आलू, आम एवं शाकभाजी फसलों को रोगों से बचाना आवश्यक

जनपद में इस वित्तीय वर्ष में लगभग 40 हेक्टेयर क्षेत्र में आलू की खेती का अनुमान है। तापमान में गिरावट और बूंदाबांदी की स्थिति में आलू की फसल पिछेती झुलसा रोग (लेट ब्लाइट) के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो जाती है। प्रतिकूल मौसम, विशेष रूप से बदलीयुक्त बूंदाबांदी और नम वातावरण, इस रोग के प्रकोप को तेज़ी से बढ़ाते हैं, जिससे फसल को भारी क्षति होती है।
पिछेती झुलसा रोग के लक्षणों में पत्तियों का सिरे से झुलसना, भूरे-काले जलीय धब्बों का बनना और पत्तियों की निचली सतह पर रूई जैसे फफूंद का दिखाई देना शामिल है। यह रोग 10-20 डिग्री सेल्सियस तापमान और 80% से अधिक आर्द्रता वाले वातावरण में तेजी से फैलता है। गंभीर स्थिति में यह रोग 2 से 4 दिनों के भीतर पूरी फसल को नष्ट कर सकता है।
आलू की फसल को अगेती व पिछेती झुलसा रोग से बचाने के लिए साफ/कगुआ (काबेंडाजिम 12 प्रतिशत एवं मैकोजेब 63 प्रतिशत डब्ल्यू.पी.) 2.0 से 2.5 किलोग्राम अथवा प्रोपिनेब 63 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. 2 से 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जाये तथा माहू कीट के प्रकोप की स्थिति में नियंत्रण के लिए दूसरे छिड़काव में फफूँदीनाशक के साथ कीट नाशक जैसे-इमिडाक्लोप्रिड 17.1प्रतिशत एस.एल. 1.0 लीटर, 800 से 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। जिन खेतो में पिछेती झुलसा रोग का प्रकोप हो गया हो तो ऐसी स्थिति में रोकथाम के लिए अन्तःग्राही (सिस्टेमिक) फफूँद नाशक मेटालेक्जिल युक्त रसायन 2.5 किलोग्राम अथवा साईमोकजेनिल फफूंदनाशक युक्त रसायन 2.0 किलोग्राम 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने की सलाह दी जाती है।
आम की बेहतर उत्पादकता सुनिश्चित करने के लिए गुजिया कीट (मैंगो मिलीबग) से बचाव करना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यह कीट आम की फसल को भारी क्षति पहुंचाता है। इस कीट के शिशु (निम्फ) को पेड़ों पर चढ़ने से रोकने के लिए दिसंबर माह में आम के पेड़ के मुख्य तने पर, भूमि से 30-50 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर, 400 गेज की पॉलीथीन शीट की 25 सेंटीमीटर चौड़ी पट्टी लपेटनी चाहिए। इसे तने के चारों ओर लपेटकर ऊपर और नीचे सुतली से बांधें। पट्टी के ऊपरी और निचले हिस्से पर ग्रीस लगाना आवश्यक है ताकि कीट पेड़ पर चढ़ न सके।
कीट नियंत्रण के लिए जनवरी के पहले सप्ताह से 15-15 दिन के अंतराल पर दो बार क्लोरीपाइरीफॉस (1.5%) चूर्ण, 250 ग्राम प्रति पेड़ की दर से तने के चारों ओर बुरकाव करें। यदि कीट अधिक संख्या में पेड़ों पर चढ़ जाएं, तो ऐसी स्थिति में इमिडाक्लोप्रिड (17.1% एस.एल.) का 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर उसमें स्टिकर/सर्फैक्टेंट मिलाएं और आवश्यकता अनुसार पेड़ों पर छिड़काव करें।
जिला उद्यान अधिकारी ने यह भी बताया कि केले की फसल को पाले से बचाने के लिए पौधों के आसपास नमी बनाए रखें और समय-समय पर सिंचाई करें। इसी तरह शाकभाजी जैसे मिर्च, टमाटर, मटर आदि को भी पाला और कोहरे से बचाने के लिए पौधशाला को पॉलीथीन या टाट से ढकें।
उन्होंने किसानों को कीटनाशकों के उपयोग में सावधानी बरतने की सलाह दी है। छिड़काव के समय दस्ताने, मास्क और चश्मे का प्रयोग करें। बच्चों और पशुओं को कीटनाशक से दूर रखें, और खाली पाउच/डिब्बों को मिट्टी में दबा दें।
किसी भी समस्या के समाधान के लिए पत्रिका सिंह (मोबाइल: 7703077789), रणजीत यादव (मोबाइल: 9918343346) और सुशील शर्मा (मोबाइल: 08542011162) से कृषक संपर्क कर सकते हैं।
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