जायद मौसम में सब्जियों की खेती कर लाभ कमाए किसान भाई
कृषि में फसलों के तीन मौसम खरीफ, रबी एवं जायद होते है। जिसके अनुसार विभिन्न फसलों, सब्जियों की खेती की जाती है। खरीफ आषाढ़ (जून)माह , रबी क्वार (अक्टूबर) माह एवं जायद बसंत (फरवरी) माह से प्रारंभ होती है। जायद फसलों की खेती माह फरवरी जो हिन्दी के माह माघ-फाल्गुन से प्रारंभ हो जाता है।
जायद में कद्दू वर्गीय सब्जियों में तोरई, करेला, लौकी, खीरा, ककड़ी, तरबूज ,खरबूजआदि एवं भिण्डी फसलें प्रमुखता से ली जाती हैं। ये फसलें फरवरी-मार्च में बोई जाती हैं। उन्नत तकनीकी का प्रयोग करने के बावजूद कृषक ज्यादा पैदावार नहीं ले पाते इसका एक प्रमुख कारण अधिक तापमान व गर्म हवाओं का प्रभाव व कीट व्याधियों का प्रकोप है। उन्नत सस्य प्रबंधन व पौध संरक्षण अपनाकर इन फसलों से अधिक लाभ लिया जा सकता है।
कद्दूवर्गीय सब्जियाँ वर्षा तथा गर्मी के मौसम की महत्वपूर्ण फसलें हैं। पोषण की दृष्टि से भी ये बहुत ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनमें आवश्यक विटामिन एवं खनिज तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं जो हमें स्वस्थ रखने में सहायक सिद्ध होते हैं। करेले में पाये जाने वाला चेरेटीन नामक रासायनिक पदार्थ शुगर के रोगियों के लिये बहुत ही लाभदायक साबित होता है।
खीरे का भी प्रयोग सलाद के रूप में किया जाता है जो गर्मियों में शरीर को ठंडक प्रदान करता है। तरबूज में पाये जाने वाला लाइकोपीन, आघात और हृदय रोगों के जोखिम को कम करने के साथ-साथ रक्तचाप को सामान्य बनाये रखने और रक्त कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में भी सहायक होता है।
कद्दूवर्गीय फसलों में अधिक फसल उत्पादन के लिये इन फसलों को विभिन्न प्रकार के जैविक तनावों मुख्यत: इनमें लगने वाले हानिकारक कीटों एवं बीमारियों के प्रकोप से बचाना अति आवश्यक होता है।
खेत का चयन एवं तैयारी: वैसे तो इन फसलों को विभिन्न प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है परंतु सफल उत्पादन के लिए रेतीली-दोमट मृदा जिसका पीएच मान 6 से 6.5 तथा उच्च कार्बनिक पदार्थ युक्त एवं उपजाऊ हो। उच्च कार्बनिक पदार्थ युक्त खेत उत्पादन के साथ-साथ उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ाने में भी सहायक रहता है। अच्छी प्रकार से सड़ी हुई 20-25 टन गोबर की खाद खेत की तैयारी से 25-30 दिन पहले खेत में डालें। मृदा में किसी भी पोषक तत्व की कमी को जानने के लिए मिट्टी परीक्षण करायें तथा जाँच के अनुसार सूक्ष्म तत्वों का इस्तेमाल करें।
खेत समतल और भुरभुरा तथा ढेलों, खरपतवारों और पुरानी फसल के अवशेषों से मुक्त हो। खेत की तैयारी के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से, बाद में 3-4 जुताई देशी हल से करके और पाटा चला कर समतल तथा मिट्टी को भुरभुरा बना लेते हैं।
खाद व उर्वरक: खाद व उर्वरकों का प्रयोग मृदा की जाँच के अनुसार करें। कच्ची गोबर की खाद का प्रयोग इन फसलों के लिए नहीं करें क्योंकि इनका प्रयोग करने से मृदा में दीमक का प्रकोप हो जाता है। ज्यादातर बेल वाली उपरोक्त सब्जियों में खेत की तैयारी के समय 15-20 टन/हेक्टेयर गोबर की अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद व 80 कि. ग्रा. नत्रजन, 60 कि. ग्रा. फॉस्फोरस तथा 60 कि. ग्रा. पोटाश की आवश्यकता होती है। नत्रजन की आधी मात्रा व फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय डालें। शेष नत्रजन की मात्रा दो बार टॉप ड्रेसिंग के द्वारा बुआई के 30 एवं 45 दिनों बाद खेत में दें।
कद्दूवर्गीय सब्जियों की विभिन्न उन्नत किस्में व संकर प्रजातियां-
खीरा- पूसा उदय, पूसा बरखा, पोइनसेट, तथा पूसा संयोग।
लौकी: पूसा नवीन, पूसा संदेश, पूसा संतुष्टि, पूसा समृद्धि, पूसा हाइब्रिड-3, काशी गंगा तथा अर्का बहार, नरेद्र माधुरी, नरेन्द्र प्रभा।
करेला: पूसा रसदार, पूसा पूर्वी, पूसा औषधि, पूसा दो मौसमी, पूसा विशेष, पूसा हाइब्रिड-1, पूसा हाइब्रिड-2 काशी उर्वशी एवं अर्का हरित, नरेन्द्र बारहमासी।
तोरई: चिकनी तोरई: पूसा सुप्रिया, पूसा स्नेहा, पूसा चिकनी, काशी दिव्या।
धारीदार तोरई: पूसा नसदार, सतपुतिया, पूसा नूतन, अर्का सुजात एवं अर्का सुमीत।
चप्पन कद्दू: पूसा पसंद, पूसा अलंकार, आस्ट्रेलियन ग्रीन एवं पैटी पैन।
कद्दू: पूसा विश्वास, पूसा विकास, पूसा हाइब्रिड-1, अर्का चन्दन, काशी हरित, नरेन्द्र अमृत,नरेन्द्र अग्रिम।
पेठा: पूसा श्रेयाली, पूसा उर्मी, पूसा उज्जवल, काशी धवल, काशी उज्जवल, काशी सुरभि।
खरबूज: पूसा सरदा, पूसा मधुरस, पूसा शर्बती, हरा मधु, पूसा मधुरिमा, दुर्गापुरा मधु, काशी मधु, अर्का जीत, अर्का राजहंस।
तरबूज: शुगर बेबी, अर्का मानिक, अर्का ज्योति, अर्का आकाश, अर्का ऐश्वर्य, अर्का मधू।
टिंडा: पूसा रोनक, पंजाब टिंडा, अर्का टिंडा।
ककड़ी: पूसा उत्कर्ष,नरेन्द्र ककड़ी-1।
बीज दर: खीरा 2.0-2.5 कि. ग्रा., लौकी 4-5 कि. ग्रा. करेला 6-7 कि. ग्रा., कद्दू 3-4 कि. ग्रा., तोरई 5.0-5.5 कि. ग्रा., चप्पन कद्दू 5-6 कि. ग्रा., खरबूज 2.5-3.0 कि. ग्रा., तरबूज 4.0-5.0 कि. ग्रा., टिंडा 6-7 कि. ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
बीज बुवाई: गर्मी की फसल के लिए फरवरी का समय कद्दूवर्गीय सब्जियों की बुआई के लिए, सर्वोतम होता हैं। खेत में लगभग 45 सें. मी. चौडी़ तथा 30-40 सें. मी. गहरी नालियां बना लें। बुवाई से पहले नालियों में पानी लगा दें।
जब नाली में नमी की मात्रा बीज बुवाई के लिए उपयुक्त हो जाए तो बुवाई के स्थान पर मिट्टी भुरभुरी करके बीज बोएं। खीरा में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 1.5 मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 30-45 से.मी. रखें, लौकी में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 3 मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 0.5 मी. एवं करेले में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 1.5-2.5 मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 0.5 मी. रखें। चिकनी तोरई एवं धारीदार तोरई के लिए 2.5 मी. पंक्ति से पंक्ति की दूरी तथा 45-50 से.मी. पौधे से पौधे की दूरी पर बुआई करें।
खरबूज एवं तरबूज के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 2.5 मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 0.5 मी. रखते हुए बुआई करें।
सिंचाई: जब भी मृदा मे नमी की कमी हो सिंचाई करें। सामान्यत: कद्दूवर्गीय सब्जियों में 5-7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। सिंचाई व निराई-गुडा़ई नालिये में ही करें।
खरपतवार नियंत्रण: कद्दूवर्गीय सब्जी फसलों की अच्छी बढ़वार व अधिक उपज के लिए आरंभिक अवस्था में खरपतवारों का नियंत्रण करना अत्यधिक आवश्यक है। ये खरपतवार फसलों में शुरूआती 4-6 सप्ताह तक अधिक नुकसान करते हैं। इस अवस्था में खरपतवार कद्दूवर्गीय फसलों से पानी, प्रकाश व पोषक तत्वों के लिए प्रतियोगिता करते हैं। इसके साथ ही साथ विभिन्न प्रकार के हानिकारक कीट व बीमारियों को भी शरण देते है जिससे इन फसलों की उपज में गिरावट आ सकती है एवं उपज लगभग 20-80 प्रतिशत तक कम हो सकती है। पहली दो सिंचाई करने के बाद में हल्की निराई गुड़ाई करके इनको निकाला जा सकता है।
उपज: – सब्जियों की उपज अपनाई गयी तकनीक पर निर्भर करता है ,औसतन खीरा 120-150 क्विटंल, लौकी 250-420 क्विटंल, करेला 75-120 क्विटंल, कद्दू 250-500 क्विटंल, तोरई 100-130 क्विटंल, चप्पन कद्दू 50-60 क्विटंल, खरबूज 150-200 क्विटंल, तरबूज 250-300 क्विटंल तथा टिंडा 80-100 क्विटंल प्रति हेक्टेयर तक उपज हो जाती है।
फलों की तुड़ाई एवं कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी-
जब फल कच्चे व मुलायम हों तब बेल वाली फसलों जैसे खीरा, घीया, तोरई, करेला व कद्दू में तुडा़ई करें। फलों की तुड़ाई डंठल सहित (4-5 सेमी.) चाकू या कैंची की सहायता से करें।फलो के रंग, आकार, वजन व आयतन के आधार पर श्रेणीकरण करके पैकिंग करें।पैक किये गये फलों को शीघ्र बाजार में पहुंचायें या उनका शीतगृहों में भंडारण करें।
-प्रो रवि प्रकाश
Facebook Comments