काकोरी के क्रांतिकारियों को नमन’ पर संस्कृत नाटक का मंचन किया गया
लखनऊ: उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ द्धारा अपने परिसर में संस्कृत सप्ताह के अवसर पर आज ‘‘मानवजीवने संस्कृतस्य आवश्यकता‘‘ विषय पर पर व्याख्यान गोष्ठी एवं जनपद स्तरीय संस्कृत प्रतिभा खोज प्रतियोगिता का भव्य आयोजन तथा ‘‘काकोरी के क्रान्ति-कारियों को नमन‘‘ पर आधारित संस्कृत नाटक का भी मंचन किया गया। सर्वप्रथम दीप प्रज्वलन, माल्यार्पण के पश्चात् मुख्य अतिथियों का वाचिक स्वागत किया गया।
इस अवसर पर संस्थान के निदेशक विनय श्रीवास्तव जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि संस्कृत दिवस पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इसके मनाने का उद्देश्य यही है कि इस भाषा को और अधिक बढ़ावा मिले। इसे आम जनता के सामने लाया जाये, हमारी नयी पीढ़ी इस भाषा के बारे में जाने, और इसके बारे में ज्ञान प्राप्त करे।
इसके साथ ही संस्कृत भाषा के प्रति छात्रों में अभिरुचि पैदा करने तथा संस्कृत के प्रशिक्षकों को सामने लाकर उन्हे पहचान दिलाये जाने हेतु उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थानम्, द्वारा संस्कृत प्रतिभा खोज नाम से एक अनूठी योजना संचालित है। इसके तहत जनपद, मंडल तथा राज्य स्तर पर कुल 11 प्रकार की प्रतियोगिताएँ आयोजित की जायेगी।
इन प्रतियोगिताओं के आयोजन से प्रदेश भर में संस्कृत का माहौल उत्पन्न होगा। संस्कृत प्रतिभा खोज के अन्तर्गत जनपदों में कक्षा 6 से 12 के छोटे बच्चों के लिए संस्कृत गीत, संस्कृत की पुस्तक पढ़कर सुनाने, संस्कृत सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी जैसी सरल व रोचक प्रतियोगिता रखी गयी हैं, जनपद की प्रतियोगिताओं में प्रथम तथा द्वितीय स्थान पाए हुए प्रतिभागियों के बीच मंडल स्तरीय प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग करेंगे।
मंडल की प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाए हुए छात्रों की राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में प्रतिभाग करेंगे। संस्कृत के क्षेत्र में होने वाला यह पहला कार्य है जिसके माध्यम से सभी बोर्ड तथा विश्वविद्यालय के छात्रों को एक मंच पर लाया जा रहा है तथा प्रतिभा प्रदर्शित करने का अवसर मिल रहा है। संस्कृत प्रतिभा खोज प्रतियोगिता के अन्तर्गत प्रदेश भर से लगभग 7000 बच्चों द्वारा प्रतिभाग किया जायेगा।
कार्यक्रम में अतिथि के रूप में आमंत्रित प्रो0 धनीन्द्र झा, व्याकरण विभाग, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, लखनऊ ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि संस्कृत को कैसे जन-जन तक पहुंचाया जाये इस बात को रखते हुए बताया की संस्कृत देवताओं की भाषा है, अर्थात् हमें देवताओं से सम्पर्क के लिए संस्कृत के माध्यम से ही वार्ता स्थापित कर सकते हैं।
जैसे, संस्कृतं नाम दैवी वाक् अन्वाख्यातं महर्षिभिः तथा जन-जन की भाषा भी संस्कृत थी, डॉ0 शिवानंद मिश्र, सहायक प्राध्यापक, संस्कृत साहित्य विभाग, केन्द्रीय संस्कृत वि0 वि0, लखनऊ ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि कि मैं कौन हूँ ? मेरी जन्मभूमि क्या है ? मेरी संस्कृति क्या हैं ? और मेरा कार्य क्या है और मेरा महान लक्ष्य क्या है ? इन सभी प्रश्नों के उत्तर के लिए हमे संस्कृत ही पढ़ना पड़ेगा अन्य किसी भी भाषा के द्वारा सम्भव नहीं हैं तथा कालिदास की पुस्तक अभिज्ञान-शाकुन्तलम् की कथा भरत ने सुना शकुन्तलावण्यं पश्य शकुन्त-पक्षी, लावण्य-सौन्दर्य इस वाक्य को सुन कर शकुन्तला ऐसा अर्थ समझ कर उन्होंने शकुन्तला मेरी माता कहा है? यह सोचकर देखने लगते हैं, ऐसा किसी भी भाषा में प्राप्त नहीं हो सकता है तथा संकृत प्रतिभा खोज में आमंत्रित निर्णायक माण्डवी त्रिपाठी, शोध छात्रा, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ सुश्री ऋचा, गायन शिक्षिका, लखनऊ, डॉ0 प्रेरिका, शिक्षिका, लखनऊ, चन्दन यादव, शोध छात्र, लखनऊ, मंयक तिवारी, शोध छात्र, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, लखनऊ एवं मन्तशा जहाँ, शिक्षिका, लखनऊ उपस्थित रही।