जल संरक्षण की दिशा में कारगर हैं।
मल्चिंग से मिट्टी की नमी बनी रहती है, खरपतवार कम होते हैं और उत्पादन बेहतर होता है।
भड्डरी का दोहा:
“एक पसेरी बीज को, सौ पसेरी होय।
अध पसेरी जल बिना, अन्न न उपजे कोय॥”
सिंचाई की अहमियत बताने वाला यह दोहा आज भी प्रासंगिक है। आधुनिक सूक्ष्म सिंचाई इसी बात को वैज्ञानिक रूप देता है।
क्या आप जानते हैं?
ड्रिप इरिगेशन अपनाने से पानी की खपत में 40-50% की बचत होती है और पैदावार औसतन 20-25% तक बढ़ती है।
सेंसर आधारित सर्वे और फसल पूर्वानुमान-
सेंसर और उपग्रह आधारित तकनीक से अब मिट्टी की नमी, पोषण और फसल की स्थिति का डेटा प्राप्त होता है। पिछले वर्षों की उपज क्षमता और मौजूदा मौसम का आकलन कर उत्पादन का पूर्वानुमान लगाया जा रहा है। इससे किसानों को वैज्ञानिक निर्णय लेने में मदद मिलती है।
ड्रोन तकनीकी: छिड़काव और निगरानी-
खेती में अब ड्रोन का प्रयोग बढ़ रहा है। ड्रोन से कीटनाशक और पोषक तत्वों का छिड़काव समान रूप से होता है, जिससे समय और श्रम की बचत होती है। ड्रोन से खेत का सर्वे कर पौधों की सेहत और नमी की स्थिति भी जानी जा सकती है।
ड्रोन से छिड़काव करने पर पारंपरिक तरीकों की तुलना में 30% पानी और 20% दवाइयों की बचत होती है।
सफलता की कहानी-
बस्तर के डॉ. राजाराम त्रिपाठी देश-विदेश में प्रसिद्ध किसान हैं। उन्होंने जैविक काली मिर्च, अदरक और औषधीय पौधों की खेती से न केवल स्थानीय किसानों को प्रेरित किया बल्कि बड़े पैमाने पर रोजगार भी पैदा किया।
उनकी विशेष पहचान है—काली मिर्च की खेती में नवाचार। उन्होंने बड़े पैमाने पर पौधों पर पोषक तत्व और जैविक घोल का छिड़काव करने के लिए हेलीकॉप्टर का उपयोग किया।
उनकी यह पहल देश में पहली बार हुई, और आज उन्हें “ऑर्गेनिक काली मिर्च का पायनियर” माना जाता है। उनके प्रयासों से बस्तर की काली मिर्च की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान बनी है।
निष्कर्ष-
आज खेती के सामने श्रमिकों की कमी, मौसम की अनिश्चितता और जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी चुनौतियाँ हैं, लेकिन इन्हीं ने किसानों को नवाचार की ओर बढ़ाया है। ट्रांसप्लांटर, ड्रोन और अन्य मशीनों ने श्रम की समस्या कम की, वहीं सूक्ष्म सिंचाई, मल्चिंग और संरक्षित खेती ने मौसम की मार से बचाया। नई फसलें और टिश्यू कल्चर पौधे किसानों को अधिक आय और नए बाज़ार दे रहे हैं। साथ ही सौर ऊर्जा और सेंसर तकनीक खेती को टिकाऊ और स्मार्ट बना रही है। यही रास्ता है जिससे भारतीय किसान भविष्य की चुनौतियों को हराते हुए समृद्धि और खाद्य सुरक्षा दोनों सुनिश्चित कर पाएंगे।
डॉ. शुभम कुमार कुलश्रेष्ठ,विभागाध्यक्ष एवं सहायक प्राध्यापक – उद्यान विभाग
(कृषि संकाय),रविन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, रायसेन, मध्य प्रदेश
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