औरंगाबाद की टेराकोटा कला गोरखपुर की एक स्थापित कला है- कुलपति
गोरखपुर-राजकीय बौद्ध संग्रहालय गोरखपुर (संस्कृति विभाग, उ0प्र0) द्वारा गोरखपुर (औरंगाबाद) की टेराकोटा कला का सात दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला (दिनांक 08 से 14 जनवरी, 2025) के पुरस्कार, प्रमाण-पत्र वितरण एवं तत्सम्बन्धी बनायी गयी टेराकोटा आकृतियों की प्रदर्शनी का लोकार्पण आज दीप प्रज्जवलन के साथ मुख्य अतिथि कुलपति, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर प्रोफेसर पूनम टण्डन द्वारा किया गया।
उक्त अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में शहीद अशफाक उल्लाह खाॅं प्राणि उद्यान, गोरखपुर के निदेशक विकास यादव एवं मुख्य पशु चिकित्सक डा0 योगेश प्रताप सहित डाॅ0 शिवशरण दास, प्रोफेसर (सेवानिवृत्त) पूर्व अधिष्ठाता छात्र कल्याण, दी0द0उ0 गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर उपस्थित रहे। बतौर निर्णायक कुलवन्त सिंह, वरिष्ठ चित्रकार, सुशील गुप्ता, वरिष्ठ मूर्तिकार एवं कार्यशाला के मुख्य प्रशिक्षक भास्कर विश्वकर्मा, मूर्तिकार एवं सह प्रशिक्षक, अनिल प्रजापति कुम्हारी कला के मूर्तिकार सहित सुभाष चन्द्र चौधरी, पूर्व उप मुख्य सुरक्षा आयुक्त, पूर्वोत्तर रेलवे, गोरखपुर एवं डाॅ0 रेखा रानी शर्मा, असिस्टेन्ट प्रोफेसर, चन्द्रकान्ति रमावती देवी आर्य महिला महाविद्यालय, गोरखपुर की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
उक्त कार्यशाला में कुल 53 में से चयनित कुल 47 प्रतिभागियों में 05 प्रतिभागियों को पुरस्कार एवं प्रमाण-पत्र तथा 42 प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया। विजेता प्रतिभागियों में प्रथम पुरस्कार देवानन्द गुप्ता, द्वितीय पुरस्कार मीतू यादव, तृतीय पुरस्कार दिलनूर फातिमा तथा दो सान्त्वना पुरस्कार क्रमशः प्राची श्रीवास्तव एवं शिखा को प्रदान किया गया। उक्त अवसर पर मुख्य अतिथि प्रोफेसर पूनम टण्डन ने अपने सम्बोधन में कहा कि टेराकोटा कला हमारी प्राचीन संस्कृति, सभ्यता की पहचान, इतिहास की परिचायक है। प्रतिभागी इस कार्यशाला के माध्यम से न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण, शिल्प कला एवं प्रदर्शन कला को सीखते है , बल्कि औरंगाबाद की टेराकोटा कला गोरखपुर की एक स्थापित कला है।
संग्रहालय द्वारा अत्यंत प्राचीन टेराकोटा कला के क्षेत्र में स्नातक, परास्नातक एवं शोध छात्र-छात्राओं को उक्त प्रशिक्षण के माध्यम से प्रशिक्षित करने हेतु कार्यशाला का आयोजन किया जाना अत्यन्त गौरवशाली परम्परा की शुरूआत की गयी है।
संग्रहालय के उप निदेशक डाॅ0 यशवन्त सिंह राठौर द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान विभिन्न रचनात्मक कार्यशाला/गतिविधियों का निरन्तर आयोजन किया जा रहा है। इसके लिए मैं इन्हें बधाई देती हूॅं। भारतीय संस्कृति एवं कला को वर्तमान परिवेश में सुरक्षित, संरक्षित तथा वर्तमान युवा पीढ़ी को संग्रहालय से जोड़कर उन्हें भारत की प्राचीन गौरवशाली इतिहास, कला एवं संस्कृति से परिचित कराना अत्यन्त सराहनीय पहल है। संग्रहालय के उप निदेशक, डाॅ0 यशवन्त सिंह राठौर ने कहा कि संग्रहालय में प्रथम बार गोरखपुर (औरंगाबाद) की टेराकोटा कला की सात दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला एवं तत्सम्बन्धी प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है। जिसमें प्रतिभाग करने वाले सभी प्रतिभागियों को कार्यशाला में मिट्टी से मूर्तियां तथा अन्य कई प्रकार की आकृतियां बनाने, उन्हें रंगने तथा पकाने आदि की तकनीकी से अवगत कराया गया।
सभी प्रतिभागी गोरखपुर की इस सुप्रसिद्ध टेराकोटा कला से परिचित भी हुए तथा इसकी अनुभूति भी उन्होंने की। टेराकोटा कला मानव इतिइास की प्राचीनतम कलाओं में से एक है। कार्यशाला में सभी प्रतिभागियों ने बहुत ही अच्छा प्रयास किया, जिसमें से काफी उत्कृष्ट कलाकृतियां सृजित की है। इन कलाकृतियों की सभी अतिथियोेें ने भूरि-भूरि प्रसंशा की।
मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथियों को संग्रहालय की ओर से स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित भी किया गया।
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