धान की फसलों को कीटों एवं रोगों से बचाए- प्रो. रवि प्रकाश मौर्य
इस समय खरीफ फसलों पर बहुत ही ध्यान देने की आवश्यकता है। विशेष कर धान की फसल पर। धान की फसल में खैरा रोग लगने की संभावना इस समय रहती है। खैरा रोग जिंक की कमी के कारण होता है। इस रोग में पत्तियाॅ पीली पड़ जाती हैं, जिस पर बाद में कत्थई रंग के धब्बे बन जाते हैं। इसके प्रबंधन के लिए 2 किग्रा जिंक सल्फेट, 8 किग्रा यूरिया को 400 लीटर में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। बदलते मौसम में जीवाणु झुलसा रोग की संम्भावना बढ़ने लगती है, इस रोग में पत्तियां नोक या किनारे से एकदम सूखने लगती है।सूखे हुए किनारे अनियमित एवं टेढ़े मेंढे़ हो जाते है।
इसके नियंत्रण हेतु 6 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत +ट्रेट्रासाक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत को 200 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्ल्यू. पी.के साथ 200-300 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से मौसम साफ रहने पर छिड़काव करें।
ध्यान रहे यह बीमारी लगने पर फसल में यूरिया का प्रयोग न करें। कभी कभी झोका बीमारी भी धान की फसल को क्षति पहुँचाती है, इस रोग में पत्तियों पर आँख के आकार की आकृति के धब्बे बनते है।जो मध्य में राख के रंग के तथा किनारे गहरे कत्थई रंग के होते है। पत्तियों के अतिरिक्त बालियों, डण्ठलों पुष्प शाखाओं, एवं गाठों पर भी काले भूरे धब्बे बनते है।इसके प्रबंधन के लिए कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी 200 ग्राम को 200-300 लीटर पानी ( पौधे की अवस्थानुसार) में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें ।जहां पानी की कमी हो वहाँ दीमक कीट द्वारा नुकसान किया जा सकता है। यह एक सामाजिक कीट है जो कालोनी बनाकर रहते है।
एक कालोनी में 90 प्रतिशत श्रमिक, 2-3 प्रतिशत सैनिक ,एक रानी तथा एक राजा होते है। श्रमिक पीलापन लिए हुए सफेद रंग के पंखहीन होते है। जो उग रहे बीज, पौधों की जड़ों को खाकर क्षति पहुंचाते है। इसके प्रबंधन के लिए एक एकड़ में क्लोरोपाइरीफास 20 ई.सी. 1 लीटर को सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करें। तना छेदक कीट की भी निगरानी करते रहना चाहिए, इस कीट की मादा पत्तियों पर समूह में अण्डा देती है। अण्डों से सूड़िया निकल कर तनों में घुसकर मुख्य गोभ को क्षति पहुँचाती है। जिसके कारण बढ़वार की स्थिति में मृतगोभ तथा बालियां आने पर सफेद बाली दिखाई पड़ती है। इसके प्रबंधन के लिए 25 फेरोमोन ट्रेप प्रति एकड़ में 30-30 मीटर की दूरी पर लगायें। प्रकाश प्रपंच का प्रयोग करें।
रोपाई के 30 दिन बाद (ट्राइकोकार्ड ) ट्राइकोग्रामा जैपोनिकम 50 हजार प्रति एकड़ प्रति सप्ताह की दर से 2-6 सप्ताह तक धान की फसल में छोडे़। यह एक प्रकार का छोटा कीट है ,जिसके अण्ड़े प्रयोगशाला में तैयार किये जाते है जिसे कार्ड पर चिपका दिया जाता है , इसे पौधों की पत्तियों पर जगह जगह स्टेपलर से लगा देते है ,जिससें कीट निकल कर तना छेदक के अड्डों को क्षति पहुँचाते है।