काशी अष्टाध्यायी है और भारत उसका भाष्य- प्रो० शैलेश मिश्र

उन्होने कहा कि संग्रहालय, हमे प्राचीन के अतीत का दर्शन करवाता है और उससे जोड़ता है, जिससे हम अपने अतीत का ज्ञान प्राप्त करते हुए उसे अपने में आत्मसात करते है।
उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य वक्ता अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रो० सुधाकर मिश्र, अध्यक्ष, वेदान्त विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी ने कहा कि काशी अनादि और अनन्त है, और काशी को मात्र अनुभव किया जा सकता है जो कि यहाँ रह के ही प्राप्त करना संभव है। उन्होने कहा कि प्राचीन काल मे संग्रहालय की अवधारण मूर्त रूप में नही थी बल्कि भारतीय ऋषि और आचार्य ही संग्रहालय थे।
उद्घाटन सत्र में विषय प्रस्थापना करते हुए प्रो० शैलेश मिश्र, अध्यक्ष सामाजिक विज्ञान विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी ने कहा कि काशी अष्टाध्यायी है और भारत उसका भाष्य।
उद्घाटन सत्र का आरम्भ वेद विभाग के सहायक आचार्य डॉ० सत्येन्द्र यादव द्वारा मंगलाचरण से हुआ। तत्पश्चात कार्यक्रम अध्यक्ष, मुख्य वक्ता एवं विशिष्ट अतिथि ने सरस्वती जी की प्रतिमा पर मार्त्यपण एवं दीप प्रज्जवलन किया गया।
इसके बाद डॉ० विमल कुमार त्रिपाठी, संग्रहालयाध्यक्ष, पुरातत्व संग्रहालय, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी एवं अमित कुमार द्विवेदी, संग्रहालयाध्यक्ष, लाल बहादुर शास्त्री स्मृति भवन संग्रहालय, रामनगर, वाराणसी (संस्कृति विभाग, उ०प्र०) द्वारा मुख्य अतिथिओं का माल्यार्पण, अंगवस्त्रम् एवं स्मृतिचिन्ह भेंट कर स्वागत किया गया।
कार्यक्रम के अन्त में प्रो० राजनाथ, आचार्य सामाजिक विज्ञान विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी ने आभार ज्ञापन किया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ० सुजीत कुमार चौबे, इतिहास विभाग, का०हि०वि०, वाराणसी ने किया।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से प्रो० हीरककान्ति चक्रवर्ती, डॉ० विशाखा शुक्ला, डॉ० रविशंकर पाण्डेय, डॉ० मनोज मिश्र, सुशील कुमार तिवारी आदि एवं प्रतिभागी उपस्थित रहे।
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