दिव्य प्रकाश- दीपावली

दीपावली, सत्य की खोज और आत्मा को रोशन करने के लिए मानवता के सार्वभौमिक संघर्ष की बात करती है। दीपावली, श्रीरघुनंदन-जानकी के सहयोगात्मक साझेदारी (वनवास काल) को कहती है| दीपावली बताती है कि वो अमावस्या की घनघोर रात्रि के बाद चन्द्र उदय है।
दीपावली, श्रीरघुनन्दन के राक्षस राजा रावण को हराने के बाद अयोध्या लौटने का प्रतीक है, जो न केवल एक शारीरिक जीत का प्रतीक है, बल्कि एक आंतरिक विजय का भी प्रतीक है – अहंकार, क्रोध और लालच की छाया पर काबू पाना। इसी तरह, दीये जलाना हमारे भीतर के प्रकाश को पोषित करने का आह्वान दर्शाता है, जलते हुए दीए बताते है हमारी आत्म-खोज और अखंडता के हमारे मार्गों को रोशन करता है।
जिस तरह दीपावली से पहले घरों की सफाई की जाती है और उन्हें सजाया जाता है| उसी तरह दीपावली हमें अपने दिल और दिमाग से नकारात्मकता को दूर करने(घर की साफ-सफाई) करुणा, कृतज्ञता और उद्देश्य(घर की सजावट)को फिर से जगाने के लिए प्रोत्साहित (रोशन) करती है।
प्रकाशओत्सव,, हमारे भीतर, दिव्य प्रकाश की उपस्थिति की भी याद दिलाता है,जो हमें प्यार और दया के रूप में दूसरों तक अपना प्रकाश फैलाने का आग्रह करता है। त्योहार कोई से भी हो प्रसन्नता, उत्साह, उमंग और प्रेम का संदेश प्रवाहित करते है और दीपावली तो,, प्रकाश पर्व है।
अपने अंदर के अंधकार को मिटाइए,प्रकाश की ओर आकर्षित होइए, आंतरिक परिवर्तन कर चिंतन को आमंत्रित कीजिये|
-श्वेता मेहरोत्रा , आकाशवाणी गोरखपुर
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