स्वदेशी व स्वशासन के प्रबल अधिवक्ता थे तिलक – सौरभ शुक्ल

बाल गंगाधर ने 1890 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ज्वाइन की. महात्मा गाँधी के पहले भारतीय राजनेता के रूप में अंग्रेज गंगाधर को ही जानते थे । वे पुणे मुंसीपाल एवं बम्बई विधान मंडल के सदस्य रहे। तिलक एक महान समाज सुधारक थे। उन्होंने बाल विवाह का विरोध किया एवं विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया था।
1897 में तिलक पर अपने भाषण के द्वारा अशांति फ़ैलाने और सरकार के विरोध में बोलने के लिए चार्जशीट फाइल हुई।जिसके लिए तिलक को जेल जाना पढ़ा और ढेड़ साल बाद वे 1898 में बाहर आये। ब्रिटिश सरकार उन्हें ‘भारतीय अशांति के पिता कहकर संबोधित करती थी। जेल में रहने के दौरान उन्हें सभी देश का महान हीरो कहकर बुलाते थे।
जेल से आने के बाद तिलक ने स्वदेशी आन्दोलन की शुरुवात की। समाचार पत्र एवं भाषण के द्वारा वे अपनी बात महाराष्ट्र के गाँव-गाँव तक पहुंचाते थे। तिलक ने अपने घर के सामने एक बड़ा स्वदेशी बाजार भी बनाया था।स्वदेशी आन्दोलन के द्वारा वे सभी विदेशी समान का बहिष्कार करते थे, एवं लोगों को इससे जुड़ने के लिए कहते थे। इस समय कांग्रेस पार्टी के अंदर गर्मागर्मी बढ़ गई थी, विचारों के मतभेद के चलते ये दो गुटों में बंट गई थी – नरमपंथी और गरमपंथी. गरमपंथी बाल गंगाधर तिलक द्वारा चलाया जाता था, जबकि नरमपंथी गोपाल कृष्ण के द्वारा।गरमदल स्वशासन के पक्ष में थे।

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